- मान्यता है कि जब सावत्री वट वृक्ष की निगरानी में ही सत्यवान के मृत शरीर को रखकर यमराज के पास गयी थी
गिद्धौर. वट सावित्री पूजा में हर स्थान पर महिलाएं वटवृक्षकी प्रदक्षिणा करती दिखी. वहीं जब प्रखंड के रतनपुर पंचायत की वह वटवृक्षतक पहुंचा, जहां वर्षों पूर्व महिलाओं का पांव रखने की जगह नहीं होती थी, वह स्थान बानाडीह कचहरी के पास सुनसान पाया. महिलाओं की संख्या भी कम थी. लगा कोरोना के कारण ऐसा है, पर जब याद किया, तो लगा कि यहां हाल के वर्षों में लोग बहुत ही कम आ रहे हैं. जानने की ईच्छा हुई, कुछ लोगों से बात हुई, तो पता चला कि वास्तव में यह बरगद का पेड़ अपने आप में कई इतिहास को संजोये हुए है. पुराने लोगों से बात हुई तो परद दर परत कई राज खुलने लगे जिसे जानकर शायद ही किसी का सिर यहां नतमस्तक होने का दिल न करे.
एक ही जड़ से पीपल व वटवृक्ष की उत्पत्ति
गांव के ही पुराने व्यक्ति निशिकांत के अनुसार एक ही जड़ से पीपल व वटवृक्ष कहीं हो सकता है, पर यहां के अलावा 70 साल के आयु में कहीं नहीं देखा. बताते हैं कि गांव के पीपल तले इस वटवक्ष का पूजा करने को बट सावत्री पूजन के दौरान पूरे गांव व आसपास के गांव की महिलाएं उमड़ पड़ती थी. उस दौर में गांव की बेटियां अगर ससुराल में होती थी, तो वट सावत्री पूजन के दिन आ जाती थी. गांव की बहुएं भी अगर मैके में होती थी, तो ससुराल आ जाती थी. उस दौर की मान्यता को निशिकांत हकीकत बताते हुए कहते हैं यहां पूजन करने वाली महिलाओं के पति की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती थी. तब इस सड़क मार्ग के दोनों छोर से महिलाओं और बच्चों की भीड़ पूजा के दिन पेड़ तक पहुंचती थी, पर कभी किसी साल कोई सड़क हादसा नहीं हुआ. यह सब वटवृक्षकी महिमा है. अब चुकी जनरेशन बदल रहा है, लोग घरों में सीमित होने लगे हैं, इसलिए वटवृक्षकी उपेक्षा नजर आने लगी है. मान्यता है कि वट वृक्ष ही सत्यवान के मृत शरीर की रक्षा की थी, तब सावत्री यमराज से उसके प्राण लाने गयी थी. हकीकत व सच्चाई यहां के वट वृक्षके पौराणिक गाथा से प्रमाणित होती है.
अंग्रेज ग्रामीणों पर नहीं बरसाते थे कोड़े
थोड़ा पीछे जाने पर यह बात भी सामने आयी की अंग्रेज के शासन व्यवस्था में पीपल तले इस वटवृक्षके कारण ही उनके घुड़सवार सिपाही ग्राणीण को गलतियों पर भी चाभूक नहीं बरसाते थे. गांव के रोहित पाठक बताते हैं कि उन्हें अंग्रेजी शासन व्यवस्था की उतनी याद नहीं, पर उक्त पेड़ के समीप अंग्रेजों ने फांड़ी (थाना की तरह) भवन बनाकर सिपाहियों को लगान वसूल करने को रखा था. रोहित के अनुसार उनके पिताजी बताते थे कि अंग्रेज सिपाही जब घोड़े पर निकलते थे, तो पहले पीपल तले उसी वटवृक्षके नीचे शीतलता का अहसास करते थे. घोड़े व सवार दोनों शीतल हो जाते थे और शांत भाव से लोगों से मिलते. कभी किसी की पिटाई नहीं करते. हाल के वर्षों उक्त भवनों को हटाकर वहां स्कूल खोले गये हैं. हालांकि यहां एक म्यूजिम की भी मांग हो रही है.
पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह यहां उलाय बीयर बनाने की प्रेरणा मिली थी
प्रमाण तो नहीं पर गांव के महेश्वर प्रसाद का कहना है इसी वट वृक्ष के नीचे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह जब कुछ नहीं थे, तो उलाय बीयर की कल्पना की थी. बाद में उलाय बीयर बना, जिससे सैंकड़ों एकड़ जमीन सिंचित है. कई गांवों को इससे फायदा हो रहा है. बाद में चंद्रशेखर सिंह को इंदिरा गांधी ने बिहार का मुख्यमंत्री बनाया. शायद यह सब पीपल तले इसी वटवृक्षका प्रभाव हो.
यहां आये नीतीश कुमार, तो बच गयी उनकी गद्दी
चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीपल तले इसी वटवृक्षके नीचे एक कार्यक्रम में पहुंचे थे. आवेग झा को तो मानना है उक्त वटवृक्षका ही प्रभाव था कि विरोधियों से घीरे नीतीश कुमार अपनी गद्दी बचाने में सफल रहे. वर्तमान यह जगह सौंदर्यीकरण का बाट जोह रहा है. यहां एक संग्राहलय तो चाहिए ही. अंग्रेज यहां थाना बना रखा था. आजादी के बाद यहां न प्रखंड बना न ही कुछ. जगह के प्रभाव व शक्ति शायद ही किसी सी छुपी है. वो दिन दूर नहीं जब इस पीपल तले वटवृक्षकी प्रदक्षिणा करने पीएम तक पहुंच जायें.
(यह मान्यताओं पर आधारित लेखक का लेख है इसके पौराणिक तथ्यों की पुष्टि रेलहंट नहीं करता है.)