- रेलकर्मी का दावा – पिता को मिली थी लीज, जालसाजी कर कारोबारी को दिलाया जा रहा कब्जा
JAMSHEDPUR. चक्रधरपुर रेलमंडल के टाटानगर में लीज की जमीन पर कब्जा दिलाने गये इंजीनियरिंग विभाग और आरपीएफ की टीम की कार्रवाई का विरोध करते हुए रेलकर्मी सुनील पिल्ले (58) ने बुधवार 28 जून को आत्मदाह करने की कोशिश की. गंभीर स्थिति में रेलकर्मी को टीएमएच में भर्ती कराया गया है. पिल्ले टाटानगर इलेक्ट्रिक लोको शेड में सीनियर टेक्नीशियन हैं. सुनील का दावा है कि रेलवे ने उनके पिता को प्लॉट नंबर 53 की जमीन 99 साल के लिए जमीन लीज पर दी थी. यह जमीन रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी के क्वार्टर नंबर टी-45/7 के बगल में स्थित है. इस पर रेलवे इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारी कारोबारी ओमप्रकाश कसेरा (प्रकाश स्टोर) को कब्जा दिलाने का प्रयास कर रहे हैं.
रेलवे अधिकारियों के अनुसार रिकार्ड में यह प्लाट विक्रमा तिवारी के नाम से आवंटित है. जिससे अधिकार लेकर ओमप्रकाश कसेरा यहां गोदाम बनाने का प्रयास कर रहा है. इसका विरोध रेलकर्मी के परिवार दिया किया जा रहा था. ऐसा बताया जाता है कि कारोबारी ही जमीन की लीज रेंट का किराया भी चुका रहा है. हालांकि रसीद अब भी विक्रमा तिवारी के नाम से कट रही है. रेलवे नियमों के अनुसार लीज जमीन के नाम का स्तानांतरण परिवार के नाम से ही हो सकता है लेकिन कई लोगों ने आपसी मिलीभगत से एग्रीमेंट बनाकर जमीन पर दूसरों का अधिकार दे दिया है. टाटानगर में रेलवे लीज जमीन के लगभग 80 फीसदी मामलों में यह हुआ है और वास्तवित लीजधारी की जगह दूसरे व्यक्ति का जमीन पर कब्जा चल रहा है.
रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी के प्लॉट नंबर 53 पर दावा जताने वाले ओमप्रकाश कसेरा (प्रकाश स्टोर) की ओर से रेलवे लैंड विभाग को दिये गये आवेदन के बाद आरपीएफ की टीम आज जमीन पर कब्जा दिलाने गयी थी. इस बीच सुनील पिल्लई की पत्नी और बेटी ने काम रोक दिया. दोनों ने केरोसिन से खुद को जलाने की कोशिश की. दोनों को हिरासत में लेने के बाद रेलकर्मी सुनील पिल्लई ने जमीन पर अपना दावा जताते हुए किरोसिन डालकर आत्मदाह करने का प्रयास किया. उसे तत्काल अस्पताल ले जाया गया.
सुनील पिल्लई ने कहना है कि ट्रैफिक कॉलोनी के क्वार्टर नम्बर- टी-45/7 से सटी लीज की खाली जमीन प्लॉट नंबर 53 पर ओम प्रकाश कसेरा जालसाजी व इंजीनियिरंग विभाग के लोगों से मिलकर कब्जा करने का प्रयास कर रहा है. वह जमीन राम नाथ पिल्लई यानी उनके पिता को मिली थी. उनकी मौत के बाद बड़े भैया अनिल पिल्लई व विक्रमा तिवारी ने ओम प्रकाश कसेरा के साथ मिलकर गलत दस्तावेज बनाया और रेलवे इंजीनियरिंग विभाग से मिलकर जमीन पर कब्जा करना चाहता है.
घटना के बाद से टाटानगर का रेलवे इंजीनियरिंग विभाग व आरपीएफ बचाव की मुद्रा में है. सवाल यह अहम है कि जब प्लॉट विक्रमा तिवारी के नाम से आवंटित है तो रेलवे इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारी किस तरह ओमप्रकाश कसेरा को जमीन का कब्जा दिलाने के लिए कानूनी कार्रवाई कर रहे थे? रेलवे लीज के नियमों के अनुसार जमीन पर किसका दावा बनता है? इसके लिए जरूरी जांच की प्रक्रिया पूरी की गयी या नहीं? क्या इंजीनियरिंग विभाग व आरपीएफ के अधिकारी कारोबारी के प्रभाव में यह काम कर रहे थे जिसका विरोध करते हुए रेलकर्मी को यह कदम उठना पड़ा?