- आदित्यपुर से जमशेदपुर के विभिन्न इलाकों में स्थित स्क्रैप टाल संचालकों व दुकानदारों से पूछताछ, बयान दर्ज
JAMSHEDPUR. कोलकाता से आयी आईवीजी (इंटरनल विजिलेंस ग्रुप) की टीम ने बीते दिनों टाटानगर में अचानक दबिश देकर आरपीएफ के वसूली तंत्र को खंगाला है. इसे लेकर आरपीएफ महकमे में खलबली मची हुई है. बताया जा रहा है कि आरपीएफ आईजी को मिली गोपनीय शिकायत पर आईवीजी की टीम शहर आयी थी. इंस्पेक्टर आरके सिंह की अगुवाई वाली टीम ने यहां आदित्यपुर से लेकर जमशेदपुर के विभिन्न इलाकों में स्थित स्क्रैप टॉल से लेकर रेल क्षेत्र में कारोबार करने वाले दुकानदारों से भी पूछताछ की और यह जानने का प्रयास किया कि कहां-कहां और किन-किन लोगों से अवैध वसूली की जा रही है ? यह वसूली किस रूप में की जा रही है ? वसूली के लिए कौन लोग जिम्मेवार हैं और अगर आरपीएफ के नाम पर कोई वसूली हो रही है तो पैसा किसके पास जा रहा है?
हालांकि आईवीजी के हाथ क्या लगा अथवा जांच का नतीजा क्या होगा यह तो समय बतायेगा लेकिन इस दबिश में कई सवालों को भी जन्म दे दिया है. मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि यह दबिश और जांच एक गुमनाम गोपनीय शिकायत पर की गयी है. जिसमें कई स्क्रैप टाल संचालकों को चिह्नित कर यह बताया गया है कि बतौर रिसीवर कुछ लोग किस तरह आरपीएफ की अवैध उगाही का जरिया बने हुए हैं. हालांकि आईवीजी टीम की पूछताछ व जांच में अवैध वसूली से जुड़ा कोई ठोस साक्ष्य सामने आने की बात अब तक सामने नहीं आयी है. हां, यहां एक दुकानदार ने अपने बयान में यह जरूर कहा कि वह बीते 17 साल से स्टेशन परिक्षेत्र में दुकान लगा रहे हैं, लेकिन उनसे किसी तरह वसूली आरपीएफ द्वारा नहीं की गयी है.
जानकारों का कहना है कि आईवीजी इंस्पेक्टर आरके सिंह आदित्यपुर में रह चुके हैं और वह आरपीएफ के सभी तरह के तंत्र व हथकंडों से पूरी तरह वाफिक हैं. वहीं टाटानगर आरपीएफ पोस्ट प्रभारी राकेश मोहन कि छवि जिम्मेदार अधिकारी वाली रही है और झारसुगुड़ा में बड़े केस उदभेदन के कारण ही वहां उनकी पोस्टिंग तत्काल आईजी ने की थी. आरपीएफ महकमे के लोग ही यह मानते हैं कि ऐसे में गुमनाम व गोपनीय शिकायत पर करायी जा रही जांच हमेशा किसी ने किसी एजेंडें अथवा विभागीय दबाव की राजनीति का हिस्सा होती है. ऐसे में जांच खानापूर्ति का हिस्सा बनेगी या किसी मुकाम पर पहुंचेगी इसमें भी संदेह जताया जा रहा. हां इसके कुछ अपवाद जरूर हो सकते हैं लेकिन अधिकांश मामलो में जांच का आलम यह होता है कि जांच की रिपोर्ट का खुलासा करने में विभागीय अधिकारियों के ही हाथ-पांव फूलने लग जाते है. ऐसा इसलिए कि इनमें जांच में नाम पर सिर्फ गोलमाल या खानापूर्ति ही होती है. इसका बड़ा उदाहरण राउरकेला व टाटानगर में अवैध वेंडिंग को लेकर करायी सीआईबी और आईवीजी की जांच है.
गोपनीय शिकायत के पीछे देख रहे “पड़ोसी” का हाथ , आरपीएफ महकमे में तेज है चर्चा
टाटानगर आरपीएफ पोस्ट के पीछे की गोपनीय शिकायत को लेकर महकमे में कई चर्चाएं हो रही है. यहां यह कहा जा रहा है कि जिस सिलसिलेवार तरीके से गोपनीय शिकायत की गयी है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस मामले में महकमे का कोई जानकार शामिल हैं. ऐसे में गोपनीय शिकायत के पीछे टाटानगर आरपीएफ पोस्ट के “पड़ोसी” का हाथ होने की चर्चा तेज है. हालांकि पड़ोसी प्रभारी के निकटवर्ती लोगों का कहना है कि आरपीएफ से जुड़े हर किसी को एक-दूसरे के वसूली सिस्टम की पूरी जानकारी रहती है और है भी. लेकिन उनका इस गोपनीय शिकायत से कोई लेना-देना नहीं है. यदि किसी की लंका जलानी ही होगी तो खुलकर हमला होगा, पर्दे के पीछे से तीर चलाने में वे लोग यकीन नहीं करते हैं.
वेतन भत्तों पर भारी खर्च, लेकिन सफेद हाथ साबित हो रही सीआईबी-आईवीजी
आरपीएफ के भीतर भ्रष्टाचार से लेकर अपराधिक मामलों की जांच के लिए बनायी गयी सीआईबी और आईवीजी की टीमें सफेद हाथी ही साबित होती रही है. हालांकि सरकार इन टीमों पर हर साल भारी भरकम खर्च करती है लेकिन इसका कोई सार्थक नतीजा नहीं निकलने की बात अब महकमे के लोग ही मानने लगे हैं. चक्रधरपुर डिवीजन में टाटा के अलावा चक्रधरपुर में सीआईबी इंस्पेक्टर के साथ बड़ी टीम काम कर रही है लेकिन बीते सालों में अगर छोटे-मोटे टिकट दलालों व दूसरे मामलों को छोड़ दिया जाये तो इन टीमों के पास निजी उपलब्धि के नाम पर कुछ बताने को नहीं है. ऐसे में अगर टाटानगर में अवैध कारोबार, वसूली अथवा भ्रष्टाचार पनप रहा है तो इसकी जानकारी से सीआईबी के लोग कैसे अनजान रहे? इन गतिविधियों की जानकारी उन्हें क्यों नहीं है? अगर ऐसा है तो उन्होंने कोई रिपोर्ट मुख्यालय को क्यों नहीं की? यह बड़ा सवाल है?
जांच से पहले साक्ष्य व शिकायतकर्ता को वेरीफाई नहीं करने पर सवाल !
टाटानगर में आईवीजी टीम की गुमनाम शिकायत पर दबिश और जांच पर महकमे के आला अधिकारी भी सवाल उठा रहे हैं. आरपीएफ के एक सेवानिवृत्त सहायक कमांडेंट ने यह कहकर इस मामले में टिप्पणी की है कि किसी गुमनाम शिकायत पर किसी जांच से पहले ठोस आधार या साक्ष्य का होना जरूरी है. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में CENTRAL VIGILANCE COMMISSION (CVC) ने भी स्पष्ट गाइडलाइन दे रखा है. उन्होंने सवाल किया कि आखिर जिम्मेदार अधिकारी ने जांच से पहले शिकायत से जुड़े साक्ष्य व शिकायतकर्ता को वेरीफाई करने की जरूरत क्यों महसूस नहीं की ? अगर सब कुछ नियमानुसार नहीं हुआ है तो यह जांच भी खानापूर्ति का हिस्सा बनकर रह जायेगा जो सरकार के खर्च व श्रमबल की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं होगा !