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टाटानगर : पानी की काली कमाई पर फिसल गया रेलवे, तीन दिन बाद रोकी मैकडावेल की सप्लाई

टाटानगर : पानी की काली कमाई पर फिसल गया रेलवे, तीन दिन बाद रोकी मैकडावेल की सप्लाई
  • कार्रवाई में पिक एंड चूज का लग रहा आरोप, सफाई देने में आनाकानी कर रहे अफसर
  • रेल नीर की सप्लाई बाधित कर निजी कंपनियों के मुनाफे में हाथ धोने का चल रहा खेल
  • आंख बंद कर तमाशा देख रहे आईआरसीसीटी जीजीएम से लेकर रेलवे के आला अधिकारी 
  • मैकडावेल का जब्त पानी कहा गया, अगर उसकी नीलामी की गयी तो किसके आदेश से ?

जमशेदपुर से डॉ अनिल. कहर बरपाती गर्मी में पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे यात्रियों की चिंता छोड़कर रेलवे अधिकारी पानी की काली कमाई में हाथ धोने में जुट गये है. जनवरी-फरवरी तक रेल नीर की चिंता में दुबले हो रहे चक्रधरपुर रेलमंडल के अधिकारियों की चिंता इन दिनों कुछ चुनिंदा बोतलबंद पानी की आपूर्ति बड़े स्टेशन पर सुनिश्चित करने को लेकर देखी जा रही. इसी क्रम में बड़ा विवाद तब सामने आया जब रेलमंडल से ही स्वीकृत मेकडावेल ब्रांड के पानी की आपूर्ति को टाटानगर में अचानक रोकने का मौखिक आदेश जारी किया गया और आनन-फानन में आपूर्ति किये गये 150 से अधिक पानी की पेटी को वाणिज्य विभाग की टीम ने जब्त कर लिया. यह कार्रवाई भी आपूर्ति शुरू होने के तीन दिन बाद की गयी. सवाल यह उठता है कि अगर इस ब्रांड को स्वीकृति नहीं मिली थी अथवा उसने रिनुअल नहीं कराया था जो तीन दिन तक मैकडावेल ब्रांड का पानी स्टेशन पर कैसे बिका? किस नियम और किसके आदेश से सप्लाई हो चुका पानी जब्त किया गया और किसके आदेश और किस प्रावधान के तहत उसे नीलाम भी कर दिया गया? अब इन सवालों का जबाव रेलवे को देना है.

बताया जा रहा है कि एक आला अधिकारी के दिशा-निर्देश पर आठ ब्रांड की स्वीकृति के बावजूद सबसे अधिक पानी के खपत वाले स्टेशन टाटानगर में एक ही ब्रांड के पानी को अघोषित रूप से बिक्री के लिए प्रमोट किया जा रहा है. शायद यही वजह रही कि भीषण गर्मी में रेलनीर की कमी के स्थिति में वैकल्पिक उपायों पर ध्यान देने की पूर्व तैयारी से अधिक अधिकारियेां की दिलचस्पी इस बात में दिख रही है कि किस ब्रांड का पानी स्टेशन पर बिकेगा और किस ब्रांड का नहीं. हर साल की तरह इस साल भी गर्मी में पानी की इस काली कमाई को लेकर आपूर्तिकर्ता से लेकर आईआरसीटीसी और रेल अधिकारियों की मौन सहमति से बड़ा खेल शुरू हो गया है.

टाटानगर : पानी की काली कमाई पर फिसल गया रेलवे, तीन दिन बाद रोकी मैकडावेल की सप्लाई

रेलवे द्वारा दिया गया स्वीकृति आदेश

अब अगर मैकडावेल पानी की सप्लाई रोके जाने की बात करें, तो अखबारों में प्रकाशित सूचना के अनुसार मैकडावेल ब्रांड के पानी की सप्लाई रोकने की कार्रवाई चक्रधरपुर मंडल वाणिज्य प्रबंधक अर्जुन मुजुमदार के आदेश पर की गयी. कार्रवाई करने से पूर्व मीडिया को यह बताया गया मैकडावेल की आपूर्ति एजेंसी ने लाइसेंस का रिनुअल नहीं कराया है. इसके विपरीत मैकडावेल की सप्लाई करने वाले अलखनंदा बेवरेज के प्रोपाइडर व फ्रेंचाइजी प्रवीण कुमार ने रेलवे की पूरी कार्रवाई को यह कहकर खारिज कर दिया कि मैकडावेल ब्रांड पूरी तरह से रेलवे नियमों के अनुसार स्वीकृत है और उन्हें अब तक रेलवे से किसी तरह पानी के लाइसेंस के रिनुअल कराने अथवा पूर्व में स्वीकृत आदेश को रद्द करने की कोई सूचना ही नहीं दी गयी है. उन्होंने अचानक रेलवे द्वारा की गयी कार्रवाई पर सवाल उठाया और आरोप लगाया कि रेल अधिकारी मैकडोवेल की आपूर्ति बाधित कर किसी खास एजेंसी को फायदा पहुंचाने के लिए पिक एंड चूक की नीति पर चल रहे है, जिसके लिए वही सही मंच पर आवाज उठायेंगे. उन्होंने कहा कि 16, 17 और 18 अप्रैल तक आपूर्ति होने के बाद पानी को रोका गया, यह अपने आप में बड़ा सवाल है, क्या अधिकारी उनसे कुछ उम्मीद पाले हुए थे?

कागज में फंसा पेंच, कैटरिंग इंस्पेक्टर ने किया था गैरकानूनी कार्रवाई करने से इनकार

पूरे मामले में जो बात सामने आयी है कि वह कि रेल नीर की किल्लत शुरू होने के बाद टाटानगर में तैनात आईआरसीटीसी के अधिकारियों ने मैकडावेल की एजेंसी से संपर्क पर पानी की आपूर्ति तत्काल शुरू करने का अनुरोध किया था. सामान्य बाजार में 20 रुपये का प्रिंट बेचने वाली अलखनंद वेबरेज ने रेलवे के लिए स्पेशल रूप से 15 रुपये प्रिंट वाले बोतलों की आपूर्ति शुरू की. अचानक तीन दिन बाद रेलमंडल से मैकडावेल की सप्लाई बंद करने का मौखिक आदेश आ गया. बताया जाता है कि टाटानगर में तैनात खानापान अधिकारी ने स्पष्ट रूप से आदेश जारी करने वाले पदाधिकारी को कहा कि पहले उन्हें लिखित आदेश दिया जाये तभी वे इस आपूर्ति को रोकने की कार्रवाई करेंगे. उनके इनकार करने के बाद सीआई टाटा एके सिंह और डिप्टी एसएस कामर्शियल एसके पति व अर्पिता माइती को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी जिन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे आनन-फानन में 150 पेटी से अधिक पानी जब्त कर लिया. यह कार्रवाई किसके लिखित अथवा मौखिक आदेश पर की गयी अब इसे लेकर सभी अधिकारियों ने चुप्पी साध ली है. पूरे प्रकरण में जानकारों का कहना है कि रेलवे अधिकारी ने मैकडावेल की आपूर्ति को हरी झंडी दिये जाने के बाद तीन दिन तक इंतजार किया कि उसका प्रतिनिधि चक्रधपुर आकर मिलेगा और हर साल की तरह दस्तुरी की रस्म निभायी जायेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं होने पर दबाव बनाने के लिए आनन-फानन में मैकडावेल की आपूर्ति रोकने का गैरकानूनी फरमान सुना दिया गया.

एग्रीमेंट में लाइसेंस रिनुअल कराने का प्रावधान है ही नहीं, कैस दिया आदेश

टाटानगर : पानी की काली कमाई पर फिसल गया रेलवे, तीन दिन बाद रोकी मैकडावेल की सप्लाईइधर, मैकडावेल के प्रोपराइटर प्रवीण कुमार ने रेलवे से जारी स्वीकृति पत्र प्रस्तुत करने बताया कि अनुबंध भी सिर्फ बीआइएस स्टैंडर्ड मैनटेन करने को कहा गया. इसमें कही यह बात नहीं दर्ज है कि लाइसेंस का रिनुअल करना है अथवा नहीं. इसके लिए 2013 में लाइसेंस मिलने के छह साल में कभी कोई प्रक्रिया नहीं की गयी न ही रेलवे से कोई सवाल उठाया गया. फिर अचानक किसी स्वीकृत ब्रांड के पानी की आपूर्ति क्यों और किसके आदेश से रोकी गयी यह जांच का विषय है.

यह भी पढ़े : रेलनीर घोटाला में आरोपी आईआरटीएस अधिकारी एमएस चालिया और संदीप साइलस को राहत

विदित हो कि रेलवे ने रेल नीर की आपूर्ति प्रभावित होने की स्थिति में दक्षिण पूर्व रेलवे जोन में एक्वाफिना, किंग्ले, ऑक्सीरिच, बोलबो, बैली, बिस्लरी, एक्वास्योर और मैकडावेल बोतलबंद पानी की आपूर्ति को स्वीकृति दी है. इसमें एक्वास्योर और मैकडावेल को चक्रधरपुर रेल मंडल से स्वीकृति दी गयी है. ऐसे में जब कि एक्वास्योर पानी चक्रधरपुर समेत दूसरे स्टेशनों पर धड़ल्ले से बेचा जा रहा है. टाटानगर में सिर्फ एक ब्रांड बिस्लरी का पानी की स्टॉल पर बिक्री के उपलब्ध होना अपने आप में बड़ा सवाल है. अब तक चक्रधरपुर रेलमंडल के अधिकारी इस मामले में चुप है.

मुनाफे के खेल में सारे कानून तक पर, अवैध रूप से लाया जा रहा पानी

उल्लेखनीय है कि निजी फर्मों द्वारा बोतल बंद पीने का पानी (पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर) 4 रुपये से 6 रुपये अथवा ज्यादा से ज्यादा 6.50 रुपये प्रति बोतल के हिसाब से आपूर्ति किया जाता है, जो कि प्लेटफार्मों पर स्थित अचल खानपान इकाईयों (स्टालों) और चलती गाड़ियों की पैंट्रीकारों को सीधे उपलब्ध कराया जाता है. चूंकि आईआरसीटीसी द्वारा ‘रेलनीर’ की आपूर्ति लगभग 10.50 रुपये से 11 रुपये प्रति बोतल के हिसाब से स्टालों और पैंट्रीकारों को की जाती है, अतः रेलनीर बेचने में उन्हें कम मुनाफा मिलता है, जबकि निजी फर्मों द्वारा आपूर्ति किया जाने वाला पानी बेचने पर उन्हें प्रति बोतल डेढ़ गुना से भी ज्यादा मुनाफा मिलता है. यही कारण है कि गर्मी के शुरू होते ही पानी की आपूर्ति करने वाली सभी एजेंसियों किसी न किसी रूप में रेल नीर की आपूर्ति को प्रभावित करने का प्रयास करती है. इसमें अहम रोल रेलवे के अधिकारी भी निभाते है और फिर आपसी मिलीभगत से चुनिंदा ब्रांड के बोतलबंद पानी की आपूर्ति शुरू कर पानी की काली कमाई में सभी मिलकर हाथ धोते है. अभी टाटानगर में ट्रेन में अवैध रूप से विभिन्न स्टेशनों से रेलनीर लाया जा रहा है जिसे रोकने से अधिक दिलचस्पी दूसरे ब्रांड के बोतलों को जब्त करने में दिखायी जा रही है, इसका कारण समझा जा सकता है.

यह भी जाने : पानी का काला कारोबार : आरटीआइ कार्यकर्ता और ठेकेदार के बीच भिड़ंत में फंसा रेलवे

सूचनाओं पर आधारित इस समाचार से जुड़े दूसरे तथ्य  और बिंदुओं की जानकारी का स्वागत है.   

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