Connect with us

Hi, what are you looking for?

Rail Hunt

देश-दुनिया

कायापलट की राह पर रेलवे, रफ्तार पर जोर-संरक्षा होगी प्राथमिकता

180 किमी की रफ्तार से दौड़ी वंदे भारत एक्सप्रेस, टिकटों की बुकिंग शुरू

रेलवे की रफ्तार बढ़ाने के लिए मोदी सरकार रेलवे संबंधी आधारभूत ढांचे पर सबसे ज्यादा जोर

सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में दुनिया भर में लोहा मनवाने वाले भारत में रेलगाड़ियों की रफ्तार बाबा आदम के जमाने की है. भारतीय रेलवे की सुस्त चाल से यदि दुनिया भर में चलने वाली तेज रफ्तार रेलगाड़ियों की तुलना की जाए तो भारतीय रेल 100 साल पीछे नजर आएगी. इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने रेलवे के कायापलट को प्राथमिकता दी. पिछले साढ़े चार वर्षो में रेल संबंधी आधारभूत ढांचा मजबूत करने, पिछड़े क्षेत्रों में नई रेल लाइन बिछाने, रेल लाइनों के दोहरीकरण-विद्युतीकरण,रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में सुविधाओं की बढ़ोतरी जैसे हर स्तर पर काम हुए हैं.

ढांचागत मजबूती के साथ-साथ सरकार रेलगाड़ियों की रफ्तार भी बढ़ा रही है ताकि रेलवे की तस्वीर बदली जा सके. गतिमान एक्सप्रेस के कामयाब परिचालन और मुंबई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारियों के बीच रेलवे ने वाराणसी और दिल्ली के बीच सेमी हाईस्पीड ट्रेन-18 चलाई है. वंदे भारत एक्सप्रेस नामक यह इंजन रहित ट्रेन दोनों शहरों के बीच की दूरी 8 घंटे में तय करेगी. इसकी रफ्तार इस मार्ग पर चलने वाली सबसे तेज गाड़ी से डेढ़ गुना ज्यादा है. यदि पटरियों और सिग्नल प्रणाली का साथ मिले तो यह ट्रेन 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने में सक्षम है. कई देशों ने इस ट्रेन को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है. इसका कारण है कि टी-18 जैसी मानक वाली ट्रेनों की कीमत दुनिया भर में करीब 250 करोड़ रुपये है, जबकि भारत ने इसे महज 100 करोड़ रुपये की लागत से रिकॉर्ड समय में तैयार कर लिया. इस प्रकार ट्रेन-18 रेलवे की रफ्तार के साथ-साथ निर्यात बढ़ाने का सशक्त जरिया बनकर उभरेगी. गौरतलब है कि दुनिया भर में रोलिंग स्टॉक बाजार 200 अरब डॉलर का है. यह हैरानी की बात है कि इस ट्रेन के संचालन में थोड़ी बाधा आने पर कई लोगों ने तंज कसे. इनमें नेता भी शामिल थे. इससे यही पता चलता है कि राजनीति का स्तर कितना गिरता जा रहा है. आखिर किस नए काम में छिटपुट समस्याएं नहीं आतीं? इन शुरुआती समस्याओं का यह मतलब नहीं कि रेलवे के कायाकल्प की कोशिश सही दिशा में नहीं हो रही है.

रेलगाड़ियों की तादाद भले ही बढ़ी, लेकिन उनकी रफ्तार घटती गई. भारतीय रेल की सुस्त रफ्तार की एक बड़ी वजह यह रही कि यहां रफ्तार के बजाय सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई. दुर्भाग्यवश यह नीति कारगर नहीं रही. इसका कारण यह रहा कि तकनीक के स्तर पर भारतीय रेल में पिछले 50 वर्षो में कोई खास बदलाव नहीं आया.

रेलवे 2022 से पहले मौजूदा राजधानी-शताब्दी ट्रेनों की जगह सेमी हाईस्पीड ट्रेन चलाने की योजना पर काम कर रही है. इसके लिए 10,000 किलोमीटर नया हाईस्पीड कॉरिडोर बन रहा है जहां 200-250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ियां दौड़ेंगी. इतना ही नहीं मोदी सरकार ने 2022 तक सभी लंबी दूरी की गाड़ियों की रफ्तार में 25 किलोमीटर प्रति घंटा की बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा है. यात्री गाड़ियों के साथ-साथ मालगाड़ियों की औसत रफ्तार को भी दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर तेजी से काम चल रहा है. रेल परियोजनाओं को समय से पूरा करने के लिए सरकार ने रेलवे में निवेश को तीन गुना बढ़ाया है.

रेलवे की रफ्तार बढ़ाने के लिए मोदी सरकार रेलवे संबंधी आधारभूत ढांचे पर सबसे ज्यादा जोर दे रही है. 2022 तक सभी ब्रॉड गेज रेल लाइनों का विद्युतीकरण करने का लक्ष्य है. अभी 46 प्रतिशत रूट विद्युतीकृत हैं. 20,000 किलोमीटर रूट पर काम चल रहा है, जिसके पूरा होने पर 78 प्रतिशत रेल लाइनों का विद्युतीकरण हो जाएगा. कैबिनेट ने बाकी बचे 13,675 किलोमीटर रूट के विद्युतीकरण को भी मंजूरी दे दी है. इससे न केवल रेल लाइनों की क्षमता में बढ़ोतरी होगी, बल्कि पेट्रोलियम पदार्थो के आयात में भी कमी आएगी जिससे दुर्लभ विदेशी मुद्रा की बचत होगी. पिछले साढ़े चार वर्षो में रेलवे के आधुनिकीकरण के साथ-साथ ऊर्जा एवं ईंधन की बचत के अनूठे उपाय भी किए गए हैं. रेलवे के सभी कार्यालयों और डिपो में 100 प्रतिशत एलईडी बल्ब लगाए गए हैं. 2020-21 तक सभी रेलवे स्टेशनों पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की योजना है. भारतीय रेलवे ने विश्व की पहली सौर ऊर्जा आधारित ट्रेन चलाने का कीर्तिमान बनाया है. एक समय रेल हादसों का प्रमुख कारण रही मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है.

देश की विशाल भौगोलिक दूरियों और तेज विकास की जरूरतों को देखा जाए तो हाईस्पीड ट्रेन वक्त की मांग है. गौरतलब है कि देश की धमनी मानी जाने वाली रेल बदलती अर्थव्यवस्था के साथ कदमताल नहीं कर पाई है. यह अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रही है. रेलगाड़ियों की तादाद भले ही बढ़ी, लेकिन उनकी रफ्तार घटती गई. भारतीय रेल की सुस्त रफ्तार की एक बड़ी वजह यह रही कि यहां रफ्तार के बजाय सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई. दुर्भाग्यवश यह नीति कारगर नहीं रही. इसका कारण यह रहा कि तकनीक के स्तर पर भारतीय रेल में पिछले 50 वर्षो में कोई खास बदलाव नहीं आया. इसके लिए रेलवे की पुर्नसरचना या रिस्ट्रक्चरिंग के प्रति पूर्ववर्ती सरकारों का निरुत्साही रवैया जिम्मेदार है. यहां पड़ोसी देश चीन का उल्लेख प्रासंगिक होगा जिसने अपने यहां पूरी रेलवे का कायापलट ही कर दिया. चीन में दो शहरों के बीच 1000 किलोमीटर की दूरी को रेल के जरिये पूरा करने में ढाई से तीन घंटे का समय लगता है. इतना ही नहीं चीन में सबसे कम गति वाली गाड़ियां भी 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं. वहां हाईस्पीड गाड़ियों ने काफी हद तक पुरानी रेलवे लाइनों के यात्री बोझ को घटा दिया है. अब पुरानी गाड़ियों का इस्तेमाल माल ढुलाई के लिए किया जा रहा है. इस तरह माल ढुलाई कम दाम पर और सड़क के मुकाबले कम वक्त में हो रही है. इसी प्रकार की रिस्ट्रक्चरिंग का काम यूरोपीय देशों में भी चल रहा है.

रेलवे 2022 से पहले मौजूदा राजधानी-शताब्दी ट्रेनों की जगह सेमी हाईस्पीड ट्रेन चलाने की योजना पर काम कर रही है. इसके लिए 10,000 किलोमीटर नया हाईस्पीड कॉरिडोर बन रहा है जहां 200-250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ियां दौड़ेंगी. इतना ही नहीं मोदी सरकार ने 2022 तक सभी लंबी दूरी की गाड़ियों की रफ्तार में 25 किलोमीटर प्रति घंटा की बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा है.

भारतीय रेलवे की बदहाली का दूसरा चरण 1990 के दशक में गठबंधन सरकारों के दौर में शुरू हुआ. इस दौरान सहयोगी दलों से बनने वाले रेल मंत्रियों ने वोट बैंक के चक्कर में रेलवे में दूरगामी सुधार की घोर उपेक्षा की. रेलवे को अपने मनमुताबिक चलाने वाले रेल मंत्रियों ने यात्री किरायों में घाटे की भरपाई माला भाड़ा से करने की गलत परिपाटी शुरू कर दी. अर्थशास्त्र की भाषा में इसे ‘क्रॉस सब्सिडी’ कहा जाता है. इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे देश में माल भाड़ा तेजी से बढ़ा और माल ढुलाई के काम का एक हिस्सा रेलवे के हाथों से निकलकर ट्रक कारोबारियों के पास जाने लगा. दूसरी ओर एक ही रूट पर गाड़ियों की तादाद बढ़ने से यात्री गाड़ियों की रफ्तार घटी. इसका नतीजा यह हुआ कि माल ढुलाई के साथ-साथ यात्री परिवहन में भी रेलवे की हिस्सेदारी कम होती गई. यही कारण है कि 100 करोड़ ग्राहकों और 100 फीसद अग्रिम बुकिंग के बावजूद रेलवे तंगी से जूझ रही है.

रमेश कुमार दुबे (लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं)

Spread the love
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ताजा खबरें

You May Also Like

रेलवे यूनियन

General Secretary IRSTMU writes letter to PM for recreation of post of Member (S&T) and filling of the post of AM (Signal) NEW DELHI. The...

रेलवे यूनियन

New Delhi. The Railway Board has given an additional charge of Member (Infrastructure) to DG (HR) after the former superannuated on September 30, 2024....

रेलवे न्यूज

रिस्क एवं हार्डशिप अलाउंस के लिए 2019 में ही बनायी गयी थी कमेटी, 05 साल बाद भी खत्म नहीं हुआ इंतजार 22 जनवरी 2024...

रेलवे जोन / बोर्ड

रेलवे ट्रैक के दोहरीकरण और री-मॉडलिंग प्रोजेक्ट का बिल पास करने में कमीशन की मांग का आरोप  सीबीआई ने गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की,...