आ सम्पूर्ण विश्व रचने वाले
अंतिम मैं तुझे प्रणाम करूँ
मक्का देखा, काशी देखा
साईं देखा, मथुरा देखा
सागर का सीना देखा
गिरिराज हिमालय भी देखा
अबतक ढूंढा ऐ परमपिता
तुम छुपे कहाँ हो नहीं पता
अस्तित्व अगर हो मुझे बता
अंतिम मैं तुझे प्रणाम करूँ
मीठे रिश्तों में नहीं मिले
जख्मों में तुझे भी पा न सका
अपने भी अपने नहीं दिखे
गैरों की क्या बात करूँ
आकाश दिखा, पाताल दिखा
क्यूँ नहीं मिले अब मुझे बता
ऐ परमपिता तू दर्शन दे
अंतिम मैं तुझे प्रणाम करूँ
ना बालाओं के नयनों में
ना मदिरालय के प्यालों में
मंदिर को भी गिरते देखा
कत्लगाह भी खड़ा रहा
मिथ्या में भी ढूँढा तुझको
सच्चाई को मरते देखा
अब दिव्या रूप तू मुझे दिखा
अंतिम मैं तुझे प्रणाम करूँ
धृतराष्ट्र तुझे ना देख सके
अर्जुन को भी तू भ्रमित किया
वाणों की शय्या हर गयी
चाहत क्या तेरी मुझे बता
सांसें अबतक है रुकी नहीं
दिल भी अबतक है धड़क रहा
बस बुझा विचारों की ज्वाला
अपने शंशय का मान धरूँ
आ सम्पूर्ण विश्व रचने वाले
अंतिम मैं तुझे प्रणाम करूँ