- बिना निविदा मंगाये चुनिंदा कंपनियों को उपकृत करने का लग रहा अधिकारियों पर आरोप
- उपभाेक्ता संगठन ने विजिलेंस जांच के लिए भेजा पत्र, नियमों की अनदेखी की शिकायत
Jamshedpur. चक्रधरपुर रेलमंडल के बड़े स्टेशनों से अचानक से रेलनीर गायब हो गया है. टाटानगर, राउरकेला, झारसुगुड़ा से लेकर चक्रधरपुर मंडल मुख्यालय के स्टेशन पर भी धड़ल्ले से लोकल ब्रांड का पानी बेचा जा रहा है. आपूर्तिकर्ता तो वहीं हैं लेकिन ब्रांड बदल गया है. गर्मियों में पानी की डिमांड और मोटी कमाई को लेकर लोकल ब्रांड का पानी बेचने की बैचेनी वेंडरों में रहती है. चूंकि रेलनीर में मुनाफा कम होता है लिहाजा येन-केन प्रकरेण गर्मी में रेलनीर की किल्लत बताकर लोकल ब्रांड के पानी की इंट्री स्टेशन में करा दी जाती है.
पूर्व sr DCM ,मोटी रकम लेकर अप्रूवल दिए हैं किसी भी स्टेशन से रेल नीर का नो ऑब्जेक्शन शॉर्टेज सर्टिफिकेट IRCTC द्वारा नहीं लिया गया है यह आर्डर स्टैटिक यूनिट के लिए मगर ट्रेनों में भी चलाया जा रहा है डिवीजन के कैटरिंग डिपार्ट की मोटी कमाई हो गई है जांच करें pic.twitter.com/zzuoQu2Op8
— Manohar Mandal (@manohar_ma7546) April 26, 2023
इस बार भी ऐसा ही हुआ है. जिम्मेदार इंस्पेक्टरों की मौन सहमति के बीच यात्रियों को रेलनीर से वंचित कर दिया जा रहा है. हर साल चक्रधरपुर डिवीजन के बड़े स्टेशनों में शामिल झारसुगुड़ा, राउरकेला, चक्रधरपुर, टाटानगर में अघोषित रूप से एक या दो ब्रांड के पानी को प्रमोट करने के लिए रेलनील की आपूर्ति शॉट कर दी जाती है अथवा सीमित कर दिया जाता है. इस साल भी ऐसा ही किया गया है. आईआरसीटीसी के अधिकारी भी इसे लेकर मौन रहते है. आला अधिकारियों को बताया जाता है कि रेलनीर उपलब्ध नहीं होने के कारण यात्रियों को स्वीकृत ब्रांड का स्वीकृत पानी उपलब्ध कराया जा रहा है.
… तो क्या सीनियर डीसीएम कार्यालय ने कर दिया बड़ा खेल
चक्रधरपुर डिवीजन ने 06.03.2023 को जारी एक पत्र में रेलनीर की आपूर्ति कम होने पर पांच ब्रांड का पानी स्टेशन पर बेचने की स्वीकृति दी गयी है. यह स्वीकृति पत्र पूर्व सीनियर डीसीएम मनीष कुमार पाठक के हस्ताक्षर से जारी है. ट्रवीट कर यह बात रेल प्रशासन के संज्ञान में लायी गयी है. इसमें यह सवाल उठाया गया है कि क्या बिना किसी निविदा आमंत्रित किये ही चुनिंदा लोगों को नियमों से हटकर यह स्वीकृति दे दी गयी है? इसके लिए रेलवे को मिलने वाली अग्रिम धनराशि भी नहीं जमा करायी गयी न ही रेलनीर के शार्टेज का कोई प्रमाणपत्र लिया गया. तो क्या एडमिनिस्ट्रेटिव इंटरेस्ट और पावर का बेजा इस्तेमाल कर यह स्वीकृति पूर्व सीनियर डीसीएम द्वारा दी गयी है ?
पूर्व सीनियर डीसीएम के एडमिनिस्ट्रेटिव पावर के बेजा इस्तेमाल पर बीते दो माह पूर्व जोनल विजिलेंस ने नजरें तरेरी थी तब कंट्रोल आर्डर पर व रुटीन तबादलों को लेकर कुछ संशोधन आदेश आनन-फानन में जारी किये गये. जो उनके तबादले के बाद ठंडे बस्ते में चले गये लगते हैं. इधर, पांच कंपनियों को बोतल बंद पानी की आपूर्ति करने की स्वीकृति आदेश को लेकर उठाये गये सवाल पर अब तक रेलवे की ओर से कोई अधिकारिक टिप्पणी नहीं आयी है. अब इस मामले का सच रेलवे विजिलेंस और वर्तमान सीनियर डीसीएम गजराज सिंह चरण काे सामने लाना है. उधर, कंज्यूमर्स प्रोटेक्शन काउंसिल के रविकुमार ने रेलवे विजिलेंस को पत्र भेजकर इस मामले की जांच कराने की बात कही है.
मुनाफे के खेल में सारे कानून तक पर, अवैध रूप से लाया जा रहा पानी
उल्लेखनीय है कि निजी फर्मों द्वारा बोतल बंद पीने का पानी (पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर) 4 रुपये से 6 रुपये अथवा ज्यादा से ज्यादा 6.50 रुपये प्रति बोतल के हिसाब से आपूर्ति किया जाता है, जो कि प्लेटफार्मों पर स्थित अचल खानपान इकाईयों (स्टालों) और चलती गाड़ियों की पैंट्रीकारों को सीधे उपलब्ध कराया जाता है. चूंकि आईआरसीटीसी द्वारा ‘रेलनीर’ की आपूर्ति लगभग 10.50 रुपये से 11 रुपये प्रति बोतल के हिसाब से स्टालों और पैंट्रीकारों को की जाती है, अतः रेलनीर बेचने में उन्हें कम मुनाफा मिलता है, जबकि निजी फर्मों द्वारा आपूर्ति किया जाने वाला पानी बेचने पर उन्हें प्रति बोतल डेढ़ गुना से भी ज्यादा मुनाफा मिलता है. यही कारण है कि गर्मी के शुरू होते ही पानी की आपूर्ति करने वाली सभी एजेंसियों किसी न किसी रूप में रेल नीर की आपूर्ति को प्रभावित करने का प्रयास करती है. आपसी मिलीभगत से चुनिंदा ब्रांड के बोतलबंद पानी की आपूर्ति शुरू कर इस काली कमाई में सभी मिलकर हाथ धोने में जुट जाते हैं.