JAMSHEDPUR. चक्रधरपुर रेलमंडल के अंतर्गत टाटानगर में रेलवे जमीन पर लीज के मामले में लगातार अनियमितता के मामले सामने आ रहे हैं. लीज जमीन को लेकर सुनील कुमार पिल्ले की मौत प्रकरण के बाद रेलवे इंजीनियरिंग विभाग के साथ आरपीएफ भी सवालों के घेरे में हैं. यहां यह मुद्दा अहम हो गया है कि रेलवे के रिकार्ड में लीजधारी कोई और है तो किस नियम से बड़े स्तर पर पावर ऑफ अटर्नी लेकर रेलवे जमीन पर हक किसी और दिया जा रहा है ? वर्षों से चल रहे इस खेल में कौन-कौन लोग भागीदार थे और तब रेलवे के जिम्मेदारी अधिकारी व कर्मचारी कहां थे ? इसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी और अगर इसे रोका नहीं गया तो आज इसके लिए जिम्मेदार कौन लोग है ?
ताजा मामला स्टेशन-बागबेड़ा रोड किनारे हो रहे निर्माण को लेकर उठ खड़ा हुआ है जिसमें सीधे-सीधे रेलवे लैंड विभाग के अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध हो गयी है. यहां लीजधारी से पावर ऑफ अटर्नी लेकर बीते दिनों निर्माण कराया गया है. इसमें लीज के नियमों का उल्लंघन करने की बात सामने आयी है. बताया जाता है कि लीज की स्वीकृत जमीन से अधिक क्षेत्रफल की घेराबंदी कर अनाधिकृत रूप से इसकी खरीद करने वाले द्वारा निर्माण करा लिया गया है. दिन के उजाले में यह निर्माण कराया गया है, इस कारण यह माना जा रहा है कि यह सब कुछ रेलवे लैंड अधिकारियों की जानकारी में कराया गया है.
दिलचस्प बात यह है कि समीप ही एक होटल मालिक ने लीज जमीन को अपने नियंत्रण में लेकर दोमंजिला निर्माण करा लिया है. यह लीज नियमों के विपरीत है. हालांकि टाटानगर रेलवे लैंड विभाग के अधिकारी का कहना है कि यह निर्माण 15 साल पहले कराया गया है. उनकी जानकारी में यह बात आयी तो उन्होंने डिवीजन को रिपोर्ट भेजी है लेकिन अब तक वहां से किसी तरह की कार्रवाई के आदेश नहीं आये है. उन्होंने यह भी माना कि टाटानगर में लीज जमीन पर अनाधिकृत रूप से दोमंजिला निर्माण के 10 से अधिक मामले है जिन पर संज्ञान लेकर रिपोर्ट डिवीजन को भेजी गयी है लेकिन कोई आदेश नहीं आया. अब सवाल यह उठता है कि अगर सब कुछ डिवीजन के आला अधिकारियों की नजर में है तो अब तक ऐसी अवैध गतिविधियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? जानकार यह मानते है कि निर्माण कराने वालों की ऊंची पहुंच के कारण ही अब तक यह मामला दबा रह गया. तो क्या 15 साल बाद रेलवे इंजीनियरिंग विभाग के लोगों को यह गलती नजर आयी ?
- लीज की जमीन पर दोमंजिला निर्माण की नहीं है अनुमति, कैसे कराया गया निर्माण
- लीज नियमों के उल्लंघन के समय रेलवे लैंड विभाग के अधिकारी व कर्मचारी कहां थे
- अगर इस मामले में कोई रिपोर्ट नहीं की गयी तो क्यों, और की गयी तो कार्रवाई क्या हुई
स्थानीय लैंड अधिकारी (आईओडब्ल्यू लैंड आरके सिंह) के अनुसार स्वीकृत प्लॉट से अधिक क्षेत्रफल की घेराबंदी कर निर्माण कराने की बात उनकी जानकारी में है और इसकी रिपोर्ट भी 2021-22 में डिवीजन को भेजी गयी थी लेकिन अब तक वहां से किसी तरह की कार्रवाई का आदेश नहीं आया. आईओडब्ल्यू लैंड आरके सिंह की बात को अगर सही मान भी लिया जाये तो दिलचस्प बात यह है कि मेन रोड पर एक माह के भीतर ही नया निर्माण लीज जमीन पर कराया गया जो क्षेत्रफल से अधिक है तब उसे रोकने की कोशिश क्यों नहीं की गयी? ऐसा करने वाले पर अब तक विभागीय कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? अब तक इसकी रिपोर्ट आईओडब्ल्यू लैंड ने विभाग को क्यों नहीं की?
रेलहंट को मिली जानकारी के बाद यह मामला अधिकारियों के संज्ञान में लाया गया. इसके बाद चक्रधरपुर का रेलवे इंजीनियरिंग महकमा हरकत में आया है. बताया जाता है कि टाटानगर का इलाका डीईएन ईस्ट खपोस चंद्र गुप्ता (केसी गुप्ता) के अधीन आता है. मामले की जानकारी मिलने के बाद डीईएन ईस्ट ने तत्काल प्रभाव से अनियमितता के मामलों में जिम्मेदार लोगों पर रेलवे स्टेट आफिस में केस दर्ज कराने का आदेश आईओडब्ल्यू लैंड टाटा को दिया है. लीज के जमीन पर अवैध तरीके से कराये गये निर्माण को नियमानुसार तोड़ दिया जाना है लेकिन आम तौर पर यह देखा जाता है कि रेलवे इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर ऐसे मामलों को दबा दिया जाता है और फिर वर्षों से जांच के नाम पर फाइल को लटकाये रखा जाता है.
रेलवे लीज के उल्लंघन का लाजा मामला एक माह के अंतराल का है. यहां पावर ऑफ अटर्नी से लीज की जमीन का हक लिया गया था. इसके बाद यहां नया निर्माण कराया गया है. इससे इससे पहले छह माह पूर्व की एक और निर्माण कराया गया था. लीज जमीन के खरीद-फरोख्त के मामले में कई सवाल हैं जो रेलवे अधिकारियों की भूमिका को सवालों के घेरे में लाते हैं. इसमें लीज जमीन को सरेंडर नहीं कर दूसरे को पावर के नाम पर बेच देना शामिल है. जांच का विषय है कि अब तक कई ऐसे लीजधारियों का निधन हो चुका है लेकिन उनके नाम पर लीज जमीन की रसीद बिना किसी जांच के कैसे लगातार काटी जा रही है.