- प्रताड़ना की हद है यह तो … नौकरी के अंतिम पड़ाव में कर दिया परिवार से दूर
- धनबाद में सीनियर डीओएम के बंगले में गेटमैन की मौत से किसी ने नहीं ली सबक
CHAKRADHARPUR. धनबाद में रेलवे गेटमैन पवन कुमार राउत का शव सीनियर डीओएम अंजय तिवारी में घर पंप हाउस से चार मार्च 2024 को बरामद किया गया था. पवन तेतुलमारी में गेटमेन के पद पर कार्यरत था. लेकिन वह ड्यूटी सीनियर डीओएम के घर में बजा रहा था. यह क्रम लगातार जारी था लेकिन सवाल तब उठे जब पवन का शव सीनियर डीओएम के घर में फंदे से लटकता पाया गया. पुलिस यह जांच कर रही है कि पवन की मौत आत्महत्या थी यह मानसिक परेशानी का कारण. यह मानसिक परेशानी पारिवारिक थी या ड्यूटी को लेकर प्रताड़ना की परकाष्ठा !
कारण चाहे जो भी हो एक परिवार का सहारा उन लोगों ने छीन लिया जो इसके लिए जिम्मेदार थे. संभव हो पुलिस जिम्मेदारी तय कर दे या उच्च स्तरीय दबाव में फाइल बंद हो जाये लेकिन पवन की मौत ने धनबाद रेलमंडल के सीनियर डीओएम, सीनियर डीईएन काे-ऑर्डिनेशन से लेकर डीआरएम ही नहीं रेलवे यूनियन के उन नेताओं को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है जो रेलकर्मियों की सेवा के नाम पर रेलवे की सुविधाओं का लगातार उपभोग कर रहे हैं.
यह हकीकत रेलवे के सभी जोन और डिवीजन में दोहरायी जा रही है. इसके लिए वे रेलकर्मी भी उतने ही जिम्मेदार है जो रेलवे ट्रैक पर काम करने की जगह अधिकारियों की चापलूसी व सेवा कर ड्यूटी से मुक्ति पाने को बड़प्पन समझते है. नियम कानून से हटकर अधिकारी अपने निजी काम के लिए इनकी सेवा अधिकार मानकर लेते हैं, जब ये लोग रेलवे सेवा के नाम पर ऐसा करने से इंकार करते हैं तो अपने अधिकार का दुरुपयोग कर उन्हें दबाया, परेशान किया जाता है.
कुछ ऐसा की घटना चक्रधरपुर रेलमंडल में दोहरायी जा रही है. सीनियर डीईई टीआरडी एसके मीना ने बकायदा कंट्रोल आदेश जारी कर चपरासी रैंक के कर्मचारी रामना का तबादला डांगुवापोसी कर दिया है. तबादला के कारण तो प्रशासनिक बताये गये लेकिन रामना को जहां भेजा गया वहां चपरासी का पद ही नहीं है. रामना इन दिनों स्टेशन पर घूमकर अपना समय बीता रहा है. हालांकि मीडिया को दिये अपने बयान में सीनियर डीईई ने बताया कि डांगुवापोसी में रेलकर्मियों की आवश्यकता थी इसलिए रामना को वहां भेजा गया.
वहीं रामना ने अपने सहयोगियों को बताता कि उन्होंने साहब (सीनियर डीईई) के घर में काम करने से इंकार कर दिया इसलिए उन्हें परिवार से दूर यहां वीराने में भेज दिया गया है. यह सजा कालापानी से कम नहीं है. उसकी नौकरी अब एक साल रह गयी है. ऐसे जब किसी को अपने परिवार की सबसे अधिक जरूरत होती है उन्हें घर-परिवार से दूर परेशान करने की नियत से भेज दिया गया है. रामना का कहना है कि उनकी अंतिम उम्मीद डीआरएम अरुण जातोह राठौड़ से थी. वह उन तक पहुंचा भी और अपनी मानसिक, शारीरिक, पारिवारिक परिस्थितियों को समझने का प्रयास नहीं किया लेकिन जब उन्होंने भी उनकी बात नहीं सुनी तो उसने डांगुवापोसी आकर ज्वाइन कर लिया. अब यहां वह दिन काट रहा है, उसके पास करने के लिए कोई काम भी नहीं है.
परिस्थितियां बन गयी हो या उत्पन्न की गयी हो, चक्रधरपुर के रामना की स्थिति धनबाद के पवन से अलग नहीं है. यूनियन नेता मौन हैं, अधिकारी सुनने को तैयार नहीं. 59 साल का रामना डांगुवापोसी में मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना के उस दौर से गुजर रहा है जहां उसे सिर्फ अपने परिवार की याद आ रही है. ऐसे मानसिक प्रताड़ना के दौर से रेलवे की सेवा के अंतिम पड़ाव में रामना अगर कोई गलत कदम उठा लेता है तो उसके लिए कौन लोग जिम्मेदार होंगे ?
रेलहंट नियमों की बात नहीं करता, लेकिन किसी संगठन में 30 साल की सेवा देने वाले, जवानी से लेकर अधेड़ावस्था गुजार देने वाले किसी कर्मचारी के साथ ऐसा व्यवहार ! किसी संगठन, समाज में किसी भी रूप से स्वीकार्य नहीं हो सकता.
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