- पीएम की अपील दरकिनार कर रेलकर्मियों को कोरोना के संक्रमण में झोंकने में नहीं चूक रहे अधिकारी
- रेलवे बोर्ड के गाइड लाइन के विपरीत कई जोन के कई विभागों में कराये जा रहे गैरजरूरी कार्य
- रेल प्रशासन के दावों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग छलावा बनकर रह गया है
- ट्रेनों के मूवमेंट को बनाये रखने के लिए 63 हजार सिग्नल कर्मचारी रेलवे ट्रैक पर अब भी डटे हैं
रेलहंट ब्यूरो, नई दिल्ली
कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के बीच रेलवे के कई जोन के अधिकारी निजी केडिट लेने के लिए रेलकर्मियों को उन गैरजरूरी कार्य में झोंक रहे है जिनकी अभी कोई जरूरत भी नहीं है. अभी तक एसएंटी कर्मचारियों को इंजीनियरिंग विभाग के कर्मचारियों के साथ रेल बदलने, ट्रैक मशीन से पैकिंग कार्य में ही लगाया गया था. इन कार्यों की प्रकृति ही ऐसी है कि इसमें सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर पाना ही संभव नहीं है. बाजवूद रेलकर्मियों से जबरन आदेश जारी कर गैरजरूरी कार्य कराये जा रहे हैं. हालांकि एलआरएसए के दवाब में लोको पायलट को ब्रेथ एनालाईजर तथा बायोमैट्रिक उपकरणों के इस्तेमाल से छूट दे दी गई है परन्तु कई जगह लॉबी में अब भी इसे नहीं माना जा रहा है. इन विपरीत परिस्थितियों के बीच देश के लंबे रेलमार्ग पर ट्रेनों का मूवमेंट बनाये रखने के लिए सिग्नल एंड टेलीकम्यूनिकेशन विभाग के 63 हजार से अधिक कर्मचारी ड्यूटी पर तैनात है ताकि देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जरूरी सामानों की आपूर्ति संभव हो सके.
इस सक्रियता के बावजूद बड़ोदरा, अहमदाबाद, दानापुर, कोटा, जयपुर, आद्रा रेलमंडल के अलावा अन्य कई रेलमंडल में इंजीनियरिंग विभाग के अलावा सिग्नल के कर्मचारियों को गैरजरूरी कार्य में लगाये जाने से नाराजगी देखी जा रही है. यह नाराजगी कुछ मंडलों में सीनियर डीएसटी द्वारा केबल मेगरींग कराने के लिए निर्देश जारी करने को लेकर आयी है, जिसे लेकर सिग्नल एंड टेलीक्म्युनिकेशन के कर्मचारियों के होश उड़े हुए है. एसएंडटी मेंटेनर्स यूनियन ने इस फरमान पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे प्रधानमंत्री के आदेश का सीधे तौर पर उल्लंघन बताया है. यूनियन की ओर से बकायदा रेलमंत्री, प्रधानमंत्री और चेयरमैन को ट्वीट तक कर इसकी सूचना दी गयी है. रेलवे अधिकारियों का आरोप लगाया गया है कि मेंटेनेस के नाम पर आठ घंटे कार्य कराया जा है और एसेंसियल केटेगरी के दबाव में पूरी शिफ्ट की ड्यूटी लगायी जा रही है.
एसएंडटी कर्मचारियों का कहना है कि सामान्य काम तक तो बात ठीक नजर आयी है लेकिन केबल मेगरींग कराने के लिए रिले रूम को खोलना होता है. इसमें दो लॉक होते हैं जिसकी एक चाभी S&T विभाग के पास तथा दूसरी चाभी स्टेशन मास्टर के पास होती है. स्टेशन मास्टर चाभी तभी देते हैं जब S&T विभाग का जेई या एसएसई स्तर का निरीक्षक चाभी मांगने के लिए कंट्रोल से पीएन लेता है और स्टेशन मास्टर को कंट्रोल चाभी देने के लिए अनुमति देता है. यानी रिले रूम पूरी तरह से बंद और सुरक्षित होता है. रिले रूम को खोले बगैर केबल मेगरींग करना संभव नहीं है और जबकि रिले रूम के अंदर सिगनल की सर्किट तथा हजारों लाखों की संख्या में सिगनलिंग तारों का गुच्छा सिगनलिंग उपकरणों को चलाने के लिए लगा होता है. एसएंडटी मेंटेनर्स यूनियन के नेताओं का कहना है कि एक बंद और सुरक्षित कमरे को इस COVID-19 महामारी के समय खोलकर उसे भी असुरक्षित कर देना कहा तक बुद्धिमानी है. ऐसे में यहां काम करने वाले रेलकर्मियों की सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में लगाये गये उपकरणों को सेनिटाइज कर पाना क्या मुमकीन है?
एसएंडटी मेटेनर्स यूनियन के महामंत्री आलोक चंद्र प्रकाश ने बताया कि इंजीनियरिंग विभाग के कई कर्मचारी लॉकडाउन की अवधि में काम करते हुए संभावित संक्रमण के जांच दायरे में आ गये है. इसके बावजूद एसएंडटी के अधिकारी हजारों लाखों की संख्या में सिगनलिंग तारों का गुच्छा तथा सिगनलिंग सिस्टम को खोलकर इस समय मेगरींन क्यों कराना चाहते है यह बात समझ से परे है. आखिर प्रधानमंत्री का अनुरोध इन अधिकारियों को क्यों नहीं भा रहा है? प्रधानमंत्री हर नागरिक को घर पर रहने पर जोर दे रहे है तो ये अधिकारियों क्यों अपने अधीन कर्मचारियों को घर से बाहर निकालने पर तुले हैं. हाल में ही रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने भी सभी अधिकारियों को केवल एसेंशियल मालगाड़ियों के लिए एसेंशियल स्टाफ को ही ड्यूटी पर लगाने का निर्देश दिया है वो भी रोटेशन में. इसका कोई असर एसएंडटी अधिकारियों पर नहीं दिख रहा. इंडियन रेलवे एस एडं टी मैंटेनरर्स यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन कुमार के अनुसार भारतीय रेलवे में संकेत एवं दूरसंचार (एसएंडटी) के लगभग 63000 कर्मचारी वर्तमान परिस्थिति में भी ट्रेनों के मूवमेंट को बनाये रखने में जुटे है ताकि देश में जरूरी सामानों की आपूर्ति सुनिश्चित करायी जा सके.
इसके विपरीत ट्रेनों के व्यस्त मूवमेंट के समय जो कार्य के लिए आसानी से मार्जिन समय नहीं मिल पता था वह कार्य ब्रांच अधिकारी अब करा लेना चाहते है ताकि उन्हें मंडल और जोन तक वाहवाही मिल सके. S&T तथा इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारियों को ट्रेने कम चलने के कारण काम करने के लिए अच्छा मार्जिन दिख रहा है. यूनियन नेताओं का कहना है कि वर्तमान में तो आम दिनों से भी अधिक काम कराया जा रहा है. कहने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखा जा रहा है परन्तु इंजीनियरिंग तथा S&T विभाग का प्रत्येक काम रिस्क तथा हार्डशिप के बिना संभव ही नहीं है और सोशल डिस्टेंसिंग तो मात्र एक छलावा बनकर रह गया है.
ऐसी परिस्थितियों में अभी तक कई रेल कर्मचारियों के कोरोना के संभावित संक्रमण की चपेट में आने की संभावना प्रबल है. जिसका एक बेहतरीन उदाहरण पश्चिम रेलवे के मुम्बई मंडल के नंदुरबार सेक्शन में आ चुका है जहां तीन ट्रैकमैनों को क्वारंटाइन किया गया है, इससे कोरोना जैसे लक्षण पाये जाने के बाद से रेलकर्मी भयभीत है. जो लोको पायलट ट्रेन चलाते हैं उनके लिए भी ब्रेथ एनालाईजर तथा बायोमैट्रिक उपकरणों से छूट दे दी गई है परन्तु लॉबी में यह अभी मान्य नहीं किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि हमारे पास मंडल कार्यालय से अभी तक कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं. सूचना है कि अभी हाल ही में पालनपुर में एक लोको पायलट को कोरोना से संक्रमित पाया गया था तब भी प्रशासन के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. अब सवाल यह उठता है कि अगर कोई रेलकर्मी इस संक्रमण की चपेट में आ जाता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
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