Connect with us

Hi, what are you looking for?

Rail Hunt

देश-दुनिया

जो आशंका थी वही हुआ, तेजस को पास करने के लिए फेल की जा रही दूसरी ट्रेनें

कल रवाना होगी तेजस, हरी झंडी दिखायेंगे योगी आदित्यनाथ, काला दिवस मनायेंगे लोको पायलट
  • रेलवे का तेजस प्लान होने के कगार पर, आधुनिक सुविधाओं के बाद भी नहीं लुभा रही तेजस
  • 150 ट्रेनों का परिचालन निजी हाथों में देने के लिए बेचैन है रेलवे अधिकारियों का बड़ा खोमा
  • रेल मंत्रालय के स्तर पर कवायद शुरू, सचिव स्तर के एम्पावरड ग्रुप को टास्क सौंपा गया

रेलहंट ब्यूरो, नई दिल्ली

बड़ी घोषणाओं के साथ रेलवे की जमीन पर उतारी गयी पहली व्यवसायिक ट्रेन तेजस रेलवे बोर्ड के नीति निर्धारकों के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है. देश के सबसे व्यवसायिक और व्यस्त मार्ग पर समृद्ध लोगों की जेब काटने की नीयत से चलायी गयी यह ट्रेन तमाम सुविधाओं के बावजूद यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित कर पाने में विफल रही है. इसका असर दुर्गापूजा जैसे व्यस्त् समय में ट्रेनों में आरक्षण की स्थिति से सामने आया है. तेजस में भी शताब्दी की तरह डायनेमिक फेयर लागू है लेकिन किराया उससे तीन गुना अधिक हो जा रहा है. यही कारण है कि समृद्ध यात्री भी तेजस से पहले शताब्दी को ही तरजीह दे रहे. इसका असर रहा कि दशहरा पर वापसी के लिए तेजस में 106 सीटें खाली चली गयी है. आरक्षण की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही. नौ अक्तूबर को तेजस का किराया 1600 रुपये था जबकि शताब्दी में वेटिंग मिल रही थी. तेजस में एसी चेयरकार के 9 जबकि शताब्दी में एसी चेयरकार के 15 कोच हैं. त्योहार और बिजी समय को छोड़कर अन्य दिनों में तेज यात्रियों को लुभा पाने में विफल रही है. त्योहार के पीक सीजन में नई दिल्ली से लखनऊ के बीच तेजस के एसी चेयरकार का किराया 3295 रुपये जबकि एग्जीक्यूटिव चेयरकार का किराया 4500 के ऊपर पहुंच रहा है जबकि शताब्दी में यात्रियों को 1300 रुपये ही देने पड़ रहे हैं.

जो आशंका थी वही हुआ, तेजस को पास करने के लिए फेल की जा रही दूसरी ट्रेनेंयह रेलवे बोर्ड में 150 से अधिक निजी ट्रेन और 50 स्टेशनों को निजी हाथ में सौंपने की योजना लेकर बैठे नीति निर्धारकों के लिए चिंता का बड़ा कारण बना हुआ है. हालांकि बोर्ड के इन निर्धारकों को यह उम्मीद है कि वह तेजस जैसे अन्य ट्रेनों का परिचालन सफल कराकर सरकार को हो रही किरकिरी से बचा लेंगे. सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि रेलवे के तमाम संसाधनों पर चलने वाली तेजस से मुनाफा कमाने की बेचैनी में आम यात्रियों की लगातार अवहेलना की जा रही है. तेजस के विलंब होने पर जुर्माना देने का प्रावधान लुभावन नीति के तहत बना तो दिया गया लेकिन शायद बोर्ड के निर्धारक सब कुछ जानते हुए भी यह भूल करने को तैयार हो गये कि तेजस को सही समय दिलाने के लिए व्यस्त मार्ग पर पहले से चल रही ट्रेन को पटरी से उतारना पड़ सकता है. और जिसकी अशंका थी वहीं हुआ. तमाम विरोध के बावजूद तेजस को पास करने के लिए रेलवे बोर्ड के नीति निर्धारक दूसरे ट्रेनों के फेल करने की रणनीति पर बढ़ चले है. इसके लिए जरूरी दिशानिर्देश जारी कर स्पष्ट कर दिया गया है कि तेजस को समय पर चलाने के लिए जरूरत पड़ने पर दूसरी मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों को मैनेज किया जाये. जाहिर से बात है कि निजी ऑपरेटरों को फायदा पहुंचाने के लिए वर्तमान ट्रेनों में सवार हजारों यात्रियों की अवहेलना करने के लिए रेल मंत्रालय तैयार है.

जो आशंका थी वही हुआ, तेजस को पास करने के लिए फेल की जा रही दूसरी ट्रेनेंरेल मंत्रालय के स्तर पर इसकी कवायद शुरू कर दी है. सचिव स्तर के एम्पावरड ग्रुप को यह टास्क सौंपा गया है. रेल मंत्री और नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत के बीच बातचीत के बाद रेल मंत्रालय ने यह फैसला किया है. रेल मंत्री से बैठक के बाद नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव पत्र लिखा है, जिसके मुताबिक यह तय हुआ है कि पहले चरण में 150 ट्रेनों के परिचालन का काम प्राइवेट ऑपरेटरों को दिया जाएगा. पत्र में नीति आयोग के सीईओ ने लिखा है, ‘जैसा आपको जानकारी है कि रेलवे को 400 रेलवे स्टेशनों को चुनकर उन्हें वर्ल्ड क्लास स्टेशन बनाना था. लेकिन यह प्रतिबद्धता कई सालों से जताई जा रही थी. इसके बाद भी वास्तव में ऐसा नहीं हो पाया, सिर्फ गिने चुने मामलों को छोड़कर, जहां पर ईपीसी मोड के जरिए काम हुआ था.’ इस पत्र में कहा गया है कि ‘मैंने रेल मंत्री से विस्तृत बातचीत की, जहां पर यह महसूस किया गया कि कम से कम 50 स्टेशनों के लिए यह काम प्राथमिकता के साथ किया जाना चाहिए. जिस तरह 6 एयरपोर्ट को प्राइवेट हाथों में सौंपा गया, उसी तरह सचिव स्तर का एम्पावरड ग्रुप बनाकर यह काम करने की जरूरत है. इस ग्रुप में नीति आयोग के सीईओ, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन, आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव, शहरी एवं विकास मंत्रालय के सचिव शामिल हो सकते हैं.’ साथ ही पत्र में लिखा गया है कि शुरुआती चरण में 150 ट्रेनों को प्राइवेट हाथों में सौंपा जाएगा.

निजी ट्रेनों में प्राइवेट आपरेटर को किराया तय करने के अलावा ट्रेन के भीतर अपना टिकट चेकिंग स्टाफ तथा कैटरिंग एवं हाउसकीपिंग स्टाफ रखने की छूट दी गयी है. जबकि लोको पायलट, और गार्ड तथा सुरक्षा कर्मी रेलवे के होंगे. रेलवे अपने इंफ्रास्ट्रक्चर एवं रनिंग स्टाफ का उपयोग करने के लिए प्राइवेट आपरेटर से हॉलेज शुल्क वसूलेगा. चूंकि लखनऊ-दिल्ली तेजस एक्सप्रेस का संचालन रेलवे की ही एक पीएसयू आइआरसीटीसी निजी कंपनियों के सहयोग से कर रहा है. आइआरसीटीसी और प्राइवेट आपरेटर के बीच इसमें कंसेशन एग्रीमेंट होगा और दोनो उसी के अनुसार कार्य करेंगे. इसके तहत आइआरसीटीसी को प्राइवेट आपरेटर से लाभ में हिस्सेदारी प्राप्त होगी और उसमें से वो रेलवे को हॉलेज शुल्क अदा करेगा.

जो आशंका थी वही हुआ, तेजस को पास करने के लिए फेल की जा रही दूसरी ट्रेनेंरेलवे की ओर से ट्रेन परिचालन के निजी योजना की शर्तो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. निजी ट्रेनों में सिर्फ संपन्न लोग यात्रा कर सकेंगे. संचालन में निजी ट्रेनों को वरीयता मिलने से सामान्य ट्रेनों की लेटलतीफी बढ़ेगी, जिससे आम यात्री परेशान होंगे. हजारों टिकटिंग स्टाफ, टीटीई आदि की नौकरी जाएगी. हम ट्रेनों के संचालन का विरोध करेंगे.

शिवगोपाल मिश्र, महासचिव, एआइआरएफ

आगे चलकर पूर्णरूपेण प्राइवेट ट्रेनों का संचालन होगा तब रेलवे बोर्ड स्वयं निजी आपरेटरों के साथ सीधे कंसेशन एग्रीमेंट कर सकेगा और निजी ऑपरेटर से प्राफिट में निश्चित हिस्सेदारी हासिल करेगा. उस स्थिति में प्राइवेट ऑपरेटरों को रोलिंग स्टॉक के चयन में भी छूट मिलेगी. वह चाहे तो विदेशों से ट्रेन का आयात कर संचालन कर सकेगा। उस पर भारतीय रेल के कारखानों में बनी ट्रेन का उपयोग करने की शर्त लागू नहीं होगी. इस बात के स्पष्ट संकेत है कि आगे चलकर प्राइवेट ऑपरेटर जहां से भी चाहेंगे अपनी ट्रेन हासिल कर सकेंगे. रेलवे से ट्रेन खरीदना उनके लिए जरूरी नहीं होगा. ऐसे में बड़ी संख्या में रेलकर्मी प्रभावित होंगे और रेलवे के उपक्रमों को धीरे-धीरे बीमार होने से कोई रोक नहीं सकेगा. रेलवे यूनियन के नेता भी यह मानते है कि धीरे-धीरे सरकार रेलवे का हाल भी बीएसएनएल की तरह करने जा रही है. रेलवे की इस मंशा पर आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआइआरएफ) ने भी चिंता जतायी है लेकिन अब तक फेडरेशन के स्तर पर आपेक्षित विरोध के स्वर नहीं सुनने को मिल रहे. सरकार रेलवे में यूनियनों की मान्यता के पेंच में फंसाकर फेडरेशन के नेताओं को भी चुप रहने को मजबूर कर दिया है, शायद यही कारण है कि रैलियों में दहाड़ने वाले यूनियन नेताओं वार्ता की मेज पर खामोश होकर लाखों रेलकर्मियों का भविष्य दांव पर लगा रहे है.

सूचनाओं पर आधारित समाचार में किसी सूचना अथवा टिप्पणी का स्वागत है, आप हमें वाट्सएप 6202266708 या मेल railnewshunt@gmail.com पर भेज सकते है हम उसे पूरा स्थान देंगे. 

Spread the love
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

ताजा खबरें

You May Also Like

रेलवे जोन / बोर्ड

रेलवे यूनियन चुनाव में OPS नहीं बन सका मुद्दा, UPS पर सहमति जताने वाले संगठन फिर से सत्ता पर काबिज  KOLKATTA/NEW DELHI. रेलवे ट्रेड...

रेलवे जोन / बोर्ड

हाईटेक रेल-कम-रोड निरीक्षण वाहन और अत्याधुनिक रेलवे ट्रैक हेल्थ मैनेजमेंट सिस्टम को अश्विनी वैष्णव ने देखा  कहा – अगले पांच वर्षों में सभी रेल...

न्यूज हंट

ROURKELA. हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग के राउरकेला स्थित कलुंगा रेल फाटक के पास मंगलवार 17 दिसंबर की रात करीब साढ़े नौ बजे एक भीषण रेल...

रेलवे जोन / बोर्ड

NEW DELHI. रेलवे यूनियनों की मान्यता के चुनाव में दोनों फेडरेशन (AIRF/NFIR) फिर से केंद्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने में सफल रहे हैं. ...