अक्सर ये सवाल मेरे दिल में आता है ,
आदमी आदमी क्यों नहीं बन पाता है ?
उपकार कर दो तो अकड़ कर देखता है |
खुदा खुद को समझ वो बैठता सम्मान पा कर |
तिल ढूंढता है वो सदा गैरों के दामन में
पुता कालीखों से खुद का चेहरा क्यूँ छुपता है ?
अक्सर ये सवाल मेरे दिल में आता है
आदमी आदमी क्यों नहीं बन पाता है ?
उपदेश दे दो तो वो मुड़ कर बैठ जाता है |
विश्वास कर लो तो सदा वह चोट करता है
मिलती नहीं खुशियां उसे अब इस ज़माने में
खुद आग अपनों की चिता को क्यूँ लगाता है ?
अक्सर ये सवाल मेरे दिल में आता है,
आदमी आदमी क्यों नहीं बन पाता है ?
क्षमा करने की कीमत जनता ना वो कभी |
प्यार कर दो तो सदा आघात करता है |
रहमतें ताउम्र की परवाह ना करता कभी |
थोड़ी सी लालच देख के क्यूँ मुह छुपाता है ?
अक्सर ये सवाल मेरे दिल में आता है ,
आदमी आदमी क्यों नहीं बन पाता है ?
# संजय, पटना