- ट्रेन में यात्रियों की परेशानी जानने के लिए यात्रा करेंगे रेल अधिकारी
- ट्रेनों हर दिन फेल हो रहा एसी, जिम्मेदारों पर नहीं हो रही कार्रवाई
- मरम्मत व रखरखाव के नाम पर लाखों खर्च का नहीं दिख रहा परिणाम
- सिग्नल नहीं मिलने के कारण ट्रेनों को देर तक खड़ा करना बना परेशानी
रेलहंट ब्यूरो, नई दिल्ली
ट्रेन में यात्रियों की मौतों के बाद रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को यह महसूस हुआ कि रेलवे के आला अफसरों यात्रियों की वास्तवित परेशानी समझने में फेल रहे है. इसके बाद चेयरमैन ने फिर से एक बार अफसरों को पुराने निर्देश की याद दिलायी है जिसमें उन्हें यात्रियों की परेशानी जानने के लिए ट्रेनों में यात्रा करने का निर्देश दिया गया था. यह आदेश दो साल पूर्व दिया गया था. कुछ दिन तो नियम का पालन हर जोन और मंडल में किया गया फिर आला अधिकारी इसे भूल गये. कहना गलत नहीं होगा कि रेलवे का लगभग हर बड़ा अधिकारी यात्रियों के बीच जाने से घबराता है. इसका कारण है अफसरों की आरामतलबी और ट्रेनों व स्टेशनों पर उपलब्ध सेवाओं की गुणवत्ता में आयी गिरावट है. जिसकी जिम्मेदारी लेने से हर कोई कतरा रहा है. वहीं रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अश्विनी लोहानी से लेकर वर्तमान चेयरमैन विनोद कुमार यादव तक रेलवे के आला अधिकारियों को कम्फॅर्ट जोन से बाहर निकालने में नकाम रहे है.
45 डिग्री के तापमान में रेलवे अफसर काम का बोझ बताकर वातानुकूलित कमरों से बाहर निकलना नहीं चाहते तो यात्रियों को ट्रेनों में मरने के लिए छोड़ दिया गया है. इसका उदाहरण है 10 जून को केरल एक्सप्रेस में आगरा और झांसी के बीच स्लीपर कोच में चार यात्रियों की मौत का. एक तो गर्मी और ऊपर से सिग्नल नहीं मिलने के नाम पर जहां-तहां ट्रेनों को खड़ा कर दिया जाता है. रेलवे की पूरी परिचालन व्यवस्था इन दिनों पटरी से उतरती नजर आ रही है. 60 किलोमीटर की दूरी तय करने में ट्रेनों को तीन से चार घंटे लग जा रहे है. बीते दिनों चक्रधरपुर रेलमंडल की बेपटरी हुई परिचालन व्यवस्था के लिए रेलवे बोर्ड तक को कड़ा निर्देश जारी करना पड़ा था. कुछ जोन में परिचालन की जिम्मेदारी संभालने वाले डीओएम और एओएम से यह लिखित तक लिया गया कि वह कोचिंग ट्रेनों के आगे गुडस का परिचालन नहीं करेंगे, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं आया. रेलवे बोर्ड की फटकार के बावजूद परिचालन में सुधार प्रतिशत 20 से भी कम है.
दिलचस्प बात यह है कि देश के हर हिस्से में दौड़ रही 20 फीसदी से अधिक ट्रेनों में हर दिन एसी फेल होने की शिकायत मिल रही है. इसे लेकर यात्री परेशान है. शिकायत करने पर जबाव मिलता है कि अगले स्टेशन पर एसी की मरम्मत करायी जायेगी लेकिन मरम्मत नहीं हो पाती. इस तरह गर्मी में उबलते बच्चे-बूढ़े और जवान अपनी यात्री पूरी करने को मजबूर होते है लेकिन एसी के फेल होने के लिए जिम्मेदार लोगों पर कभी कोई कार्रवाई किये जाने की कोई मामला अब तक सामने नहीं आया. जबकि सर्वविदित है कि रेलवे के एसी मेंटेनेंस विभाग द्वारा जांच के बाद फिट देने के बाद ही एसी कोच को ट्रेन के साथ जोड़ा जाता है. जाहिर सी बात है कि एसी की मरम्मत और रखरखाव में अक्षम्य लापरवाही और लाखों रुपये का गोलमाल विभागीय अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है जिसमें नीचे के तकनीकी कर्मचारी से लेकर आला अधिकारी तक की भूमिका संदिग्ध हो जाती है. अगर इस मामले में डीआरएम से लेकर जीएम और चेयरमैन तक गंभीर होते तक शायद कहर बरपाती गर्मी में ट्रेनों को जहां तहां खड़ा कर दिये जाना यात्रियों की मौत का कारण न बन पाता, न ही बीच रास्ते में ट्रेनों में एसी काम करना बंद करता.
वरिष्ठ अधिकारियों के ट्रेन में सफर करने और यात्रियों की परेशानियों से रूबरू होने के बारे में पहले भी निर्देश जारी किए जा चुके हैं, लेकिन उन पर गंभीरता नहीं बरती जा रही है. इसलिए सभी जीएम, डीआरएम तथा यूनिट हेड व्यक्तिगत रूप से सुनिश्चित करें कि उनके मातहत कार्य कर रहे अधिकारी बार-बार ट्रेनों में यात्रा करें और यात्रियों की मुश्किलों का मौके पर समाधान करें.
विनोद कुमार, चेयरमैन, रेलवे बोर्ड
हालांकि एक बार फिर चेयरमैन ने यात्रियों की मुश्किलें कम करने के लिए अधिकारियों को ट्रेन में सफर करने का निर्देश जारी किया है. रेलवे बोर्ड अध्यक्ष विनोद यादव ने इस संबंध में सभी महाप्रबंधकों को निर्देश जारी किए हैं. सभी जोनों के महाप्रबंधकों को भेजे पत्र में रेलवे बोर्ड अध्यक्ष ने लिखा है कि वरिष्ठ अधिकारियों के ट्रेन में सफर करने और यात्रियों की परेशानियों से रूबरू होने के बारे में पहले भी निर्देश जारी किए जा चुके हैं, लेकिन उन पर गंभीरता नहीं बरती जा रही है. इसलिए सभी जीएम, डीआरएम तथा यूनिट हेड व्यक्तिगत रूप से सुनिश्चित करें कि उनके मातहत कार्य कर रहे अधिकारी बार-बार ट्रेनों में यात्रा करें और यात्रियों की मुश्किलों का मौके पर समाधान करें.
चेयरमैन के अनुसार अपने आधिकारिक दौरों में उन्हें कोच की स्थिति का मुआयना करना चाहिए और यात्रियों की शिकायतें सुननी चाहिए. यही नहीं, प्रत्येक दौरे के बाद इसकी रिपोर्ट भी तैयार कर भेजनी चाहिए. सभी महाप्रबंधकोंको सुनिश्चित करना होगा कि निर्देशों का अनुपालन हो और मुआयने तथा यात्रियों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर सुधारात्मक कदम उठाए जाएं. यादव ने लिखा है कि ट्रेनो में यात्रियों के बीच स्वयं यात्रा करके ही अधिकारी रेल सेवाओं की वास्तविक स्थिति समझ सकते हैं. सिर्फ इसी से सेवाओं की हकीकत पता चल सकती है और सुधार के नए उपायों पर काम किया जा सकता है.
गौरतलब है कि ट्रेनों के भीतर यात्री सेवाओं की स्थिति का पता लगाने और उनमें सुधार करने के लिए रेलवे बोर्ड ने दो वर्ष पहले अधिकारियों को स्लीपर समेत हर श्रेणी में यात्रा करने तथा यात्रियों से फीडबैक लेने के निर्देश जारी किए थे. कुछ समय तक को इनका सही ढंग से पालन हुआ, लेकिन बाद में खानापूरी होने लगी. इससे सेवाओं में गिरावट की शिकायतें मिलने लगी हैं. पिछले दिनों केरल एक्सप्रेस में कुछ यात्रियों की भीड़ और गर्मी के कारण मौत को रेलवे बोर्ड चेयरमैन ने अधिकारियों की लापरवाही माना है और इसी क्रम में पुराने निर्देशों के कड़ाई से अमल की ताकीद की है. यह देखने वाली बात होगी कि रेलवे बोर्ड के वर्तमान चेयरमैन वीआइपी संस्कृति से इतर जाकर अफसरों को वातानुकूलित कार्यालय से बाहर निकालकर किस हद तक यात्रियों को बीच ला पाते है.