- चुनाव टालने के लिए रेलवे ने बताया प्रशासनिक कारण, यूनियन के जानकार गिना रहे राजनीतिक
- निजीकरण, निगमीकरण के बीच सर्विस रिव्यू के आक्रोश से भयभीत नेताओं को राहत देने का प्रयास
- सरकार के निर्णयों से वापसी की उम्मीद पाने मजदूर संघ की स्थिति सांप-छुछुंदर वाली बनकर रह गयी है
रेलहंट ब्यूरो, नई दिल्ली
रेलवे में यूनियनों की मान्यता के लिए प्रस्तावित चुनाव को रेलवे बोर्ड ने तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया है. 31 मई को रेलवे बोर्ड ने चुनाव को लेकर आदेश जारी किया था. इसमें सभी जोनों समेत मेट्रो रेलवे में सेक्रेड बैलेट चुनाव कराने के लिए तैयारी का आदेश दिया गया था. बाद में रेलवे बोर्ड ने चुनाव के लिए अगस्त माह की 28 व 29 संभावित तारीख की घोषणा की. हालांकि एक अगस्त को रेलवे बोर्ड के इक्जीक्यूटिव डायरेक्टर व सेक्रेड बैलेट इलेक्शन कमेटी के चेयरमैन आलोक कुमार की ओर से जारी आदेश में अगस्त में प्रस्तावित सेक्रेड बैलेट इलेक्शन 2019 को स्थगित करने की घोषणा की गयी है. अब चुनावों के लिए नये सिरे से तारीखों की घोषणा की जायेगी. चुनाव नवंबर में हो सकते हैं
रेलवे यूनियनों की मान्यता के लिए अगस्त में होंगे चुनाव, बोर्ड ने जारी किया आदेश यह भी पढ़ें
चुनाव तिथियों की संभावित तिथियों की घोषणा के बाद अचानक उन्हें रद्द करने के लिए रेलवे बोर्ड ने प्रशासनिक कारण गिनाया है. हालांकि रेलवे बोर्ड के इस निर्णय को यूनियन के जानकार राजनीति से जोड़कर देख रहे. दरअसल अगस्त में प्रस्तावित चुनाव से पूर्व रेलवे के निजीकरण और निगमीकरण को लेकर तूफान मचा हुआ है. इस तूफान रूपी आग में घी डालने का काम 55 साल की उम्र अथवा 30 साल की सेवा पूरी करने वाले कर्मचारियों की सर्विस रिव्यू के आदेश ने कर दिया है. इसे लेकर रेलकर्मियों का बड़ा वर्ग आंदोलित है और यूनियन नेताओं को फिलहाल सरकार के इन निर्णयों का कोई ठोस जबाव नहीं सूझ रहा. एनएफआईआर हो अथवा एआईआरएफ दोनों फेडरेशन से जुड़े नेता सरकार के वर्तमान रूख से परेशान है जो वर्तमान में चुनाव में उनके लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. ऐसी स्थिति में चुनाव को लेकर रेलकर्मियों के बीच पहुंचे नेताओं के पास निजीकरण के विरोध के अलावा कोई मुद्दा शेष नहीं रह गया है. इन सबके बीच रेलकर्मियों की वर्षों से चल रही विभिन्न मांगें भी गौण हो गयी है. लिहाजा यूनियन नेता भी वर्तमान समय में चुनाव से बचना चाह रहे थे. उनकी यह मुराद रेलवे बोर्ड ने समय पूर्व तैयारियों की कमी बताकर पूरी कर दी है.
उत्पादन इकाइयों को निगम बनाने और यात्री गाड़ियों को निजी व्यक्तियों को सौंपने का प्रयास रेलकर्मियों को विरोध करने और आंदोलन करने के लिए बाध्य करेगा. रेलमंत्री महासंघों के परामर्श के बिना ऐसे निर्णय ने लें.
डॉ. एम राघवैया, महामंत्री,एनएफआईआर
एनएफआईआर के महामंत्री डॉ. एम राघवैया ने निजीकरण को लेकर केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि उत्पादन इकाइयों को निगम बनाने और यात्री गाड़ियों को निजी व्यक्तियों को सौंपने का प्रयास रेलकर्मियों को विरोध करने और आंदोलन करने के लिए बाध्य करेगा. उन्होंने कहा, इन कदमों से भविष्य में निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा. एनएफआईआर ने रेल मंत्री से महासंघों के साथ पूर्व परामर्श के बिना मनमाने ढंग से निर्णय न लेने का भी अनुरोध किया है. वहीं बीते दिनों साऊथ ईस्ट सेंट्रल रेलवे श्रमिक यूनियन की भिलाई आयोजित सभा में एआईआरएफ के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने यह कहकर चिंताओं का जोड़ा कि आज रेल को बचाने के लिए सभी को एकजुट होना पड़ेगा, सरकार हमारे बीच फूट डालने की कोशिश कर रही है! चुनाव में एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ा होने वाले दोनों नेता वर्तमान में सेवानिवृत्त है और रेलवे में वर्तमार सरकार द्वारा किये जाने वाले बदलावों को रोक पाने में विफल इन नेताओं पर अपने निहित स्वार्थ और कुर्सी के लिए सरकार की हां में हां मिलने का आरोप लगाकर बदलाव की मांग जोर पकड़ती जा रही है. इन विषम परिस्थितियों में दोनों फेडरेशन का शीर्ष नेतृत्व रेलकर्मियों का आक्रोश कम होने तक चुनाव के लिए कुछ वक्त चाहता था. रेलवे के वर्तमान निर्णय से इनकी मंशा पूरी होती नजर आ रही है.
रेलवे के निजीकरण व निगमीकरण को लेकर चल रहा प्रयास बेचैन करने वाला है. रेल को बचाने के लिए सभी को एकजुट होना पड़ेगा, सरकार हमारे बीच फूट डालने की कोशिश कर रही है.
शिवगोपाल मिश्रा, महामंत्री, एआईआरएफ
चुनाव की तिथि टलने से यूनियन नेताओं को अपनी रणनीति को भले ही थोड़ा धार देने का मौका मिल जाये लेकिन सरकार की 100 दिनी कार्ययोजना को लेकर रेलकर्मियों के बीच उभरा आक्रोश कम होने का नाम नहीं ले रहा है. सरकार की वर्तमान नीतियों का सबसे बुरा असर केंद्र में भाजपा सरकार की मौजूदगी का फायदा उठाकर मान्यता पाने की आस लिये भारतीय मजदूर संघ के नेताओं पर पड़ा है. सरकार के वर्तमान रूख के कारण मजदूर संघ के नेताओं की रेलकर्मियों के बीच किरकिरी बन गयी है. उनके पास रेलकर्मियों के लिए कोई मुद्दा शेष नहीं रह गया है क्योंकि निजीकरण, निगमीकरण के बीच सबसे बुरी स्थिति 55 साल की उम्र अथवा 30 साल की सेवा में सर्विस रिव्यू को लेकर जारी आदेश ने कर दी है. बड़ी संख्या में कर्मचारी अपनी नौकरी को लेकर संशय में आ गये है. ऐसे में वर्तमान सरकार समर्थित किसी यूनियन को रेलकर्मी अपना समर्थन देंगे यह अपने आप में सोचने वाली बात होगी. रेलवे में मान्यता को लेकर चल रही चुनावी तैयारियों के बीच मतदाना तिथियां बढ़ाये जाने से निश्चित रूप से सवालों से जूझ रहे नेताओं को कुछ सोचने का मौका मिलेगा जो उनके लिए राहत की बात होगी.
कुमार मनीष, लेखक जमशेदपुर से प्रकाशित पत्रिका लहरचक्र के संपादक है. खबरों पर आपकी टिप्पणी का स्वागत है, अपनी राय हमें रेलहंट के वाट्सएप नंबर 6202266708 पर भेजे.