- रेलवे बोर्ड की गाइडलाइन को भी नहीं मान रहे जोन व डिवीजन के अधिकारी
- गुणवत्ता की जांच की जिम्मेदारी राइट्स की जगह Sr. DEM को सौंपी गयी
- प्रधानमंत्री के लोकल ‘फॉर वोकल’ के अभियान की निकाली जा रही हवा
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वरोजगार की परिकल्पना और लोकल फॉर वोकल अभियान को लेकर सरकार चाहे जो भी हवा बना ले रेलवे के अधिकारी उससे इतिफाक नहीं रखते. रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव के मंत्रालय में जोन से लेकर डिवीजन तक अधिकारियों की मनमानी का आलम यह है कि नियम-कानून को अपने अनुसार परिभाषित कर गाइडलाइन से हटकर धड़ल्ले से टेंडर निकाले जा रहे हैं. टेंडर के प्रावधानों में भी सुविधा और अपनों को उपकृत करने के लिए बदलाव करने से अधिकारियों को गुरेज नहीं है.
बड़ा खेल : #OSOP के लिए स्टेशनों पर आउटलेट निर्माण के टेंडर में #SER समेत कई जोनों में मनमानी, चुनिंदा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर को किया #Limited, रेलवे बोर्ड व PCMM और PCCM के निर्देश को भी ठेंगा दिखा रहे Sr.DMM @PMOIndia@AshwiniVaishnaw@IR_CRB@CVCIndia pic.twitter.com/N853pTsxrA
— Railhunt (@railhunt) August 11, 2022
रेलवे में नया विवाद प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी OSOP वन स्टेशन वन प्रोडक्ट योजना के तहत विभिन्न स्टेशनों पर आउटलेट निर्माण के टेंडर को लेकर सामने आया है. रेलवे बोर्ड ने देश भर के चुनिंदा स्टेशनों पर OSOP आउटलेट खोलने का निर्देश जुलाई में जारी किया था. आउटलेट के लिए बकायदा एनआईडी अहमदाबाद ने डिजाइन तैयार किया है. बोर्ड से मिले दिशानिर्देश के बाद सभी जोनल रेलवे और डिवीजनों को डिजाइन व गाइडलाइन के ही अनुसार काम कराने का निर्देश जारी किया गया. इसी की आड़ में जोन से डिवीजन स्तर पर स्थानीय अधिकारी खेल कर गये.
रेलवे बोर्ड ने गाइडलाइन में स्पष्ट परिभाषित किया है कि OSOP आउटलेट के लिए Sr. DEN और Sr.DCM आवश्यक प्रक्रिया सुनिश्चित करायेंगे जबकि Sr. DMM इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया करेंगे. टेंडर के लिए रेलवे बोर्ड ने स्पष्ट गाइडलाइन जारी किया था कि पैन इंडिया के तहत आने वाली पांच कंपनियां M/S Godrej, M/S Methodex, M/S Duroplast, M/S Neelkamal, M/S Durian की तरह अथवा उनके समकक्ष प्रदर्शन करने वाली कंपनियों से यह कार्य कराया जायेगा. लोकल फॉर वोकल योजना के तहत बोर्ड ने यह भी निर्धारित कर दिया था कि डीआरएम की स्वीकृति से मान्य स्थानीय वेंडर भी कंपनियों से आर्थाराइजेशन लेकर टेंडर में हिस्सा ले सकेंगे.
लेकिन कई जोन व डिवीजन में स्थानीय अधिकारियों ने आनन-फानन में OSOP आउटलेट के लिए टेंडर निकालकर उसे ‘LIMITED’ कर दिया है. डिवीजन स्तर पर निकाले गये टेंडर से चुनिंदा कंपनियों को ही मौका मिलेगा. डिवीजन स्तर पर Sr. DMM द्वारा टेंडर जारी किया गया है जिसमें साजिश के तहत एक झटके से स्वरोजगार पाने के इच्छुक स्थानीय कारोबारियों को टेंडर से ही दूर कर दिया है. स्थानीय वेंडर कंपनियों से ऑथराइजेशन लेकर भी मुंह देखते रह गये. आरोप है कि बड़ी कंपनियों के साथ पहले से जोन और डिवीजन स्तर पर की गयी बड़ी डील यह परिणाम हैं. टेंडर को लिमिटेड किये जाने को लेकर मौन साधे जोनल अधिकारियों की भूमिका भी इसमें संदिग्ध हो गयी है.
डिवीजन स्तर पर निकाली गयी निविदा में किन कंपनी/एजेंसी को शामिल किया गया वह अब सिर्फ और सिर्फ रेलवे अधिकारी ही जातने हैं या फिर निविदा में हिस्सा लेने के लिए अधीकृत की गयी एजेंसी व कंपनियां. ऐसे में कंपनी के चयन को लेकर अपनायी गयी सारी प्रक्रिया सवालों के घेरे में है.
बात यहीं तक नहीं रुकी. रेलवे बोर्ड की गाइडलाइन के अनुसार पांच लाख से अधिक के किसी भी वर्क में मेटेरियल व डिजाइन के अनुसार कार्य गुणवत्ता की जांच राइटस से करानी होती है लेकिन OSOP के टेंडर में आउटलेट निर्माण से लेकर उसकी गुणवत्ता निर्धारण की जिम्मेदारी सीनियर डीइएन को सौंप दी गयी है. यानी Sr DEN इसके लिए अंतिम रूप से जिम्मेदार होंगे.
टेंडर से वंचित किये गये स्थानीय कारोबारियों का कहना है कि वन स्टेशन वन प्रोडक्ट योजना में आउटलेट बनाने का डिजाइन से लेकर मेटेरियल तक का स्पेशिफिकेशन स्पष्ट कर दिया गया है. यह 100 फीसदी कार्पेंटरी वर्क है. जब यह काम स्थानीय व्यवसायी कर सकते है तो इसमें बड़ी कंपनियों को उतारने का क्या मतलब रह जाता है. यह सिर्फ और सिर्फ चुनिंदा कंपनियों और लोगों को पिछले दरवाजे से मौका देने का प्रयास है, जिसकी रेलवे बोर्ड के अलावा विजिलेंस से भी जांच करायी जानी चाहिए. यह प्रधानमंत्री के स्वरोजगार योजना की हवा निकालने वाला ही कदम है.
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