- रेलवे बोर्ड जल्द ही जारी कर सकता है अधिसूचना, यूनियनों में सुगबुगाहट
- चुनाव से पूर्व वंदेभारत एक्सप्रेस में रेलकर्मियों को यात्रा की मिल सकती है मंजूरी
- एआईआरएफ 23 को निजीकरण के खिलाफ हल्ला बोल की तैयारी में जुटा
रेलहंट ब्यूरो, नई दिल्ली
रेलवे की विभिन्न इकाईयों के निगमीकरण और निजीकरण को लेकर चल रहे आंदोलनों के बीच रेलवे यूनियनों की मान्यता के लिए चुनाव आयोजन की तैयारियां अंतिम चरण में चल रही है. ऐसा माना जा रहा है कि रेलवे बोर्ड जल्द ही चुनाव की अधिसूचना जारी कर सकता है और चुनाव नवंबर के अंतिम सप्ताह में कराये जा सकते हैं. रेलवे बोर्ड के स्तर पर इसके संकेत मिल रहे हैं. यूनियन नेताओं का भी मानना है कि नंवबर के अंत तक चुनाव आयोजित किया जा सकता है इसे लेकर विभिन्न यूनियनों ने फिर से अपनी तैयारी शुरू कर दी है.
भारतीय रेलवे मजदूर संघ के उपमहामंत्री नरेंद्र कुमार मिश्रा ने बीते सप्ताह रेलवे बोर्ड के आला अधिकारियों से बातचीत में निकले निष्कर्ष के आधार पर यह कहा कि नवंबर के आखिरी सप्ताह में जोनों में चुनाव कराने का प्रस्ताव तैयार है और यह संभवत: तिथियां 25 एवं 26 नवंबर को के लिए जारी की जा सकती है. नरेंद्र कुमार मिश्रा ने भारतीय रेलवे मजदूर संघ के सभी जोन के महामंत्रियों व पदाधिकारियों से अंतर्विरोध को भुलाकर डेढ़ माह के लिए त्याग कर संगठन की मान्यता हेतु प्रचार प्रसार में जुटने का आह्वान किया है. नरेंद्र कुमार मिश्रा ने जारी बयान में बताया है कि अब यह अवसर पुनः 5 साल बाद आयेगा इसलिए BRMS के किसी पदाधिकारी का प्रवास या किसी भी प्रकार का सहयोग चाहिए तो योजना बना लें और तत्काल अध्यक्ष, महामंत्री, संगठन मंत्री या अन्य BRMS पदाधिकारी को इसकी सूचना दें. इससे समय रहते आगे का प्रोग्राम बनाया जा सके. उन्होंने कहा कि वन्देभारत एक्सप्रेस में रेलकर्मियों को यात्रा की अनुमति दिये जाने का प्रस्ताव रेलवे बोर्ड स्तर पर लंबित है, संभव है उसे जल्द ही स्वीकृति मिल जायेगी.
उत्तर मध्य रेलवे कर्मचारी संघ UMRKS आगरा के मंडल मंत्री बंशी बदन झा ने बताया कि रेलवे के निगमीकरण और निजीकरण की राह पर चल रही सरकार को सबक सिखाने का समय आ गया है. रेलकर्मी अब नहीं जगे तो यह मौका फिर नहीं मिलेगा. बंशी बदन झा ने स्पष्ट किया कि भारतीय रेलवे मजदूर संघ कुछ मुद्दों पर सरकार के साथ सहमत हो सकता है लेकिन रेलवे के निजीकरण और निगमीकरण के साथ मजदूर हित के किसी भी मुद्दे पर संघ सरकार के विरोध में खड़ा नजर आयेगा. उन्होंने कहा कि रेलवे कर्मचारियों को रेलवे के मान्यता प्राप्त दोनों फेडरेशन की भूमिका को समझना होगा क्योंकि वर्तमान की सभी नीतियां इनके कार्यकाल में ही तय की गयी है जिन्हें रेलवे अब अब फलीभूत करने की कवायद कर रहा है. इसलिए रेलकर्मियों को यह समझना होगा कि अब तीसरे विकल्प के रूप में भारतीय रेलवे मजदूर संघ एक सशक्त रूप में रेलकर्मियों के बीच आ रहा है जो अपनी भूमिका निभाने को तैयार है.
रेलवे के निगमीकरण और निजीकरण की राह पर चल रही सरकार को सबक सिखाने का समय आ गया है. रेलकर्मी अब नहीं जगे तो यह मौका फिर नहीं मिलेगा.रेलवे कर्मचारियों को रेलवे के मान्यता प्राप्त दोनों फेडरेशन की भूमिका को समझना होगा क्योंकि वर्तमान की सभी नीतियां इनके कार्यकाल में ही तय की गयी है जिन्हें रेलवे अब अब फलीभूत करने की कवायद कर रहा है.
बंशी बदन झा, मंडल मंत्री, उत्तर मध्य रेलवे कर्मचारी संघ
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इससे पूर्व यूनियनों की मान्यता के लिए शुक्रवार 31 मई को रेलवे बोर्ड ने सेक्रेड बैलेट चुनाव कराने की अधिसूचना जारी कर अगस्त माह में चुनाव करने का ऐलान किया था. जिसे एक अगस्त को जारी सूचना में तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया है. एक अगस्त को रेलवे बोर्ड के इक्जीक्यूटिव डायरेक्टर व सेक्रेड बैलेट इलेक्शन कमेटी के चेयरमैन आलोक कुमार की ओर से जारी आदेश में अगस्त में प्रस्तावित सेक्रेड बैलेट इलेक्शन 2019 को स्थगित करने की घोषणा की गयी है. अब चुनावों के लिए नये सिरे से तारीखों की घोषणा करने की बात थी. यह शुरू से तय था कि चुनाव नवंबर में हो सकते हैं.
पहली बार यूनियन की मान्यता के लिए मई 2007 में हुए थे चुनाव
रेलवे में यूनियन की मान्यता के लिए पहली बार चुनाव मई 2007 में कराये गये थे. इसमें एआईआरएफ (ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन) की नार्दन रेलवे मेंस यूनियन नियम अनुसार 35 फीसदी वोट लेकर सत्ता में आई थी. जबकि एनएफआईआर (नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे) की उत्तरी रेलवे मजदूर यूनियन बड़े मार्जन से निश्चित फीसदी वोट पूरा ना होने के कारण सत्ता से बाहर हो गई थी. परंतु 2013 में दोनों यूनियनों को 35 फीसदी वोट हासिल होने के कारण मान्यता मिल गयी. रेलवे में एआईआरएफ को 17 जोनों में से 14 जोनों में विजय मिली थी. जबकि एनएफआईआर को 17 में से सिर्फ 10 जोन में ही जीत हासिल हुई थी. अब दोनों फेडरेशन से जुड़ी यूनियनें फिर से अपनी मान्यता को लेकर चुनाव मैदान में उतरेंगी. चुनाव की घोषणा होने के दो माह पूर्व दोनों फेडरेशनों की मान्यता खत्म हो जाएगी. ऐसा दो माह पूर्व आचार संहिता लग जाने के कारण होगा.
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हालांकि चुनाव की आहट के साथ ही अलग-अलग जोन में दोनों फेडरेशन से जुड़ी यूनियनें कर्मचारियों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है. किसी भी जोन में कर्मचारियों की कुल संख्या के 35 प्रतिशत वोट पाने पर यूनियन को ही जोन में मान्यता देने का प्रावधान है. इस बार चुनाव में एआईआरएफ (ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन) और एनएफआईआर (नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे) के अलावा अन्य यूनियनें भी उतरने को ताल ठोंक रही है. इस कारण रेलकर्मियों को जहां एक ओर अपनी मनपसंद यूनियन चुनने का मौका होगा वहीं दूसरी ओर दोनों मान्यता प्राप्त फेडरेशन के लिए अपना दुर्ग बचा पाने की कठित चुनौती भी होंगी. इस बार भारतीय रेलवे मजदूर संघ को भी अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा क्योंकि अब तक संघ को किसी भी जोन में मान्यता प्राप्त नहीं है. इसके अलावा देश भर में विभागवार कई यूनियनों ने अपने-अपने स्तर पर कर्मचारियों को संगठित करना शुरू कर दिया है. हर यूनियन अपनी-अपनी मान्यता के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी में है. इन यूनियनों में एआईआरएफ और एनएफआईआर के प्रति अपने-अपने विभागों की समस्याओं को बेहतर तरीके से रेल प्रशासन के समक्ष नहीं उठा पाने के लिए नाराजगी है. इसमें रेलवे ट्रैकमेन यूनियन, एसएंडटी यूनियन समेत कई अन्य यूनियनें शामिल है.
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