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टाटानगर : सुनील पिल्लई आत्मदाह मामले से टाटानगर आरपीएफ ने झाड़ा पल्ला, प्रेस कांफ्रेंस कर दी सफाई

टाटानगर : सुनील पिल्लई आत्मदाह मामले से टाटानगर आरपीएफ ने झाड़ा पल्ला, प्रेस कांफ्रेंस कर दी सफाई
पत्रकारों के सामने अपना पक्ष रखते आरपीएफ प्रभारी व सहायक कमांडेंट
  • वरीय अधिकारियों के संज्ञान में हुई सारी कार्रवाई, उनके दिशा-निर्देश पर ही कदम उठाये गये
  • सुनील पिल्लई के जलने के समय आरपीएफ का कोई अधिकारी व जवान मौजूद नहीं था : नायक
  • 2004 की वन टाइम पॉलिसी में अगर लीज ट्रांसफर का नियम है तो पावर ऑफ अटर्नी क्यों

JAMSHEDPUR. रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी में लीज जमीन के विवाद में रेलकर्मी सुनील पिल्लई के आत्मदाह के मामले से टाटानगर आरपीएफ ने सीधे-सीधे पल्ला झाड़ लिया है. टाटानगर आरपीएफ पोस्ट में घटना के बाद बुलाये गये पत्रकार सम्मेलन में आरपीएफ के सहायक सुरक्षा आयुक्त केसी नायक, पोस्ट प्रभारी संजय कुमार तिवारी ने रेलवे का पक्ष रखा. इस मौके पर रेलवे लैंड विभाग के एसएसई आरके सिंह भी थे.

आरपीएफ के सहायक सुरक्षा आयुक्त व पोस्ट प्रभारी संजय कुमार तिवारी ने बताया कि अब तक की जो कार्रवाई सुनील पिल्लई के मामले में की गयी है वह रेलवे के वरीय पदाधिकारियों के संज्ञान में थी और उनके दिशा-निर्देश पर ही कदम उठाये गये. आरपीएफ अधिकारियों ने बताया कि सुनील पिल्लई का दावा था कि प्लांट नंबर टीसी-53 की जमीन पिता रामनाथ पिल्लई को 1984 में लीज में मिली थी. लेकिन रेलवे रिकॉर्ड में 23.1.1984 से लीज विक्रमा तिवारी के नाम थी. 2004 में आये वन टाइम पॉलिसी प्रावधान के तहत उन्होंने 2011 जमीन की पावर ऑफ अटर्नी ओम प्रकाश कसेरा को दे दी थी. ओम प्रकाश कसेरा ने ही 1985 से 2024 तक का रेलवे का किराया जमा कराया.

सवाल यह उठाया जा रहा है कि रेलवे इंजीनियरिंग विभाग व आरपीएफ के पास दर्जनों अतिक्रमण व अनियमितता के मामले दबे पड़े हैं. ऐसे में 14 जून को लीजधारी को मिले जरूरी मरम्मत कराने के आदेश के मात्र 14 दिन बाद ही जमीन पर कब्जा दिलाने की बेचैनी आईओडब्ल्यू और आरपीएफ अधिकारियों को क्यों हो गयी थी ? इसके पीछे कौन से गणित व आदेश काम कर रहा था ?

आरपीएफ ने पत्रकारों को बताया कि लीजधारी विक्रमा तिवारी ने 18 अप्रैल 2023 को डीआरएम कार्यालय में लीज जमीन पर कार्य कराने का आवेदन दिया था, जिसे 14 जून को स्वीकृति मिली. एइएन के पत्र पर 28 जून को आरपीएफ की टीम जमीन पर कार्य में सहयोग देने गयी थी. उस दौरान सुनील पिल्लई की पत्नी निरुपमा और दोनों बेटियों अंजली और मनीषा ने विरोध किया. केरोसिल डालकर आत्मदाह करने की चेतावनी देने पर आरपीएफ की टीम सभी को पोस्ट ले आयी ताकि उनके जान की रक्षा की जा सके. इस बीच किसी के आत्मदाह करने की सूचना मिली. बाद में पता चला कि वह सुनील पिल्लई ही हैं. आरपीएफ के सहायक कमांडेंट केसी नायक ने दावा किया कि सुनील के आत्मदाह के प्रयास करने के समय आरपीएफ का कोई जवान या पदाधिकारी वहां नहीं था. पिता के आत्मदाह के प्रयास की सूचना के बाद दोनों बेटियों और पत्नी को आरपीएफ ने छोड़ दिया था.

आरपीएफ पदाधिकारियों ने क्या कहा, सुनिये 

आरपीएफ के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि अब तक जो कुछ हुआ वह वरीय अधिकारियों के गाइडलाइन और जानकारी में था और आगे की कार्रवाई भी वरीय अधिकारियों के दिशा-निर्देश के अनुसार की जायेगी. हालांकि सुनील पिल्लई की पुत्री मनीषा पिल्लई के बिना वर्दी में आरपीएफ के लोगों के पहुंचने के आरोपों पर अधिकारियों ने कहा कि अधिकारी व जवान वर्दी में ही घटना स्थल पर गये थे.

आरपीएफ की सफाई के बीच उठ रहे कई अहम सवाल

  • प्रेस कांफ्रेंस करने की आवश्यकता क्यों पड़ी और आरपीएफ ने कैसे स्पष्टीकरण दिया
  • रेलवे का पक्ष रखने सीनियर डीसीएम/पीआरओ अथवा कोई बड़ा अधिकारी क्यों नहीं आया
  • लॉ एंड आर्डर की समस्या जानने हुए भी बिना बागबेड़ा थाना के बिना आरपीएफ वहां क्यों गयी
  • 28 जून को महिलाओं को आरपीएफ ने हिरासत में लिया तो रिहाई बागबेड़ा थाना से क्यों हुई
  • 2004 की वन टाइम पॉलिसी में अगर लीज ट्रांसफर का नियम है तो पावर ऑफ अटर्नी क्यों
  • लीज जमीन पर निर्माण के लिए विक्रमा तिवारी के नाम पर आवेदन किसने और क्यों दिया
  • अगर ओमप्रकाश कसेरा को लीज/पावर मिल गया था यह आवेदन उन्होंने क्यों नहीं किया
  • पत्नी-बेटियों को पकड़कर पोस्ट लाने वाले आरपीएफ अधिकारी घर में पति को कैसे भूल गये

रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी में लीज की जमीन पर लॉ एंड आर्डर की समस्या जानते हुए भी बिना बागबेड़ा पुलिस के आईओडब्ल्रू और आरपीएफ द्वारा 28 जून 2023 को की गयी कार्रवाई कई सवालों को जन्म दे रही है. इसका जबाव रेलवे कर्मचारी और पीड़ित पक्ष के लोग भी जानना चाहते हैं. सवाल यह उठाया जा रहा है कि रेलवे इंजीनियरिंग विभाग व आरपीएफ के पास दर्जनों अतिक्रमण व अनियमितता के मामले लंबित दबे पड़े ह्रैं. ऐसे में 14 जून को लीजधारी को मिले जरूरी मरम्मत कराने आदेश के मात्र 14 दिन बाद ही जमीन पर कब्जा दिलाने की बेचैनी आईओडब्ल्यू और आरपीएफ अधिकारियों को क्यों हो गयी थी ? इसके पीछे कौन से गणित व आदेश काम कर रहा था ?

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