Connect with us

Hi, what are you looking for?

Rail Hunt

देश-दुनिया

रेलवे में ब्रिटिश काल से चली आ रही लाटशाही खत्म, अब बंगले पर नहीं मिलेंगे चपरासी

रेलवे में ब्रिटिश काल से चली आ रही लाटशाही खत्म, अब बंगले पर नहीं मिलेंगे चपरासी
  • टीएडीके के कर्मचारी को 120 दिनों की सेवा के बाद ग्रुप डी का अस्थायी रेलकर्मी माना जाता था
  • तीन साल की सेवा पूरी होने पर स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद ऐसे लोगों की हो जाती थी स्थायी पोस्टिंग 

रेलहंट ब्यूरो, नई दिल्ली

भारतीय रेलवे ने वरिष्ठ अधिकारियों के आवासों पर टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलासी (TADK) के रूप में तैनात किए जाने वाला “बंगला चपरासी” को देने के अभ्यास को समाप्त करने का निर्णय लिया है. रेलवे बोर्ड द्वारा गुरुवार 6 अगस्त को ब्रिटिश-युग की विरासत की समीक्षा के बाद बकायदा एक आदेश जारी कर इसे बंद करने की बात कही है. इसमें यह बात कही जा रही है कि रेलवे अधिकारियों ने Telephone Attendant-cum-Dak Khalasis (TADKs) की सेवाओं का दुरुपयोग करने की कोशिश की है. रेलवे बोर्ड के आदेश में यह स्पष्ट किया गया है कि अब यह मुददा उसके समीक्षा के अधीन है लिहाजा इस पद के लिए कोई नई नियुक्ति तत्काल प्रभाव से नहीं की जायेगी.

यही नहीं रेलवे बोर्ड ने 1 जुलाई 2020 से ऐसी नियुक्तियों के लिए अनुमोदित सभी मामलों की समीक्षा करने की बात कही है. बोर्ड को सलाह दी है कि रेलवे के सभी प्रतिष्ठानों में इस आदेश का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराया जाये. रेलवे बोर्ड के इस फरमान को उच्च पदस्त अधिकारियों के अधिकारों में कटौती के रूप में देखा जा रहा है, जिन्हें अपनी सुविधा और पसंद के अनुसार अब तक टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलासी (TADK) के रूप में एक व्यक्ति को पिछले दरवाजे से रेलवे में प्रवेश दिलाने का सीधा अधिकार प्राप्त था.

रेलवे में ब्रिटिश काल से चली आ रही लाटशाही खत्म, अब बंगले पर नहीं मिलेंगे चपरासीटीएडीके को शुरुआती 120 दिनों की सेवा के बाद ग्रुप डी श्रेणी में भारतीय रेलवे के अस्थायी कर्मचारी के रूप में माना जाता है. तीन साल की सेवा पूरी होने पर स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद पोस्टिंग स्थायी मानी जाती थी. इस तरह वह व्यक्ति सीधे तौर पर रेलवे का हिस्सा बन जाता है. बाद में उसके पास शैक्षणिक योग्यता और विभागीय परीक्षाओं को पार करते हुए आगे बढ़ने का पूरा मौका होता है. रेल मंत्रालय के सूत्रों की माने तो रेलवे चौतरफा प्रगति के तेजी से परिवर्तनशील मार्ग पर है. प्रौद्योगिकी और कामकाजी परिस्थितियों में बदलाव के मद्देनजर कई प्रथाओं और प्रबंधन उपकरणों की समीक्षा की जा रही है. बोर्ड द्वारा उठाए गए इस कदम को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए.

इसके विपरीत ब्रिटिश काल से चली आ रही टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलासी (TADK) की सुविधा को हटाये जाने के आदेश पर इसी अब तक रही प्रशांगिकता पर सवाल उठाये जाने लगे है. फिलहाल मुंह नहीं खोलने वाले रेलवे के आला अधिकारी रेलवे बोर्ड के इस कदम को सेवा विस्तार पर चल रहे सीआरबी और रेलवे बोर्ड में रिटायरमेंट के मुहाने पर पहुंच गये उच्च अधिकारियों की साजिश मान रहे हैं. ऐसे अधिकारियों का कहना है कि तमाम सेवा काल में इस सुविधा का लाभ लेने वालों को रिटायरमेंट की दहलीज पर इसका ख्याल क्यूं आया कि यह सुविधा गैरजरूरी है. इसे तुगलकी फरमान बताया जा रहा है.

इसके लिए यह भी तर्क दिया जा रहा है कि नयी व्यवस्था बहाल होने तक किसी सुविधा को अचानक से बंद करने अथवा उसकी समीक्षा करना संवैधानिक व्यवस्था प्राकृतिक न्याय के विपरीत है. कहा जा रहा है कि जनता अथवा सरकारी कर्मियों के लिए पहले से चली आ रही कोई सुविधा तब तक वापस नहीं ली जा सकती है, जब तक कि उसके समकक्ष वैसी ही दूसरी कोई बेहतर सुविधा मुहैया न करा दी जाए. हालांकि मामले में ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है.

टीएडीके को शुरुआती 120 दिनों की सेवा के बाद ग्रुप डी श्रेणी में भारतीय रेलवे के अस्थायी कर्मचारी के रूप में माना जाता है. तीन साल की सेवा पूरी होने पर स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद पोस्टिंग स्थायी मानी जाती थी. इस तरह वह व्यक्ति सीधे तौर पर रेलवे का हिस्सा बन जाता है. रेलवे में पिछले दरवाजे से इंट्री का यह रास्ता अधिकारियों के पास सुरक्षित था.

ऐसा नहीं है कि रेलवे बोर्ड स्तर पर एकाएक टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलासी (TADK) की सुविधा बंद करने का फरमान जारी कर दिया गया है. इससे पहले अधिकारियों के संगठन एफआरओए ने सीआरबी और रेलमंत्री के समक्ष यह मुद्दा उठाया था. यह बताया जा रहा है कि तब उन्हें टीएडीके की व्यवस्था को खत्म नहीं करने बल्कि पर्सनल चॉइस को खत्म करने की बात कही गयी थी. भविष्य में टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलासी (TADK) को लेकर जो भी निर्णय आये लेकिन वर्तमान में रेलकर्मियों का एक बड़ा वर्ग रेलवे बोर्ड के इस निर्णय पर मौन समर्थन जता रहा है. ऐसे लेागों को मानना है कि रेलवे में पिछले दरवाजे से किसी भी नियुक्ति का रास्ता हमेशा के लिए बंद किया जाना ही चाहिए क्योंकि उसका उपयोग रेलवे फेडरेशन के नेता, प्रभावशाली राजनीतिक लोग, अधिकारी हमेशा से करते रहे हैं.

सूचनाओं पर आधारित समाचार में किसी सूचना अथवा टिप्पणी का स्वागत है, आप हमें मेल railnewshunt@gmail.com या वाट्सएप 6202266708 पर अपनी प्रतिक्रिया भेज सकते हैं.

Spread the love
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

ताजा खबरें

You May Also Like

रेलवे जोन / बोर्ड

रेलवे यूनियन चुनाव में OPS नहीं बन सका मुद्दा, UPS पर सहमति जताने वाले संगठन फिर से सत्ता पर काबिज  KOLKATTA/NEW DELHI. रेलवे ट्रेड...

रेलवे जोन / बोर्ड

हाईटेक रेल-कम-रोड निरीक्षण वाहन और अत्याधुनिक रेलवे ट्रैक हेल्थ मैनेजमेंट सिस्टम को अश्विनी वैष्णव ने देखा  कहा – अगले पांच वर्षों में सभी रेल...

न्यूज हंट

ROURKELA. हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग के राउरकेला स्थित कलुंगा रेल फाटक के पास मंगलवार 17 दिसंबर की रात करीब साढ़े नौ बजे एक भीषण रेल...

रेलवे जोन / बोर्ड

NEW DELHI. रेलवे यूनियनों की मान्यता के चुनाव में दोनों फेडरेशन (AIRF/NFIR) फिर से केंद्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने में सफल रहे हैं. ...