जीएम की पोस्टिंग के बारे में अगर आप इस बात से निश्चिंत हैं कि हमने जो किया है, वह सही है, तो आप पूरे देश को बताएं, क्यों हुआ? कैसे हुआ? ऐसी उम्मीद तो आपसे पूरा देश कर ही सकता है !
भारत के संदर्भ में यह फ्रेंच उक्ति कुछ-कुछ ठीक लगती है “more things change, the more they stay the same” … रेल विभाग को सुधारने के लिए उठाए कुछ अच्छे कदमों के बीच जनरल मैनेजर की हाल की नियुक्तियां सारे माहौल को विवादास्पद और खराब बना रही हैं. किसी भी संगठन/विभाग में अधिकारी/कर्मचारी का मनोबल सबसे महत्वपूर्ण होता है. कहते भी हैं “लड़ाईयां केवल बंदूक से नहीं लड़ी जातीं, उन्हें साधने वाले हाथों से लड़ी जाती हैं ! ”
काफी कवायत के बाद जनरल मैनेजर कौन बनेगा ? इसका फैसला हुआ, लेकिन इसमें पारदर्शिता कहीं नहीं दिखाई देती! कोई अपने को कैसे समझाएगा कि उसने गलती कहां की? उसे किस दिशा में बेहतर करने की जरूरत आगे रहेगी? क्या भविष्य में कोई अपने कैरियर के बारे में निश्चिंत हो पाएगा ?
क्या यह सब बातें उसकी रचनात्मकता और बेहतर करने के कौशल को खत्म नहीं कर देंगे ? माना आपका फैसला सही है, तो आप उसे पब्लिक कीजिए ! बताइए ! उसे क्वांटिफाई कीजिए ! कि क्यों यही सिलेक्ट हुए ? और बाकी क्यों रह गए ?
कुछ दरारें फाल्ट लाइंस एकदम साफ हैं. सिविल सर्विसेज – आईआरटीएस, आईआरपीएस और आईआरएएस – या दूसरे विभागों का एक भी अधिकारी नहीं है इसमें, और आने वाले समय में होगा भी नहीं ! तो फिर यूपीएससी परीक्षा पर ही पूरा प्रश्नचिन्ह लग जाता है.
सूचना क्रांति का सबसे बड़ा फायदा भ्रष्टाचार को दूर करने में हुआ है और आगे भी होता रहेगा. यूनिवर्सिटी परीक्षाओं के रिजल्ट हों, प्रश्नों के की/ आंसर हों, से लेकर सूचना के अधिकार से पारदर्शिता आई है. मेरी समझ से सूचना का अधिकार आजादी के बाद का लोकतंत्र का सबसे अच्छा हथियार सिद्ध हुआ है, बशर्ते कि सरकार उसे पूरी सत्यनिष्ठा से लागू करें, हर विभाग में !
लेकिन जिस विभाग के सर्वोच्च पद पर अगर आप चुने जाते हैं, अगर वहां पारदर्शिता नहीं होगी, तो आप अपनी फौज को कैसे मोटिवेट कर पाएंगे ? यह ऐसे प्रश्न हैं जो सबको बेचैन किए हुए हैं, और इस पर मंत्रालय की तरफ से तुरंत पूरी पारदर्शिता के साथ तथ्यों को सामने रखने की जरूरत है. अच्छे कदम को उतनी ही पारदर्शिता के साथ सामने रखने की आवश्यकता है.
इस बीच अच्छी खबर यह आई कि इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विसेज (आईआरएमएस) बनाने और उसकी दो अलग परीक्षाएं करने का निर्णय बदलने की तैयारी है. यह बहुत अच्छा कदम होगा क्योंकि टेक्निकल और नॉन-टेक्निकल प्रोफेशनल की परीक्षा एक नहीं हो सकती. स्पेशलाइजेशन के जिस युग में हम प्रवेश कर चुके हैं, वहां “सब धान बाइस पसेरी” का फॉर्मूला नहीं चल सकता !
अक्लमंद वही होता है जो अपनी गलती को तुरंत स्वीकार करता है और किसी भी समाज, व्यक्ति, देश ऐसे ही कदमों से आगे बढ़ते हैं. मुझे शिक्षाविद वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल – जो बस्ते का बोझ / बर्डेन फ्राॅम बैग कमिटी के अध्यक्ष थे और बाद में नेशनल क्यूरिकुलम फ्रेमवर्क 2005 के भी अध्यक्ष बने, उनकी बात याद आती है कि जो आईआईटी में सिलेक्ट नहीं होते/हुए वे तो पूरी उम्र एक अफसोस दर्द और निराशा में रहते ही हैं, लेकिन जो सिलेक्ट हो जाते हैं वह भी इस पूरी रट्टामार, दमतोडू परीक्षा से गुजर कर बहुत अच्छे नागरिक नहीं बन पाते !
जीएम की पोस्टिंग के बारे में भी मेरा यही मत है. खलबली दोनों तरफ ही होगी और यह रेलवे के हित में नहीं होगा ! अगर आप इस बात से निश्चिंत हैं कि हमने जो किया है, वह सही है, तो आप पूरे देश को बताएं, क्यों हुआ? कैसे हुआ? ऐसी उम्मीद तो पूरा देश कर ही सकता है! सूचना के अधिकार के तहत तो इतनी उम्मीद पूरे देश को बनती ही है! कौन जाने इस मामले को लेकर कोर्ट कचहरी लोग पहुंचें और पूरे देश की संस्थाओं का समय बर्बाद हो!
भारतीय रेल के भविष्य के लिए अनंत शुभकामनाओं सहित !!!!
प्रेमपाल शर्मा, पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर/जॉइंट सेक्रेटरी, रेल मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, 8 नवंबर 2022, Mob. 99713 99046.
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