- बालासोर हादसे के बाद निशाने पर एसएंडटी विभाग, दबाव में कर्मचारी, यूनियन उठा रही सवाल, नहीं मिल रहा जबाव
NEW DELHI. बालासोर में 275 से अधिक मौतें और हजारों यात्रियों के घायल होने की घटना के बाद जो बेचैनी रेलवे में देखी जा रही थी वह धीरे-धीरे कुंद होती जा रही है. लाशों का ढेर कम होते जा रहा है तो रेल परिचालन बहाल होने के बाद सब कुछ पटरी पर होता दिखाया जा रहा. हादसे के कारणों पर सबसे पहले जो बात सामने आयी वह सिग्नलिंग प्रणाली में चूक की थी. वह प्रणाली जिस पर रेलवे का पूरा सिस्टम टिका हुआ है. इस प्रणाली को संचालित करने की जिम्मेदारी है सिग्नल एंड टेलीकॉम विभाग के कर्मचारियों की, जो इस दुर्घटना के बाद गहरे दबाव में हैं. दुर्घटना के कारणों की जांच सीबीआई कर रही है और देर-सबेर सही बात सामने आयेगी लेकिन इसके बीच रेलवे की कार्यप्रणाली को भी उजागर करने की जरूरत महसूस की जा रही ताकि आने वाले समय में मानवीय चूक के कारण होने वाले हादसों को टाला जा सके.
बालासोर हादसें ने सिग्नलिंग सिस्टम के महत्व को अधिक समझने की जरूरत महसूस करायी है. सिगनल और टेलीकाम विभाग के कर्मचारियों के आंदोलन के बाद उनकी मांगों को रेलवे बोर्ड तक पहुंचाने की व्यवस्था प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने करते हुए 14 नवम्बर, 2016 को अखिल अग्रवाल को स्वतंत्र प्रभार वाला पहला D G (S&T) बनाया था. 16 अप्रैल, 2019 को एन काशीनाथ को दूसरे D G (S&T) को Member (S&T) बनाया गया. अचानक अपने ही निर्णय को पलटते हुए सरकार ने 8 सितंबर, 2020 को Member (S&T) पद खत्म कर इसे Member (Infrastructure) के साथ मर्ज कर दिया गया और दूसरे Member (S&T) को Member (Infrastructure) बना दिया गया.
सिगनल और टेलीकाम विभाग के कर्मचारियों की मांगों को उठाती आ रही इंडियन रेलवे सिग्नल एंड कम्यूनिकेशन मेंटेनर्स यूनियन (IRSTMU) का कहना है कि अगर संरक्षित और सुरक्षित परिचालन में उनका इतना महत्व है तो उनकी देख-रेख करने वालों की परेशानी, मानसिक दबाव, अस्त-व्यस्त कार्यप्रणाली को जानने-समझने से अधिकारियों को परहेज क्यों है? सवाल उठाया जा रहा कि जब ट्रेनों का परिचालन 24 घंटे चलता है, सिगनलिंग फेलियर कभी भी हो सकता है तो तो सिग्नलिंग स्टाफ की ड्यूटी शिफ्ट क्यों नहीं दी जा रही? आठ घंटे की नौकरी के बाद घर में सो रहे व्यक्ति को नींद में ही फ्लियोर होने पर काम करने के लिए क्यों बुलाया जाता है ? अब अगर उस मानसिक स्थिति में उससे गलती हो गई तो जवाबदेह कौन होगा ?
यह मामूली लगती है पर सिग्नलिंग इंटरलॉकिंग सिस्टम को लेकर आज बहस छिड़ी हुई है. तो इस सिस्टम का मेंटेनेंस करने वालों की परेशानी, उपयोगिता व कार्यप्रणाली को नजरअंदाज कैसे किया जा सकता है. यूनियन का कहना है कि सिग्नल देकर ट्रेन को रवाना करने वाले स्टेशन मास्टर को शिफ्ट ड्यूटी व आपात स्थिति में सभी भत्ते देय होते है जबकि उस सिग्नल के इंटरलॉकिंग सिस्टम को मेंटेन व फेलियर को ठीक करने वाले एसएंडटी के कर्मचारियों को कभी शिफ्ट ड्यूटी नहीं दी गयी. सिग्नल में खराबी आते ही उन्हें कभी भी रात-दिन बुलाया जाता है. फेल्योर अटेंड करने में देरी होने पर चार्जशीट, वार्निग लेटर, सस्पेंड या एबसेंट का दंड दे दिया जाता है .HOER, 2005 का उल्लंघन लगातार किया जाता है.
यूनियन के महामंत्री आलोकचंद्र प्रकाश का कहना है कि सिग्नलिंग फेलियर सिग्नल की खराबी के अलावा गेट टूटने, रेल टूटने, सिगनल उपकरणों के चोरी आदि में हो सकते है लेकिन यह अनसेफ नहीं होते. इनके फेल होते हैं और सिग्नल लाल होकर गाड़ी को दुर्घटना से बचाते हैं. लेकिन सिग्नल फेल होने पर जी एडं एस आर के नियमों के तहत ट्रेन को चलाने के लिए स्टेशन मास्टरों को निर्देश दिया गया है. उनका कहना है कि स्टेशन मास्टर अपनी मेहनत बचाने के लिए सिग्नलिंग स्टाफ पर दबाव बनाते हैं और सिग्नल ठीक करने के लिए जल्दीबाजी के लिए प्रेरित करते हैं. सिग्नलिंग स्टाफ को लगातार फोन कर यह दबाव बनाया जाता है. जो स्वस्थ कार्यप्रणाली में बाधक बनता है.
इंडियन रेलवे एस एडं टी मैंटेनरर्स यूनियन का कहना है कि आज जो पारिस्थितियाँ हमारे सामने है उसमें ऑलरेडी दबाव में कार्य करने वाले सिगनलिंग स्टाफ के ऊपर और ज्यादा दबाव बनाया जा रहा है और गलतियों के मूल कारणों का समाधान नहीं किया जा रहा. इसमें जरूरी संशोधन करने की आवश्यकता है.
इंडियन रेलवे एस एडं टी मैंटेनर्स यूनियन की मांगें
- तत्काल सिगनल और टेलीकाम विभाग के सभी रिक्त पदों को भरा जाए तथा Norms/Yardsticks for the Non-Gazetted Group C Signalling Staff of the Indian Railways as per Railway Board Letter No.: E(MPP)2021/1/16 dated: 28.12.2022 (RBE No. 170/2022) को लागू किया जाए और इसके अनुसार नये पोस्टों का सृजन किया जाए ताकि ट्रेनों के और ज्यादा संरक्षित और सुरक्षित परिचालन में मदद मिल सके.
- Member (S&T) पद का वापस से सृजन किया जाए जो कि ऐतिहासिक निर्णय पीएम ने लिया था
- सिगनलिंग स्टाफ की दो लेवल पर नियुक्ति होती है. पहली तकनीशियन ग्रेड 3 में जो लेवल 2 में आते हैं और इनकी ऐंट्री क्वालिफिकेशन फिजिक्स और गणित के साथ 10+2 या दो साल की ITI के आधार पर नियुक्त होती है. दूसरे तकनीशियन ग्रेड 1 लेवल-5 में जिनकी ऐंट्री क्वालिफिकेशन फिजिक्स, गणित, इंस्ट्रूमेंटेशन, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक में स्नातक होती है पर ये मात्र 15% सीट भी आज तक खाली पड़ी है क्योंकि यह परिवर्तन वर्ष 2018 में तकनीशियन ग्रेड 2 की सीधी भर्ती के स्थान पर की गई थी जिसे आज तक नहीं भरा गया है.
आखिर इतने सारे रिक्त पदों को कब भरा जाएगा ?
इंडियन रेलवे सिग्नल एंड कम्यूनिकेशन मेंटेनर्स यूनियन (IRSTMU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन कुमार ने कहा कि सिग्नलिंग सिस्टम के महत्व को देखते हुए नियुक्तियां 100% सीधे तकनीशियन ग्रेड 1 में किये जाने की आवश्यकता है ताकि इतने महत्वपूर्ण सिस्टम को क्वालिफाइड लोगों द्वारा चलाया जा सके. इसके अलावा इनकी नियुक्ति प्रक्रिया में स्टेशन मास्टरों की नियुक्ति प्रक्रिया के समान करते हुए साइकलॉजिक टेस्ट को अनिवार्य किया जाना चाहिए तथा इनकी ऐंट्री क्वालिफिकेशन फिजिक्स, गणित, इंस्ट्रूमेंटेशन, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक में स्नातक होनी चाहिए ताकि कठिन से कठिन फेलियर को ठीक करने में सही विवेक का इस्तेमाल करें और दबाव में आ कर किसी भी प्रकार की गलती ना करें. यही नहीं रिक्त पदों को भरने की तत्काल आवश्यकता है.