- रेलवे यूनियनों के चुनाव को लेकर दोनों फेडरेशनों के मौन पर सवाल उठा रहे रेलकर्मी
- कितने फीसदी रेलकर्मी दोनों फेडरेशनों के साथ हैं, इसका भी कराया जाये जनमत संग्रह
रेलकर्मियों को ओल्ड पेंशन मिले यह जायज मांग है लेकिन इसे लेकर राजनीति का जो कुचक्र फेडरेशन के नेता रच रहे है उसे लेकर सवाल उठाये जाने लगे हैं. पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली और नयी पेंशन को समाप्त कराने की मांग को लेकर हड़ताल पर जाने की बात को लेकर मंगलवार 21 नवंबर से आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन (AIRF) ने जनमत संग्रह की शुरूआत की है. यह दो दिनों तक चलेगा. इस जनमत संग्रह अभियान से फेडरेशन ने केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि जल्द पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करे तथा नयी पेंशन स्कीम को समाप्त करे.
एआइआरएफ के महामंत्री कामरेड शिव गोपाल मिश्रा ने एक बार फिर से अपने संदेश में यह दोहराया है कि रेलवेकर्मी हड़ताल के लिए तैयार रहे. क्योकी एनपीएस के खात्मे के लिए फेडरेशन अंतिम लड़ाई लड़ने जा रही हैं. अगर केंद्र सरकार हमारी मांग नहीं मानती है तो मजबूरन हमें हड़ताल में उतर कर रेल का चक्का जाम करना पड़ेगा.
अब यह सवाल उठता है कि 01 अप्रैल 2004 के बाद के कर्मचारियों पर लागू नयी पेंशन स्कील को लेकर रेलवे मेंस फेडरेशन के नेता शिवगोपाल मिश्रा एक सौ से अधिक बार हड़ताल की चेतावनी दे चुके हैं लेकिन अब तक वहां तक बात नहीं पहुंची. हर बार निर्धारित तिथि से पूर्व आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर देते हैं. फिर बार-बार जनमत संग्रह के नाम पर क्या रेलकर्मियों से हस्ताक्षर का प्रपंच रचा जा रहा है. इसमें मतपत्र में कर्मचारियों की राय ली जा रही है कि वह हड़ताल के पक्ष में है या नहीं. रायशुमारी के बाद सरकार को हड़ताल की नोटिस दी जायेगी.
रेलकर्मियों का कहना है कि यह प्रपंच वर्ष 2016 में भी सीक्रेट बैलेट के नाम पर दोनों फेडरेशनों ने किया था. उस समय 97% कर्मचारियो ने स्ट्राइक के पक्ष मे मतदान किया. इसके बाद फेडरेशनों ने सरकार को 11 जुलाई 2016 से अनिश्चितकालीन स्ट्राइक की नोटिस दी. लेकिन दिलचस्प रूप से 8-9 जुलाई 2016 को दोनों फेडरेशनों ने सरकार को दी स्ट्राइक की नोटिस वापस ले ली. रेलकर्मियों कहना है कि सरकार से निज लाभ में डील कर मौन साध लिया था.
एक बार फिर एआईआरएफ के जनसंपर्क अभियान की तेजी से के बीच यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या इस बार भी कॉमरेड शिवगोपाल मिश्रा हड़ताल की ओर आगे बढ़ेंगे या यह अभियान भी समय के साथ टाय-टाय फिस्स हो जायेगा. फिलहाल रेलवे फेडरेशन से जुड़े यूनियनों के लोग जोर-शोर से . जनमत संग्रह के अभियान में जुटे हुए है. रेलकर्मियों से हड़ताल को लेकर उनकी राय ली जा रही है लेकिन इस बार रेलकर्मी यूनियन नेताओं से सीधा सवाल कर रहे.
यूनियन नेताओं के पास उनके सवालों का कोई जबाव नहीं है. अलबत्ता AIRF के अभियान को लेकर अभी से संशय की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. यूनियन के पुराने नेताओं का कहना है कि फेडरेशनों को पहले रेलकर्मियों के बीच उनकी स्वीकार्यकर्ता का पता लगाना चाहिए और इसके लिए सबसे बड़ी बात यूनियनों के चुनाव को लेकर है जिसे अब तक विभिन्न कारणों से रेलवे बोर्ड लगातार टालता रहा है.
रेलकर्मियों के बीच यूनियनों की स्वीकार्यता और अस्तित्व को स्थापित करने वाले रेलवे यूनियन चुनाव को लेकर दोनों फेडरेशनों का मौन संदिग्ध है. रेलकर्मियों का कहना है कि फेडरेशन को इस मुद्दे पर भी आवाज बुलंद करनी चाहिए और जनमत संग्रह कर यह पता लगाना चाहिए कि वर्तमान में कितने फीसदी रेलकर्मी यूनियनों के साथ है ? किस यूनियन नेता को रेलकर्मियों का कितना फीसदी समर्थन प्राप्त है ?
कुमार मनीष, लेखक पत्रिका लहरचक्र के संपादक है. खबरों पर आपकी टिप्पणी का स्वागत है, अपनी राय हमें रेलहंट के वाट्सएप नंबर 9905460502 पर भेजे.