नई दिल्ली. रेलमार्ग पर बढ़ते यातायात के दबाव एवं सूचना प्रणाली के विस्तार के बाद रेलवे स्टेशन पर अब घंटी बजाकर ट्रेन के आने या रवाना होने के संकेत देने की बात भी पुरानी हो गई है. अब हर 20 मिनट में ट्रेन के परिचालन से हर पांच मिनट में अनाउंसमेंट किए जा रहे हैं. इसके चलते दो दशक से चली आ रही घंटी की व्यवस्था लगभग बंद हो गई है. हालांकि रोड साइड के कुछ स्टेशन पर यह व्यवस्था जारी है. पहले रेलवे स्टेशन पर घंटी के संकेत से हर यात्री वाकिफ रहता था. इन्हीं संकेतों के माध्यम से स्टेशनों पर यात्रियों को संकेत देने के लिए स्टेशन मास्टर के ऑफिस में एक कर्मचारी रहता था.
16 अप्रैल 1853 में आज ही के दिन देश की पहली रेल बंबई (अब मुंबई) से ठाणे के बीच चली थी. दोपहर 3.35 बजे चली इस ट्रेन ने 35 किलोमीटर का सफर तय किया था. 20 डब्बों की उस ट्रेन को तीन इंजनो की मदद से चलाया गया था जिन्हें ब्रिटेन से मंगवाया गया था. करीब 400 लोगों ने उस ऐतिहासिक यात्रा का अनुभव लिया था.
ब्रिटिश काल में रेलमार्ग एवं स्टेशनों की स्थापना के बाद ही घंटी से संकेत देना शुरू किया था. वर्ष 1959 में मुंबई-दिल्ली मार्ग का डबलिंग हुआ. इसके बाद से ही निरंतर रेल मार्ग पर यातायात का दबाव शुरू हुआ. मामले में सेवानिवृत कर्मचारी एवं वेरेएयू के सहायक महामंत्री गोविंदलाल शर्मा बताते हैं कि घंटी के संकेतों से सभी यात्री सजग होते थे. जैसे ही एक घंटी बजती थी ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आकर ठहरती थी. इन्हीं संकेतों के माध्यम से कुछ कहावतें भी बनी है. वर्तमान में रतलाम रेल मंडल से 102 एक्सप्रेस एवं मेल एक्सप्रेस सहित 140 से अधिक ट्रेनों में रोज 2.5 लाख यात्री सफर कर रहे हैं. ट्रेनों के आगमन एवं रवाना होने की जानकारी अब यात्रियों को केवल अनाउंस के माध्यम से ही दी जा रही है. हालांकि रोड साइड के कुछ स्टेशनों पर आज भी यह घंटी से संकेत देने की व्यवस्था लागू है.
तेज गति के परिचालन एवं आय पर रेलवे का ध्यान
हवाई एवं सड़क मार्ग से प्रतिस्पर्धा के चलते रेलवे का ध्यान अब यात्री सुविधा के बजाय ट्रेनों की गति बढ़ाने तथा बेहतर आय तक सिमटने लगा है. पुरानी हर तकनीक से किनारा कर रेलवे में अब नई तकनीक अपनाई जा रही है. यहीं वजह है कि स्टीम इंजन के स्थान पर डीजल एवं डीजल का स्थान अब इलेक्ट्रिक इंजन लेते जा रहे है. स्टेशन पर घंटी से संकेत के बजाय अनाउंस, मोबाइल एप तथा मैसेज से सूचनाएं दी जाने लगी है. सिग्नलिंग में भी कुछ सालों पहले अपनाई तकनीक को और भी उन्नात किया जा रहा है. बेहतर आय के लिए ही रतलाम मंडल में करोड़ों रुपए की डबलिंग एवं इलेक्ट्रिफिकेशन योजना जारी है. इतना हीं नहीं इन योजनाओं के देरी के चलते करोड़ों रुपए का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. पिछले एक दशक में ट्रेनों की गति 100 से 120 किमी प्रतिघंटा तक पहुंची तथा 130 से किमी प्रतिघंटा से भी अधिक स्पीड की तैयारियां की जा रही है. वहीं ट्रेनों में कोचों की संख्या भी बढ़ा दी गई है.
हर साल आय का दबाव
रेलवे को हर साल आय का दबाव रहने लगा है. वर्ष 2014-15 में यात्री आय 490.05 करोड़ रुपए थी. लगातार दबाव के चलते यह 40 से 50 फीसदी बढ़ गई है. इसके चलते वर्ष 2018-19 में यह 587.67 तक पहुंच गई है. साथ ही मालभाड़े आय की ओर भी रेलवे का पूरा ध्यान है. वर्ष 2014-15 में यह 1171.44 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2018-19 में यह आय 1556 करोड़ रुपए तक हो गई है. इधर, आय बढ़ाने के साथ ही रेलवे द्वारा रेलवे के विकास की ओर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे है. रतलाम मंडल में चित्तौड़गढ़ से रतलाम तक डबलिंग एवं इलेक्ट्रिफिकेशन योजना तेजी से चल रही है. इसी तरह उज्जैन-इंदौर डबलिंग, रतलाम-उज्जैन गेज कन्वर्जन, दाहोद-इंदौर नई लाइन सहित आधा दर्जन और योजनाएं चलाई जा रही हैं. तेज गति परिचालन के चलते रेल मंडल की सिग्नलिंग भी पूरी तरह बदली जा चुकी है. मीटरगेज के समय में रिंग व टोकन से सिग्नल देने की व्यवस्था थी. इस रिंग में गेंद के जरिए ट्रेन के एक से दूरे स्टेशन तक पहुंचने के लिए लोको पायलट को संकेत दिए जाते थे. ब्रॉडगेज लाइन डलने तथा ब्रॉडगेज ट्रेनें चलने के बाद सिग्नलिंग अब अत्याधुनिक हो गई है.
Source – Nai Duniya