- झांसी के बाद कानपुर में डाक्टरों की टीम ने 33 यात्रियों को दी दवा, सबकी स्थिति स्थिर
- आइआरसीटीसी का दावा, अवैध वेंडर से खानपान सामग्री ली गयी, की जा रही जांच
KANPUR. रेलवे स्टेशनों पर अवैध वेंडरों की पहुंच और यात्रियों की सुरक्षा को लेकर रेलवे की लापरवाही शुक्रवार 26 अप्रैल को तब सामने आ गयी जब अंडा-बिरयानी खाने के बाद 40 से अधिक यात्रियों को आपात स्थिति में इलाज की जरूरत पड़ गयी. घटना 22534 यशवंतपुर-गोरखपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस में घटी. इन यात्रियों को बलारशाह स्टेशन पर अवैध तरीके से खानपान सामग्री बेचने वाले वेंडर ने खाने का आर्डर लिया था और नागपुर जंक्शन पर अंडाकरी व अंडा बिरयानी दी थी. जिसे खाने के बाद सबकी तबीयत बिगड़ने लगी.
पेट में दर्द, उल्टी-दस्त और बुखार की शिकायत होने पर यात्रियों की जांच झांसी और कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर की गयी और उन्हें आवश्यक दवाएं दी गयी. इसे लेकर शुक्रवार दोपहर 15 मिनट ट्रेन कानपुर में खड़ी रही. सभी यात्री खतरे से बाहर हैं. रेलवे सूत्रों के अनुसार यात्री विवेक मुस्कान, पीयूष, बबिता, प्रेमचंद्र, मोहम्मद फरहान, रुकैया बेगम, मिथलेश, राम शरण, आनंद, सुमित व अभिनव ने परेशानी होने की शिकायत की थी.
झांसी में यात्रियों की जांच व उपचार किया गया. यहां ट्रेन को एक घंटे तक रोका गया. इसके बाद कानपुर में डाक्टरों की टीम ने जांच कर 33 यात्रियों को आवश्यक दवा दी. अब रेल प्रशासन मामले की जांच करा रहा है. आइआरसीटीसी के वरुण गोयल ने मीडिया को बताया कि अवैध वेंडर से खानपान सामग्री लेने की बात प्रथम दृष्टया सामने आयी है. आगे जांच के बाद स्थिति स्पष्ट होगी.
ट्रेन में फूड प्वाइजनिंग की इस घटना में 40 से अधिक यात्रियों की जान-जोखिम में पड़ने के बाद फिर से अवैध तरीके से रेलवे में बिक रही खानपान सामग्री को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. इस मामले में आरपीएफ व कॉमर्शियल के लोगों की मिलीभगत की बातें सामने आती रही है. हालांकि वेंडरों से मिलने वाली अवैध कमाई के मोह में आरपीएफ के अधिकारी व जवान से लेकर कैटरिंग निरीक्षक, आइआरसीटीसी व रेल अधिकारी अवैध वेंडरों पर मौन रहते हैं. यह माना जाता है कि अवैध वेंडरों के नेटवर्क से इनका सीधा जुड़ाव होता है और यह यात्रियों के लिए खतरे की घंटी है.
मालूम हो कि डिब्बाबंद अंडा बिरयानी की खराब गुणवत्ता को लेकर रेलवे ने कई बार यात्रियों की सेहत को ध्यान में रखकर इसकी बिक्री पर रोक भी लगा दी है लेकिन अच्छी कमाई के चक्कर में रेलवे के अधीकृत वेंडर भी इसकी बिक्री धड़ल्ले से करते है जिसकी गुणवत्ता को निर्धारित करने की जरूरत रेलवे अधिकारी भी जरूरी नहीं समझते.