- रेलवे मजिस्ट्रेट को नहीं है किसी सरकारी अधिकारी को नोटिस जारी करने का अधिकार
गोरखपुर. सिर्फ एक दिन इमरजेंसी कोटा आवंटित न किए जाने पर पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ जंक्शन स्थित रेलवे कोर्ट के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (रेलवे मजिस्ट्रेट) कैलाश कुमार ने लखनऊ मंडल, पूर्वोत्तर रेलवे के मंडल वाणिज्य प्रबंधक (डीसीएम-ग्रुप ‘ए’ अधिकारी) देवानंद यादव के खिलाफ अदालत की अवमानना का नोटिस जारी किया है. रेलवे मजिस्ट्रेट कैलाश कुमार ने डीसीएम को भेजे गये नोटिस में कोटा न दिए जाने को अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाने और इसे प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध बताते हुए दंडनीय अपराध बताया है. हालांकि कानूनी जानकार इसे रेलवे मजिस्ट्रेट के अधिकार के दायरे से बाहर की गयी कार्रवाई मान रहे है.
बताया जाता है कि इमरजेंसी कोटा के लिए दिये गये आवेदन में रेलवे मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर की जगह उनके वैयक्तिक सहायक के हस्ताक्षर को लेकर रेलवे पदाधिकारी ने 25 अप्रैल को उन्हें कोटे से बर्थ नहीं दी. नियमानुसार आवेदन पर रेलवे मजिस्ट्रेट का हस्ताक्षर होना चाहिए था. इस पर रेलवे मजिस्ट्रेट ने डीसीएम के विरुद्ध 26 अप्रैल को न्यायालय की अवमानना का नोटिस जारी करते हुए उसी दिन दोपहर बाद चार बजे 20 से 25 अप्रैल तक के सभी आवेदन पत्र लेकर व्यक्तिगत रूप से उनके समक्ष हाजिर होने का आदेश दे दिया.
अवमानना नोटिस में रेलवे मजिस्ट्रेट कैलाश कुमार ने कहा है कि इमरजेंसी कोटे के फॉर्म पर हस्ताक्षर करने हेतु रेलवे कोर्ट के वैयक्तिक सहायक (पेशकार) को ही पीठासीन अधिकारी के तौर पर अधिकृत किया गया है. यह प्रक्रिया काफी समय से चली आ रही थी. परंतु 25 अप्रैल को आपके (डीसीएम) द्वारा मनमाना रवैया अपनाते हुए इसे रोका गया तथा कोटा नहीं दिया गया. नोटिस में कहा गया है कि यदि रेलवे ने उक्त प्रक्रिया में किसी प्रकार का परिवर्तन किया था, तो उसे न्यायालय के संज्ञान में यह बात लानी थी जिससे न्यायालय द्वारा उक्त संदर्भ में समय रहते उचित कदम उठाया जा सकता था.
नोटिस में कहा गया है कि ऐसा न करके आपके (डीसीएम) द्वारा तानाशाही और मनमानीपूर्ण तरीके से सुस्थापित व्यवस्था में बिना सूचना दिए परिवर्तन कर कोटा आवंटित नहीं किया गया, जो कि प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है तथा जिससे आपके द्वारा न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया गया, जो कि न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आता है और जो कि दंडनीय अपराध है. अतः आपको आदेशित किया जाता है कि 20 से 25 अप्रैल तक के सभी फॉर्म लेकर चार बजे न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से हाजिर हों, ऐसा करने में किसी प्रकार की कोई त्रुटि न हो.
नोटिस पर छिड़ी बहस, कोटा किसी का अधिकार या रेलवे का विशेषाधिकार
इस प्रकरण के बाद कानूनी जानकारों में कोटे की सीट को लेकर बहस छिड़ गयी है. जानकारों का मानना है कि रेलवे मजिस्ट्रेट का आचरण प्राकृतिक न्याय और न्यायालय की गरिमा के नहीं, बल्कि उनकी खुद की गरिमा के विरुद्ध तथा अधिकार के दायरे से बाहर है. रेलवे मजिस्ट्रेट किसी भी ग्रुप ‘ए’ सरकारी अधिकारी को सीधे नोटिस जारी नहीं कर सकते. कहा जा रहा है कि यह मामला प्राकृतिक न्याय की श्रेणी में नहीं आता है, क्योंकि इमरजेंसी कोटा किसी का अधिकार नहीं, बल्कि रेलवे का विवेकाधीन अधिकार है. उनका कहना था कि इस पर कोई भी अपना हक नहीं जता सकता है.