- 25 दिन से क्वार्टर लेने के लिए आईओडब्ल्यू कार्यालय दौड़ रहा था रेलकर्मी, 5 घंटे में मिला कब्जा
- जीएम-डीआरएम व रेलवे बोर्ड तक मामला पहुंचने पर IOW/RPF ने ताला तोड़कर दिलाया कब्जा
- एसी-बेड जब्त कर ले गया इंजीनियरिंग विभाग, आवंटी प्रदीप कुमार साहू को सौंपी गयी चाबी
JAMSHEDPUR. टाटानगर की लगभग सभी रेलवे कॉलोनियों में रेलवे के दर्जनों की संख्या में क्वार्टरों पर अवैध कब्जा है. इन पर स्थानीय दबंग और आईओडब्ल्यू के चहेते ठेकेदारों काबिज हैं. इनसे हर माह एक निश्चित वसूली किये जाने की भी चर्चा रेलकर्मियों में है. बताया जा रहा है कि वैध रूप से इन क्वार्टरों का बिजली व पानी का कनेक्शन तो रेलवे की ओर से काटा दिया गया है लेकिन अवैध रूप से आईओडब्ल्यू की जानकारी में कब्जेदार रेलवे की बिजली और पानी का नि:शुल्क उपयोग कर रहे है.
यह तो रही आम बात हम बात कर रहे हैं रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी के बहुचर्चिंत टाइप टू क्वार्टर 332/2 की, जिसे रेलवे ने मंगलवार 28 मई 2024 को अवैध कब्जे से मुक्त कराकर आवंटी प्रदीप कुमार साहू को हैंडओवर किया है. मामला रेलहंट ने डीआरएम से लेकर जीएम व रेलमंत्रालय तक पहुंचाया इसके बाद लगभग 25 दिन से IOW हाउसिंग कार्यालय की दौड़ लगा रहे प्रदीप कुमार साहू को पांच घंटे में ही आवंटित मकान का कब्जा मिल गया. इंजीनियरिंग विभाग ने आरपीएफ की मदद से त्वरित कार्रवाई करते हुए क्वार्टर को अवैध कब्जे से मुक्त कराया और वहां इस्तेमाल किया जा रहा सामान जब्त कर लिया है.
प्रदीप कुमार साहू को टाइप टू क्वार्टर 332/2 का आवंटन मई माह के प्रथम सप्ताह में ही मिल गया था लेकिन जब वह यहां पहुंचे तो पता चला कि इस पर अवैध कब्जा है और कोई इसमें रहकर अवैध रूप से बिजली और पानी का इस्तेमाल भी कर रहा. यहां एसी तक लगाया गया था. इसकी जानकारी प्रदीप कुमार साहू ने आईओडब्ल्यू हाउसिंग (IOW) सुनील कुमार मैती को दी. हालांकि तत्काल तो इंजीनियरिंग विभाग इस मामले में मौन साधे रहा लेकिन आवंटी के बार-बार दबाव देने पर आईओडब्ल्यू हाउसिंग की ओर से क्वार्टर के बाहर एक नोटिस लगाकर कार्रवाई की खानापूर्ति कर ली गयी. लेकिन रेलकर्मी को क्वार्टर पर कब्जा नहीं मिल सका.
आवंटन के बावजूद क्वार्टर नहीं मिलने से परेशान पीडब्ल्यूआई कर्मी प्रदीप कुमार साहू ने सीनियर डीपीओ से लेकर दूसरे अधिकारियों को पत्र भेजकर गुहार लगायी लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला. यह कोई पहला मामला नहीं है जब किसी रेलकर्मी को आवंटन के बाद भी अपने ही क्वार्टर पर कब्जा लेने में पसीने नहीं छूटे हो. अगर रेलकर्मी सक्षम रहा तो अवैध कब्जेदार से कब्जा ले पाता है वरना अनुरोध कर दूसरा क्वार्टर का आवंटन ले लेता है, इस तरह रेलवे क्वार्टर पर अवैध कब्जेदार काबिज रह जाते हैं. रेलकर्मी ही मानते है कि लगभग सभी कॉलोनियों में दर्जनों क्वार्टरों पर अवैध कब्जे है. यह सब इंजीनियनिंग विभाग की जानकारी में है. इन कब्जेदारों में पुलिसकर्मी व रेलवे ठेकेदार भी शामिल हैं.
जीएम-डीआरएम-रेलवे बोर्ड को गुमराह करने का प्रयास तो नहीं !
रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी के टाइप टू क्वार्टर 332/2 को अवैध कब्जे से मुक्त कराने के बाद दिलचस्प टिप्पणी आरपीएफ मुख्यालय, चक्रधरपुर की ओर से आयी है. इसमें बताया गया है कि यह शिकायत झूठी ओर प्रेरित है. स्पष्ट है कि आरपीएफ के सहयोग से ताला तोड़कर आवंटी को क्वार्टर का कब्जा कई दिनों बाद दिलाया गया है. तब सवाल यह उठता है कि क्या यह अवैध कब्जे के मामले में डीआरएम-जीएम से लेकर रेलवे बोर्ड को गुमराह करने का प्रयास नहीं है? आखिर यह सब किसके इशारे पर किया गया है ? सीनियर कमांडेंट और आईजी आरपीएफ को इसकी जांच करानी चाहिए ताकि ऐसे लोग बेनकाब किये जा सके.
अहम सवाल
- एक माह बाद भी रेलकर्मी प्रदीप कुमार साहू को आवंटित क्वार्टर का कब्जा क्यों नहीं मिला
- रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी के टाइप टू क्वार्टर 332/2 में कौन रह रहा था, लगा एसी किसका था
- बिजली व पानी का बिल यहां किसके नाम से जारी हो रहा था, क्या उसकी वसूली हो रही थी
- क्या IOW हाउसिंग सुनील कुमार मैती को रेलवे क्वाटरों पर अवैध कब्जे की जानकारी नहीं है
- शिकायत देने के बाद भी अवैध कब्जे को लेकर टाटानगर इंजीनयरिंग विभाग क्यों मौन साधे रहा
- मामला जीएम-डीआरएम-रेलवे बोर्ड तक जाने के बाद ही आखिर कार्रवाई क्यों करनी पड़ी
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