- मेक इन इंडिया तकनीक ने डीजल लोको भविष्य में डंप होने से बचाया
- मरम्मत की आधी कीमत दोगुनी क्षमता के साथ पटरी पर आयी लोको
नई दिल्ली. भारतीय रेलवे ने मेक इन इंडिया का नायाब उदाहरण पेश करते हुए देशी तकनीक से डीजल इंजन को इलेक्ट्रिक इंजन में बदलकर उसकी खत्म होने वाली उपयोगिता को जीवंत कर दिया है. यह प्रयोग वाराणसी स्थिति डीजल रेल इंजन कारखाना (डीरेका) में इंजीनियरों ने किया है. 2600 हॉर्स पावर के डब्लूएजीसी 3 श्रेणी के इंजन को इलेक्ट्रक मोटर से तब्दीन कर 5000 हॉर्स पावर का बना दिया गया है. यह काम मात्र 69 से 70 दिन में पूरा किया गया है. रेलवे ने विद्युतीकरण और कार्बन मुक्त एजेंडे को ध्यान में रखकर वाराणसी के डीजल इंजन कारखाने में यह इंजन विकसित किया है.
नॉर्दर्न रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार ने बताया कि नये इंजन के निर्माण में चालक के कैब में चालक और सहचालक की विजिबिलिटी और को-ऑर्डिनेशन को बेहतर बनाने का प्रयास किया गया है. नये बदलाव में डीजल लोको में डीजल मोटर की जगह ट्रांसफार्मर का प्रयोग किया गया है. इसमें कुल ढाई से तीन करोड़ की लागत आयी है.
दीपक कुमार के अनुसार एक डीजल लोको की आमूमन आयु 36 साल की होती है. इसके मिडलाइफ मरम्मत की जरूरत 18 साल में पड़ती है. इस मरम्मत में लगभग छह करोड़ रुपये खर्च होते है. लेकिन हमने ढाई से तीन करोड़ खर्च कर लोको को इलेक्ट्रिक में तब्दील कर दिया है.
दीपक कुमार के अनुसार रेलवे हर साल लगभग 4000 किलोमीटर ट्रैक का विद्युतीकरण कर रही है. सन 18-19 में यह लक्ष्य 6000 किलोमीटर करने का रखा गया है. इस तरह रेलवे में इलेक्ट्रिक लोको का प्रयोग बढ़ रहा है. इसे ध्यान में रखकर पुराने डीजल लोको को डंप करने की जगह इलेक्ट्रिक में बदलने की योजना बनायी गयी है. मेक इन इंडिया के तर्ज पर यह काम आधी कीमत में पूरा कर उसका बेहतर क्षमता के साथ उपयोग किया जा रहा है. 5000 हॉर्स पावर की दो इलेक्ट्रिक लोगों को जोड़कर 10000 हॉर्स पावर का बनाया गया है जिससे माल ढुलाई के लिए उपयोग में लाया जा रहा है.