- प्रदर्शन कर यूनियनों ने निभायी गयी विरोध की रश्म अदायगी, नहीं हुआ रेल चक्का जाम
- अध्यात्म का दर्शन कराएगी महाकाल एक्सप्रेस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया शुभारंभ
- वन्देभारत के तरह काशी महाकाल एक्सप्रेस का भी संचालन रेलवे को देने की उठी मांग
रेलहंट ब्यूरो, नई दिल्ली
सरकार ने रेलवे की पटरी पर एक और निजी ट्रेन महाकाल एक्सप्रेस को दौड़ा दिया है. रविवार 16 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अध्यात्म का दर्शन कराने की घोषणा के साथ काशी-महाकाल एक्सप्रेस का शुभारंभ किया. इस तरह रेलवे यूनियनों के विरोध के बीच सरकार ने अपनी इरादा स्पष्ट कर दिया है कि योजनाओं में कोई दखलअंजादी नहीं चलेगी. हालांकि यूनियनों ने विरोध की रश्मअदायगी करते हुए प्रदर्शन किया और सरकार को एक बार फिर से चेतावनी दी कि महाकाल एक्सप्रेस को रेलवे कर्मचारियों द्वारा ही संचालित करने दिया जाए वरना इस ट्रेन शुरु होने नहीं दिया जायेगा. काशी-महाकाल एक्सप्रेस का रुटीन परिचालन 20 फरवरी से होने वाला है.
वाराणसी कैंट स्टेशन पर रेलकर्मियों के प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले नॉर्दन रेलवे मेन्स यूनियन लखनऊ के मंडल अध्यक्ष राजेश सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा रेलवे कर्मचारियों के कामों को छीनकर प्राइवेट ऑपरेटरों को देने के विरोध में उनका यह प्रदर्शन है. उन्होंने कहा कि सरकार हर सरकारी कंपनियों को निजीकरण की ओर ढकेल रही है, जो भविष्य में सरकारी कर्मचारियों के लिए बुरा हो सकता है. उन्होंने कहा कि हम सभी को ये आश्वासन दिलाया गया था कि रेलवे निजीकरण से जुड़े किसी भी कार्य में नॉर्दन रेलवे मेन्स यूनियन से बात या परामर्श लेकर ही कोई कार्य किया जाएगा, जिसका सीधा–सीधा उलंघन हो रहा है. रेलवे कर्मचारियों को दिये सारे आश्वासनों को झुठलाकर सरकार रेलवे को निजीकरण की ओर ढकेल रही है.
राजेश सिंह का कहना है कि महाकाल एक्सप्रेस को रेलवे कर्मचारियों द्वारा ही संचालित करने दिया जाए वरना हम यह ट्रेन शुरु होने नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि ये ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन की ही देन है कि सरकार ने रेलवे को पूर्ण तरीके से निजीकरण को ओर नहीं ढकेला है. उन्होंने सरकार व आईआरसीटीसा से अनुरोध किया कि वन्देभारत के तरह काशी महाकाल एक्सप्रेस को भी इंडियन रेलवे को ही संचालित करने दिया जाए. देश में तीसरी निजी ट्रेन के परिचालन पर अब तक रेलवे के मान्यता प्राप्त फेडरेशन के शीर्ष नेतृत्व की ओर से कोई बयान जारी नहीं किया गया है.
फेडरेशन व यूनियनों को विश्वास में लेकर चलायी गयी ट्रेन या नहीं दिया भाव, उठ रहे सवाल
ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के महामंत्री शिवपाल मिश्रा ने तेजस के परिचालन के बाद जब विरोध प्रदर्शन किया तो रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने स्पष्ट किया था कि आने वाले समय में कोई भी निर्णय फेडरेशन को विश्वास में लेकर ही किया जायेगा. इसके बाद दिसंबर 2019 के पहले सप्ताह में चेन्नई में आयोजित आँल इंडिया रेलवे मेंस फडरेशन के 95वें वार्षिक अधिवेशन के दूसरे दिन रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव ने रेलवे के निजीकरण को कोरी अफवाह करार देते हुए सारा ठीकरा मीडिया पर फोड़ दिया था.
तब, चेयरमैन विनोद यादव ने कहा था कि रेलमंत्रालय और रेलकर्मचारियों के बीच झूठी खबरें दूरी पैदा कर रही हैं, उन्होने कहा था कि अखबारों में रेल से जुड़ी कई ऐसी खबरें छपती हैं, जिसकी जानकारी रेलवे बोर्ड का चेयरमैन होने के बाद भी उन्हें नहीं होती है. श्री यादव ने कहा था कि रेलमंत्री कई बार संसद में साफ कर चुके हैं कि रेल का निजीकरण और निगमीकरण नहीं होगा, सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है, इसके बाद भी रेलकर्मचारी अखबारों की खबरों पर भरोसा कर बेवजह तनाव में हैं. चेयरमैन ने भारतीय रेल में सबकुछ ठीक-ठाक बताया था.
रेलवे मेंस फेडरेशन के 95वें अधिवेशन के समापन पर पारित प्रस्ताव में फेडरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने सरकार को अल्टीमेटम दे दिया था कि अगर अब मंत्रालय निजीकरण, निगमीकरण पर कुछ भी नया कदम उठाता है तो रेल का चक्का जाम किया जायेगा.
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इसके साथ ही अध्यक्ष और महामंत्री को यह अधिकार दिया गया कि पूर्ण हड़ताल चक्का जाम के लिए वह अन्य फेडरेशन, ट्रेड यूनियन और एसोसिएशन को एक मंच पर लाने का प्रयास करें ताकि एक विशेष अधिवेशन बुलाकर हड़ताल की तारीख का ऐलान किया जायेगा. महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने कहा कि सरकार की नीतियां न सिर्फ रेल और रेलकर्मियों के खिलाफ है, बल्कि ये देश के उन करोड़ों रेलयात्रियों के भी खिलाफ है जो आज भी सफर के लिए रेल का ही सहारा लेते है. महामंत्री ने सवाल किया कि रेलकर्मी 22 हजार ट्रेन रोजाना चला रहे है, तो ऐसा क्या है कि हम 150 कामर्शियल ट्रेनें नही चला सकते. इसी सम्मेलन में शिवगोपाल मिश्रा ने कहा कि रेल मंत्रालय द्वारा बार-बार फेडरेशन के साथ ब्रीच आफ ट्रस्ट किया जा रहा है और रेल कर्मचारियों से उनके काम को छीन कर निजी हाथों में आईआरसीटीसी के माध्यम से दिया जा रहा है जिससे औद्योगिक शांति भंग होने की पूरी संभावना है और इसके लिए भारत सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार होगी.
अब सवाल उठता है कि निजीकरण के खिलाफ यूनियनों के विरोध प्रदर्शन का असर सरकार पर क्यों नहीं हो रहा है? क्यों यूनियन नेता खुद को इतना असहाय महसूस कर रहे है ? आखिर नेताओं की बार-बार की चेतावनी अब उनके गाल बजाने का स्वांग क्यों महसूस होनी लगी है? यूनियन नेता अपनी घोषणाओं पर क्यों अमल नहीं कर पा रहे है?
अब सवाल उठता है कि निजीकरण के खिलाफ यूनियनों के विरोध प्रदर्शन का असर सरकार पर क्यों नहीं हो रहा है? क्यों यूनियन नेता खुद को इतना असहाय महसूस कर रहे है ? आखिर नेताओं की बार-बार की चेतावनी अब उनके गाल बजाने का स्वांग क्यों महसूस होनी लगी है? यूनियन नेता अपनी घोषणाओं पर क्यों अमल नहीं कर पा रहे है? अगर इन बिंदुओं पर गौर करें तो कुछ सवाल सहज रूप से सामने आते है जिन पर चिंतन-मनन करने की जरूरत रेलकर्मी ही अब महसूस करने लगे हैं. चर्चा यह होने लगी है कि क्या मोदी सरकार नेताओं को कोई भाव नही दे रही? तो क्या यह मान लिया जाये कि सरकार उन्हें इस लायक समझ ही नहीं है कि किसी मुद्दे पर उनसे राय ली जाये?
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