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रेलवे यूनियनों की मान्यता के लिए चुनाव की फिर तेज हुई सरगर्मी, 10 को होगी इलेक्शन कमेटी की बैठक

रेलमंत्री को नहीं भाये सेक्रेटरी, हटाये गये रंजनेश सहाय

Railway Union Elections. रेलवे में यूनियनों की मान्यता के लिए चुनाव को लेकर फिर से सरगर्मी तेज हो गयी है. लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद रेलवे बोर्ड स्तर पर सेक्रेड बैलेट इलेक्शन कमेटी ने चुनाव को लेकर 10 जुलाई को यूनियनों की बैठक बुलायी गयी है. इसमें यूनियनों के दो प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है. कमेटी चुनाव आयोजित करने को लेकर अहम फैसले ले सकती है. इलेक्शन कमेटी द्वारा बैठक बुलाये जाने के बाद चुनाव को लेकर सरगर्मी फिर से तेज हो गयी है.

यहां यह बताना लाजिमी होगा कि 01 फरवरी 2024 को  सेक्रेड बैलेट चुनाव को लेकर रेलवे बोर्ड ने दिशा-निर्देश जारी किया था. हालांकि बाद में चुनाव तिथियों की घोषणा होने से पहले ही इसे टाल दिया गया. एक बार फिर से सेक्रेड बैलेट इलेक्शन कमेटी ने चुनाव को लेकर यूनियनों से विचार-विमर्श शुरू कर दिया है. इस क्रम में भारतीय रेलवे मजदूर संघ को 10 जुलाई 2024 को वार्ता के लिए आमंत्रित किया गया है. 

रेलवे यूनियनों की मान्यता के लिए चुनाव की फिर तेज हुई सरगर्मी, 10 को होगी इलेक्शन कमेटी की बैठकउत्तर मध्य रेलवे कर्मचारी संघ आगरा मंडल के मंत्री बंशी बदन झा ने बताया कि रेल ट्रेड यूनियन की मान्यता के चुनाव सम्बन्धी विचार विमर्श के लिए 10 जुलाई को रेलवे बोर्ड ने भारतीय रेलवे मजदूर संघ (BRMS) के अध्यक्ष एवं महामंत्री को आमंत्रित किया है. चुनाव के बिंदुओं को लेकर मजदूर संघ का दृष्टिकोण स्पष्ट है और बैठक में उन बिंदुओं को नेताओं द्वारा रखा जायेगा.

मालूम हो कि रेलवे में यूनियन की मान्यता के लिए पहली बार चुनाव मई 2007 में कराये गये थे. इसमें एआईआरएफ (ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन) की नार्दन रेलवे मेंस यूनियन नियम अनुसार 35 फीसदी वोट लेकर सत्ता में आई थी. जबकि एनएफआईआर (नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे) की उत्तरी रेलवे मजदूर यूनियन बड़े मार्जन से निश्चित फीसदी वोट पूरा ना होने के कारण सत्ता से बाहर हो गई थी.

दूसरी बार 2013 में हुए चुनाव में दोनों यूनियनों को 35 फीसदी वोट हासिल होने के कारण मान्यता मिल गयी. रेलवे में एआईआरएफ को 17 जोनों में से 14 जोनों में विजय मिली थी. जबकि एनएफआईआर को 17 में से सिर्फ 10 जोन में ही जीत हासिल हुई थी. तीसरी बार 2019 में चुनाव प्रस्तावित था. इसके लिए अधिसूचना जारी की गयी थी लेकिन पहले लोस चुनाव फिर कोरोना के कारण यह टलता गया. 05 साल बाद एक बार फिर से रेलवे बोर्ड की पहल के बाद चुनाव को लेकर यूनियनों में हलचल तेज हो गयी है.

किसी भी जोन में कर्मचारियों की कुल संख्या के 35 प्रतिशत वोट पाने पर यूनियन को ही जोन में मान्यता देने का प्रावधान है. इस बार चुनाव में एआईआरएफ (ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन) और एनएफआईआर (नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे) के अलावा अन्य यूनियनें भी उतरने को ताल ठोंक रही है. इस कारण रेलकर्मियों को जहां एक ओर अपनी मनपसंद यूनियन चुनने का मौका होगा वहीं दूसरी ओर दोनों मान्यता प्राप्त फेडरेशन के लिए अपना दुर्ग बचा पाने की कठित चुनौती भी होंगी.

हालांकि देश भर में विभागवार कई यूनियनों ने अपने-अपने स्तर पर कर्मचारियों को संगठित करना पहले से शुरू कर दिया है. हर यूनियन अपनी-अपनी मान्यता के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी में है. इन यूनियनों में एआईआरएफ और एनएफआईआर के प्रति अपने-अपने विभागों की समस्याओं को बेहतर तरीके से रेल प्रशासन के समक्ष नहीं उठा पाने के लिए नाराजगी है. इसमें रेलवे ट्रैकमेन यूनियन, एसएंडटी यूनियन समेत कई अन्य यूनियनें शामिल है.

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