- मंडल और जोनल अफसरों को ट्वीट भेजकर डीजी ने दिया संकेत, करने जा रहे है बड़ी कार्रवाई
- डीजी की पहल से भ्रष्टाचारियों में दिखने लगी बेचैनी तो ईमानदार अफसर व जवानों के हौसले बुलंद
- लोगों ने ट्वीट पर दी प्रक्रिया, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाने का आह्वान
नई दिल्ली. रेलवे के सुरक्षा तंत्र को बेदाग करने में जुटे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी आरपीएफ डीजी अरुण कुमार को अपने महकमे ही नहीं अधिकारियों के एक संवर्ग से भी चुनौती मिलने लगी है. भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रूख अपनाने के बाद डीजी ने शायद यह महसूस कर लिया कि उन्हें विभिन्न मोर्चो पर निशाना बनाया जायेगा. शायद यहीं वजह रही कि डीजी ने 29.3.2019 की रात 22.58 बजे भ्रष्टाचार को लेकर ट्वीट @arunkumar783 कर अपने इरादे जाहिर किये. अपने ट्वीट में डीजी ने लिखा कि “भ्रष्टाचार व्यवस्था में इतना गहरा पैठ बना लिया है कि अगर आप एक भ्रष्टाचारी के खिलाफ कार्रवाई करते हैं तो समान भ्रष्ट मानसिकता वाले आपको धमकाने के लिए एकजुट हो जाते हैं” हालांकि इसके कुछ देर बाद ही उन्होंने 23.04 मिनट पर फिर से ट्वीट किया. लेकिन इस बार उन्होंने अपने ट्वीट में @rpfecr,@IR_CRB, @RailMinIndia, GM_ECRly,@drndhnecr, @rpfecrdhn, @dhanbad को भी टैग किया. यानि ट्वीट को डीजी आरपीएफ ने सिर्फ धनबाद से लेकर आरपीएफ पूर्व मध्य रेलवे से जुड़े महकमे के अफसरों और रेलमंत्री को भेजा. ऐसा माना जा रहा है कि यह सारी कवायद डीजी द्वारा धनबाद के सीनियर कमांडेंट विनोद कुमार को निलंबित किये जाने के बाद से की जा रही है. विनोद कुमार को 27 मार्च को डीजी ने भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित कर दिया है.
आरपीएफ डीजी के ट्वीट के इस ट्वीट से रेलवे के सुरक्षा तंत्र से जुड़े अधिकारी व जवानों में एक ओर सख्त कार्रवाई का लेकर दहशत है तो दूसरी ओर कार्रवाई की धार को कमजोर करने के लिए विभिन्न माध्यमों का सहारा लिया जाने लगा है. इसका खुलासा रेलवे के राजपत्रित अधिकारियों का संगठन FROA और PROA की पहल से हो जाता है. पहले ही अपनी साख तलाश रहे फेडरेशन ऑफ रेलवे अफसर एसोसिएशन व PROA ने एक अप्रैल को काला बिल्ला लगाकर ड्यूटी करने का आह्वान किया है. दोनों संगठनों ने डीजी द्वारा धनबाद के सीनियर कमांडेंट के निलंबन के बिरूद्ध आवाज उठायी है. हालांकि दोनों संगठनों की ओर से जारी किये गये पत्र में कोई फोन नंबर नही है, लेकिन अब तक दोनों संगठनों की ओर से ऐसा कोई पत्र जारी नहीं करने का खंडन भी नहीं किया गया है. इससे साफ है कि अपनी साख बचाने के लिए ये संगठन भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी गयी मुहिम की धार को कमजोर करने का प्रयास कर रहे है.
रेलवे के राजपत्रित अधिकारियों का संगठन FROA और PROA द्वारा Sr.DSC बिनोद कुमार के निलंबन को खत्म करने के लिए दबाव बनाने के लिए एक अप्रैल को काला बिल्ला लगाकर करने की घोषणा के निहितार्थ चाहे जो लगाये जाये लेकिन यह तो साफ हो गया है कि एक भ्रष्टाचार के आरोपी का बचाव करने के लिए दवाब बनाया जा रहा है. इसी दबाव को लेकर डीजी आरपीएफ ने अपने ट्वीट से स्थिति को स्पष्ट करते हुए इरादा जाहिर कर दिया कि चाहे जो हो जाये भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में उनकी धार कम नहीं होने जा रही है. सभी मंडल और जोनल अफसरों को भेजे गये ट्वीट में डीजी ने अपने इरादा जता दिया है तो रेलमंत्री को विश्वास में लेकर एक तरह से बड़ी कार्रवाई करने का अघोषित एलान भी कर दिया है. पूरे प्रकरण में एक बार तो साफ हो गयी है कि अब लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ और भ्रष्टाचार को समर्थन देने वालों के बीच होकर रही गयी है. इसमें धनबाद में निलंबित सीनियर कमांडेंट विनोद कुमार के बचाव में आने वाले राजपत्रित अधिकारियों का संगठन FROA और PROA की स्थिति सांप-छुछुंदर वाली होकर रह गयी है.
भ्रष्टाचार के मामलों में निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था तो यह होनी चाहिए थी कि डीजी की कार्रवाई को गलत मानने वालें इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग उठाते. इसके लिए किसी निष्पक्ष एजेंसी (सीबीआई) से जांच की मांग की जा सकती थी. तब शायद पूरे मामले में दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाता.
ऐसे मामलों में निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था तो यह होनी चाहिए थी कि डीजी की कार्रवाई को गलत मानने वालें इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग उठाते. इसके लिए किसी निष्पक्ष एजेंसी (सीबीआई) से जांच की मांग की जा सकती थी. तब शायद पूरे मामले में दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाता. अगर धनबाद के सीनियर कमांडेंट दोषी नहीं होंगे तो उन्हें बाईईज्जत क्लीन चिट मिल जाती. लेकिन इसके विपरीत विभिन्न संगठन कार्रवाई को रोकने के लिए दबाव बनाने में जुट गये है जिसे किसी तरह न्योचित नहीं ठहराया जा सकता. ऐसे में आरपीएफ डीजी का ट्वीट बहुत कुछ संकेत दे जाता है. हालांकि रेलवे सुरक्षा बल में प्रभार संभालने के बाद डीजी अरुण कुमार द्वारा की गयी कार्रवाई के बाद यह माना जाने लगा था कि उन्हें विभिन्न मोर्चो पर जुझना होगा. बीते एक दशक से आरपीएफ एसोसिएशन रेलवे सुरक्षा बल में भारतीय पुलिस सेवा IPS के अफसरों की प्रतिनियुक्ति का विरोध कर रहा है. यह विरोध क्यों है इसके निहितार्थ भी अलग-अलग हैं. हालांकि प्रभार लेते हुए डीजी अरुण कुमार ने एसोसिएशन पर गैरकानूनी ढंग से काबिज सेवानिवृत अधिकारी यूएस झा को चलता कर दिया. यह आरपीएफ के IRPF Service से जुड़े अधिकारियों के लिए बड़ा झटका था. हालांकि यह गुट पहले ही रेलवे जोन के आइजी पद से IPS को हटाने में सफल हो चुका है अब उनकी नजर डीजी आरपीएफ के पद पर है जो अब भी भारतीय पुलिस सेवा IPS के अफसर के पास है.
अब नजर डालते है डीजी आरपीएफ अरुण कुंमार की उस कार्रवाई पर जिससे वह विरोधियों के सीधे निशाने पर आ गये है. भ्रष्टाचार की अवैध कमायी का हिस्सा आरपीएफ में निरीक्षक से लेकर ऊपर के बैठे अफसरों (कुछ भ्रष्ट) तक सीधे पहुंचता है. इसमें आरपीएफ एसोसियेशन के पदाधिकारियों का एक तबका भी हाथ साफ करता है. भ्रष्टाचार के बिरुद्ध आवाज उठाने वाले जवान व अफसरों को अपने प्रशासनिक अधिकार का दुरुपयोग कर ये अधिकारी दूर धकेल देते थे. डीजी अरुण कुमार ने प्रभार लेते ही भ्रष्टाचार की अवैध कमाई पर अंकुश लगाना शुरू किया. इस क्रम में डीजी के निशाने पर आये अवैध हॉकर और टिकट दलाल. उन्होंने जिम्मेदारी तय कर दी कि अगर स्टेशन व ट्रेन में हॉकर दिखे तो निरीक्षक पर सीधी कार्रवाई होगी. कई इंस्पेक्टरों को निलंबित कर उन्होंने अपने इरादे जता भी दिये. इसके बाद टिकट दलालों पर लगाम लगायी. आइआरसीसीटी की वेबसाइट हैक कर लाखों रुपये इधर से उधर करने वाले दलालों पर अंकुश लगाने से उससे उपकृत होने वाले भ्रष्ट आरपीएफ अफसरों का बड़ा वर्ग उनके खिलाफ उठ खड़ा हुआ है. हालांकि इसके विपरीत ईमानदार अफसरों का अरुण कुमार को समर्थन भी मिला. लेकिन जब डीजी ने महानगरों में 10 से 15 साल से एक स्थान पर जमे अफसर व जवानों के भ्रष्टाचार को खत्म करने की नीति बनायी तो भ्रष्टाचारियो में बेचैनी बढ़ गयी. इसके बाद सीनियर कमांडेंट पर की गयी कार्रवाई से भ्रष्टाचार के पोषक तिलमिला उठे और आरपीएफ डीजी (IPS officer) को भी धमकी देने से नहीं चूके.
चक्रधरपुर रेलमंडल से चलकर आद्रा पहुंच चुका है भ्रष्टाचार, बस निष्पक्ष जांच का है इंतजार
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लंबी है जो बिना अधीनस्तों के सहयोग के नहीं जीती जा सकती है. हालांकि कोई भी मामला सामने आने पर उसकी गहराई से जांच कर निर्दोष को न्याय दिलाना भी इस प्रक्रिया का हिस्सा है. लेकिन जब जोन व मंडल में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी ही भ्रष्टाचार के पोषक बन जाये तो व्यवस्था का भगवान ही मालिक होता है. ऐसा चक्रधरपुर रेलमंडल में बीते पांच साल से होता रहा है. तबादलों के नाम पर ऐसी अनियमितता और अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर की गयी कार्रवाई के मामले में चक्रधरपुर रेलमंडल का सुरक्षा विभाग टॉप पर रहा है. अफसर व जवानों को पहले किसी ने किसी मामले में उलझाना और फिर उससे बाहर निकालने के नाम पर बड़ी कार्रवाई को छोटी कर अपना उल्लू सीधा यहां का रिवाज बना रहा. कुर्सी की निगहबानी में कई अफसर व जवान करोड़पति बन गये तो कई लोग उस कसूर की सजा आज तक भुगत रहे है जो उन्होंने की ही नहीं. भ्रष्टाचार का यह बीज चक्रधरपुर से चलकर फिलहाल आद्रा पहुंच चुका है. उस पर कड़ी निगरानी और उसके अब तक के लिए गये निर्णयों की जांच की नितांत आवश्यकता है. डीजी को इसके लिए अगर विशेष सुरक्षा सम्मेलन बुलाकर जवानों का दर्द जानना होगा तब शायद बेकसूर सजा भुगत रहे जवान व अफसरों को राहत मिल सकेगी.
डॉ अनिल कुमार, रेलहंट के संपादक है