- राउरकेला में बिना वर्दी में स्टेशन पर घूमने और अनधिकृत वेंडरों को मैनेज करने वाला कौन है ‘बंटी सिंह ‘
- SER में दो साल से सीनियर इंस्पेक्टरों की उपेक्षा कर सब इंस्पेक्टर एसएल मीणा को क्यों किया जा रहा कंटीन्यू
- हर जगह मातहतों में सीनियर्स के प्रति घृणा और जनमानस में वर्दी के प्रति वितृष्णा का बढ़ रहा है भाव
ROURKELA. राउरकेला रेलवे स्टेशन पर पांच दर्जन से अधिक अवैध वेंडरों की दिन-रात धमाचौकड़ी मच रही है. इससे चार गुणा अधिक अनधिकृत वेंडर ट्रेनों में राउरकेला से झारसुगुड़ा और हावड़ा की ओर अफरा-तफरी मचाये हुए है. आरपीएफ के नये IG/SER संजय कुमार मिश्रा, चक्रधरपुर कमांडेंट पी शंकर कुट्टी के आने के बाद यह सुरक्षा बल में कुछ सकारात्मक बदलाव की जो उम्मीद जगी थी, वह भी अब धीरे-धीरे कुंद होती जा रही है.
कारण स्पष्ट है कि दोनों अधिकारी जमीनी हकीकत से दूर मुख्यालय में बैठकर कार्य के निष्पादन पर जोर दे रहे. दोनों ने अब तक सामान्य निरीक्षण व सुरक्षा सम्मेलन कर जमीनी हकीकत जानने की जहमत तक नहीं उठायी है. जवान परेशान हैं तो आईपीएफ अनुचित मांगों को पूरी करने के लिए मनमानी पर उतर आये हैं. यह आलम है सिर्फ चक्रधरपुर डिवीजन में एक स्टेशन का. अन्य का क्या होगा यह समझने वाली बात है. जबकि संजय कुमार मिश्रा SER में आरपीएफ डीआईजी रह चुके हैं.
जोन में हॉकरों की धमाचौकड़ी के पीछे भी बड़ा अर्थतंत्र काम कर रहा है. हकीकत में अवैध अनधिकृत खानपान वेंडरों के माई-बाप आरपीएफ के लोग ही बने हुए हैं, जिनके अत्याचारों से परेशान, सड़ा-गला-बासी खानपान सामग्री लेने के अलावा हर दिन ओवरचार्जिंग का शिकार हजारों यात्री हो रहे. किसी स्तर पर की जाने वाली शिकायत पर हफ्ते-दस दिन की मुहिम चलाकर आईजी-डीजी के सामने सिर्फ आंकड़े प्रस्तुत कर दिये जाते है, जबकि जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं होता.
अवैध खेल हमेशा चलता रहता है. हाॅल के दिनों में राउरकेला में RPF/IVG की टीम ने भी निरीक्षण की खानापूर्ति की थी, जिसके जाते ही दर्जनों की संख्या में अवैध वेंडरों की गतिविधियां यहां फिर से बेखौफ शुरू हो गयी है. गाहे-बगाहे अधिकारियों के दौरे में इसे कुछ घंटों के लिए बंद कर दिया जाता है. उसके बाद सब कुछ यथावत हो जाता है. आखिर इतनी राशि इन अफसरों के वेतन-भत्तों का खर्च करने का औचित्य क्या रह जाता है ?
सही मायने में आरपीएफ का यह तथाकथित सतर्कता विभाग IVG अब सफेद हाथी ही साबित हो रहा है. शिकायतों पर यह अक्सर हमजोली बनकर भाईचारा निभाने वाली भूमिका में नजर आता है. RPF/IVG एक ऐसा विभाग है, जहां सारा स्टाफ RPF का ही होता है. उन्हें इस बात का पूरा अनुभव होता है कि भ्रष्टाचार के लूपहोल कहां-कहां और कैसे-कैसे होते हैं, ऐसे में समुचित कार्यवाही करके उस पर पर्याप्त लगाम लगाई जा सकती है. तथापि यदि ऐसा नहीं हो रहा है, तो इसका एक ही अर्थ निकलता है कि भ्रष्टाचार के हमाम में सभी नंगे हैं. IVG-CIB-SIB की रिपोर्ट भी खंगाल ले तो हकीकत सामने आ जाये.
सवाल यह उठ रहा है कि जब ग्रेड ‘ए’ ‘बी’ ‘सी’ के लगभग सभी रेलवे स्टेशनों पर सीसीटीवी लग चुके हैं, तब इन्हीं रेलवे स्टेशनों पर अवैध-अनधिकृत वेंडरों की भरमार कैसे है? इन्हें रोकने और पकड़ने, सजा दिलाने की जिम्मेदारी किसकी है? इस सब के लिए रेल राजस्व यानि जनता की गाढ़ी कमाई के जो हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, वह क्या उच्च अधिकारियों की कमीशनखोरी के लिए किए गए हैं? यदि नहीं, तो फिर रेलवे स्टेशनों और चलती गाड़ियों तथा अन्य रेल परिसरों में अवैध-अनधिकृत वेंडरों, किन्नरों और लूटपाट करने वाले असामाजिक तत्वों की धमाचौकड़ी कैसे हो रही है ?
#IG_RPF_SER और #DG_RPF अगर ऐसी मुहिमों की हकीकत जानना चाहते हैं तो एक-दो महीने के आंकड़े मंगाकर देख लें. वही-वही लोग, वही-वही चेहरे होते हैं, जिन्हें अलग-अलग दिनों और स्थानों से पकड़ा गया दिखाकर कागजी खानापूर्ति की जाती है. आरपीएफ पोस्ट से आरोपी अथवा पकड़े गए अवैध वेंडर को डेढ़ से तीन हजार रुपये के नकद मुचलके पर अगले दिन कोर्ट में हाजिर होने के नाम पर या शर्त पर छोड़ दिया जाता है, जबकि अमूमन आरोपी कभी वापस आता ही नहीं. यदि आता भी है, तो कोर्ट से सजा/दंड के बाद बकाया राशि शायद ही कभी उसे लौटाई जाती है. किसी न किसी बहाने फोर्स में आतंरिक भ्रष्टाचार और बाहरी अवैध वसूली हमेशा चरम पर रहती है.
राउरकेला में तो RPF की स्थिति काफी दिलचस्प है. यहां फिलहाल स्थायी आईपीएफ की जगह एडहक सब इंस्पेक्टर को इंस्पेक्टर बनाकर डेढ़-दो साल से काम चलाया जा रहा है. बड़ा सवाल यह है कि जब रेलवे सुरक्षा बल में TMM लागू हो चुका है. कई सीनियर IPF असंवेदनशील पदों पर समय काट रहे तो राउरकेला जैसे संवेदनशील स्टेशन पर किन परस्थितियों में सब इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी की पोस्टिंग को कंटीन्यू किया जा रहा है? इतने लंबे समय तक पद को रिक्त कर TMM से नये IPF की पोस्टिंग क्यों नहीं की गयी? (विस्तृत रिपोर्ट जल्द)
आम धारणा है कि अधिकतर आरपीएफ इंस्पेक्टर (आईपीएफ इंचार्ज) अपने मातहत स्टाफ से वसूली करके उन्हें भ्रष्टाचार की तरफ प्रवृत्त कर रहे हैं! ऐसी वसूली को लेकर आरपीएफ स्टाफ में असंतोष भी है. यह स्थिति कई जोन व डिवीजन में है. राउरकेला में खुद को आईपीएफ का स्पेशल बताने वाला बंटी सिंह स्टेशन पर सक्रिय रहता है. यह बिना वर्दी के स्टेशन व ट्रेनों में घूमकर आरपीएफ ओसी की फरमान को अनधिकृत वेंडरों तक पहुंचाता है. इसके नौ साल से राउरकेला में रहने की सूचना है.
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दक्षिण पूर्व रेलवे के कई आरपीएफ स्टाफ ने ऐसी जानकारियां #RAILHUNT से शेयर भी की है. कुछ ने तो ऑडियो रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध कराने की बात कही है. उन्होंने यह भी कहा है कि ऐसे सभी आईपीएफ के नाम समय आने पर सार्वजनिक किये जायेंगे. कुछ अपवादों को छोड़कर यह निकृष्ट कर्म इसलिए हो रहा है, क्योंकि आईपीएफ से पीसीएससी तक भ्रष्टाचार की लिंक बनी हुई है! इससे मातहतों में अपने सीनियर्स के प्रति घृणा और जनमानस में वर्दी के प्रति वितृष्णा का भाव बढ़ रहा है.
अब नये डीजी/आरपीएफ मनोज यादव प्रभार ले चुके हैं. वह बल की कार्यप्रणाली को समझ रहे हैं. रेलवे बोर्ड की नयी चेयरमैन जया वर्मा सिन्हा भी अवैध मामलों को लेकर हमेशा से सख्त रहीं हैं. ऐसी उम्मीद की जाती है कि अब ऊपरी स्तर पर ही कोई ऐसी कार्रवाई हो सकी है जो इस रोग को सख्ती से रोकने के लिए कारगर होगी.
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