रेलहंट ब्यूरो, खड़गपुर
ट्वीटर से समस्या समाधान के शुरूआती दौर में मुझे यह जानकार अचंभा होता था कि महज किसी यात्री के ट्वीट कर देने भर से रेल मंत्री ने किसी के लिए दवा तो किसी के लिए दूध का प्रबंध कर दिया. किसी दुल्हे के लिए ट्रेन की गति बढ़ा दी ताकि बारात समय से कन्यापक्ष के दरवाजे पहुंच सके. क्योंकि रेलवे से जुड़ी शिकायतों के मामले में मेरा अनुभव कुछ अलग ही रहा. छात्र जीवन में रेल यात्रा से जुड़ी कई लिखित शिकायत मैने केंद्रीय रेल मंत्री समेत विभिन्न अधिकारियों से की. लेकिन महीनों बाद जब जवाब आया तब तक मैं घटना को लगभग भूल ही चुका था. कई बार तो मुझे दिमाग पर जोर देकर याद करना पड़ा कि मैने क्या शिकायत की थी. जवाबी पत्र में लिखा होता था कि आपकी शिकायत मिली.. कृपया पूरा विवरण बताएं जिससे कार्रवाई की जा सके. जाहिर है किसी आम इंसान के लिए इतना कुछ याद रखना संभव नहीं हो सकता था.
रोज तरह – तरह की हैरतअंगेज सूचनाओं से मुझे लगा कि शायद प्रौद्योगिकी के करिश्मे से यह संभव हो पाया हो. बहरहाल हाल में नवरात्र के दौरान की गई रेल यात्रा ने मेरी सारी धारणाओं को धूल में मिला दिया. सहसा उत्तर प्रदेश स्थित अपने गृह जनपद प्रतापगढ़ यात्रा का कार्यक्रम बना. 12815 पुरी – आनंदविहार नंदन कानन एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में बड़ी मुश्किल से हमारा बर्थ कन्फर्म हो पाया. खड़गपुर के हिजली से ट्रेन के आगे बढ़ने के कुछ देर बाद मुझे टॉयलट जाने की जरूरत महसूस हुई. भीतर जाने पर मैं हैरान था , क्योंकि ज्यादातर टॉयलट में पानी नहीं था.
मैने तत्काल ट्वीटर से रेलवे के विभिन्न विभागों में शिकायत की. मुझे उम्मीद थी कि ट्रेन के किसी बड़े स्टेशन पहुंचते ही डिब्बों में पानी भर दिया जाएगा. शिकायत पर कार्रवाई की उम्मीद भी थी. लेकिन आद्रा, गया, गोमो और मुगलसराय जैसे बड़े जंक्शनों से ट्रेन के गुजरने के बावजूद हालत सुधरने के बजाय बद से बदतर होती गई.
पानी न होने से तमाम यात्री एक के बाद एक टॉयलटों के दरवाजे खोल रहे थे. लेकिन तुरंत मुंह बिचकाते हुए नाक बंद कर फौरन बाहर निकल रहे थे. क्योंकि सारे बॉयो टॉयलट गंदगी से बजबजा रहे थे. वॉश बेसिनों में भी पानी नहीं था. इस हालत में मैं इलाहाबाद में ट्रेन से उतर गया. हमारी वापसी यात्रा आनंद विहार – पुरी नीलांचल एक्सप्रेस में थी. भारी भीड़ के बावजूद सीट कंफर्म होने से हम राहत महसूस कर रहे थे. लेकिन पहली यात्रा के बुरे अनुभव मन में खौफ पैदा कर रहे थे. सफर वाले दिन करीब तीन घंटे तक पहेली बुझाने के बाद ट्रेन आई. हम निर्धारित डिब्बे में सवार हुए. लेकिन फिर वही हाल. इधर – उधर भटकते वेटिंग लिस्ट और आरएसी वाले यात्रियों की भीड़ के बीच टॉयलट की फिर वही हालत नजर आई. किसी में पानी रिसता नजर आया तो किसी में बिल्कुल नहीं. कई वॉश बेसिन में प्लास्टिक की बोतलें और कनस्तर भरे पड़े थे.
प्रतापगढ़ से ट्रेन के रवाना होने पर मुझे लगा कि वाराणसी या मुगलसराय में जरूर पानी भरा जाएगा. लेकिन जितनी बार टॉयलट गया हालत बद से बदतर होती गई. सुबह होते – होते शौचालयों में गंदगी इस कदर बजबजा रही थी कि सिर चकरा जाए. ऐसा मैने कुछ फिल्मों में जेल के दृश्य में देखा था. लोग मुंह में ब्रश दबाए इस डिब्बे से उस डिब्बे भटक रहे थे ताकि किसी तरह मुंह धोया जा सके. बुजुर्ग, महिलाओं और बच्चों की हालत खराब थी. फिर शिकायत का ख्याल आया… लेकिन पुराने अनुभव के मद्देनजर ऐसा करना मुझे बेकार की कवायद लगा. इसी हालत में ट्रेन हिजली पहुंच गई. हिजली के प्लेटफार्म पर भारी मात्रा में पानी बहता देख मैं समझ गया कि अब साफ – सफाई हो रही है… लेकिन क्या फायदा … का बरसा जब कृषि सुखानी…. ट्रेन से उतरे तमाम यात्री अपना बुरा अनुभव सुनाते महकमे कोस रहे थे. मैं ट्वीटर से समस्या समाधान को याद करते हुए घर की ओर चल पड़ा.
लेखक तारकेश कुमार ओझा पश्चिम बंगाल के खड़गपुर के निवासी व वरिष्ठ पत्रकार है. यह उनके अनुभव का सार है जो हू ब हू प्रकाशित किया जा रहा है. खबर पर टिप्पणी अथवा न्यूज के लिए वाटसअप नंबर 6202266708 पर संपर्क कर सकते है.