- मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के दिन ही जारी लखनऊ डीआरएम ने दिया टारगेट
- विभागों के आउटसोर्स करने से खाली पदों पर सरेंडर करने की तैयारी में विभाग
- राजधानी-शताब्दी चलाने का जिम्मा निजी ऑपरेटरों को देने की तैयारी शुरू
- प्रमुख ट्रेनों, मालगाड़ियों के बाद पार्सल को पूरी तरह निजी ऑपरेटर की योजना
- यह हाल रहा तो रेलवे में सिर्फ रह जायेंगे अफसर, चुनाव में किस मुंह से उतरेंगे नेता
रेलहंट ब्यूरो, नई दिल्ली
मोदी सरकार जब अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ ले रही तो ठीक उसी समय उत्तरी रेलवे के लखनऊ डिवीजन में लगभग 26,000 नौकरियां खत्म करने फरमान जारी कर दिया. मंडल रेल प्रबंधन ने बकायदा विभागवार पदों की सूची जारी कर वर्तमान पदों में एक फीसदी की कटौती का लक्ष्य विभागीय पदाधिकारियों को थमा दिया है. इसमें वित्तीय वर्ष में एक परसेंट पदों को खत्म करने का टारगेट दिया गया है. यह लक्ष्य देश के सभी रेल मंडलों को दिया गया है. जिसकी कुल संख्या 164 है. इस तरह 30 मई को एक तरफ़ राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के 57 सदस्य शपथ ले रहे थे उसी समय लखनऊ डीआरएम ने यह अधिसूचना जारी की.
यह निर्णय उस समय लिया गया है जब रेलवे की मान्यता के लिए दो फेडरेशन के साथ रेलवे में उभर आयी छोटी-बड़ी यूनियनें अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ने को कमर कस चुकी है. जारी अधिसूचना में कुल 13 विभागों में 26,260 पदों के समाप्त करने का लक्ष्य दिया गया है. यह लक्ष्य पिछले साल का है जब कर्मचारियों की संख्या एक प्रतिशत तक लाने की बात कही गयी थी. इसका मतलब साफ हुआ कि अब 26,260 की जगह मात्र 264 पद ही रहे जायेंगे.
30 मई को जारी डीआरएम का पत्र बकायता लक्ष्य और पदों की संख्या के साथ लखनऊ डिविज़न के सभी ब्रांच आफ़िसों को भेजा गया है. रेलवे ने पदों को समाप्त करने को एक्शन प्लान का नाम दिया है और कहा है कि इस टार्गेट को 2019-20 के वित्तीय वर्ष में ही पूरा किया जाना है. इसके तहत, अकाउंट्स में 191 पद, इंजीनियरिंग में 7338 पद, मकैनिकल (ओ एफ़) में 2783 पद, मकैनिकल (सी डब्ल्यू) में 1938पद, मकैनिकल (डीएसएल) में 1014 पद, एसएंडटी में 1573 पद, इलेक्ट्रिकल (G) 1541 पद, इलेक्ट्रिकल (टीआरडी एंड टीआरएस) 550 पद, मेडिकल में 875 पद, स्टोर में 19 पद, सिक्यूरिटी में 1292 पद और कामर्शियल में 2601 पद ख़त्म होंगे. यानी इन विभागों में ग्रुप सी में 18,602 और ग्रुप डी में 7,658 पद समाप्त होने हैं. ये पद उन विभागों में ग्रुप डी और सी के अंतर्गत आते हैं. इन्हें ख़त्म कर सिर्फ़ 264 पद ही बचे रहेंगे.
मंडल रेल प्रबंधक की इस अधिसूचना के आलोक में अब तक रेलवे यूनियनों की ओर से दबी-छुपी प्रतिक्रिया ही देखने को मिली है. हालांकि रेलवे यूनियन के नेताओ का यह कहना है कि रेलवे में चल रहे प्राइवेटाइजेशन की वजह से ही नौकरियां ख़त्म हो रही हैं. यूनियन नेता यह भी मान रहे है कि अब उनका विरोध रेल प्रशासन अथवा सरकार के आगे गौण हो गया है उनकी बात सुनी ही नहीं जा रही है. तर्क यह दिया जा रहा है कि कई विभागों को पहले ही आउटसोर्स कर दिया है जिससे कर्मचारियों के पास कोई काम नहीं बचा है. लिहाजा पदों को सरेंडर किया जा रहा है. अब सवाल उठता है कि रेलवे के यूनियन नेता किन मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में रेलकर्मियों के साथ उतरेंगे. यह देखने वाले बात होगी.
राजधानी-शताब्दी का परिचालन निजी ऑपरेटर को देने की तैयारी
आधे से अधिक रेलवे का निजीकरण लगभग किया जा रहा चुका है. यह सब उस सरकार में हो रहा है जिसके मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में 2014 में चुनाव जीतने के बाद बनारस में आयोजित सार्वजनिक सभा में कहा था कि रेलवे को बेचने से पहले वो मर जाना पसंद करेंगे. लेकिन मोदी सरकार ने ही चुपचाप अंदर ही अंदर रेलवे के बहुत से विभागों का निजी कंपनियों के हवाले कर दिया है. अब सरकार कुछ ट्रेनों के परिचालन को भी निजी हाथों में देने पर विचार कर रही है. जनवरी में रेलवे बोर्ड के सदस्य यातायात गिरीश पिल्लई ने परिवहन अनुसंधान एवं प्रबंधन केंद्र के एक कार्यक्रम में इस बात का संकेत दिया था जिसका प्रारुप अब सामने आ गया है.
जिस तेजी से रेलवे का निजीकण किया जा रहा है, उससे लगने लगा है कि मोदी सरकार के अगले पांच साल के कार्यकाल में पूरी रेलवे निजी हाथों में चली जाएगी और सिर्फ अफ़सर रह जाएंगे.
रेलवे बोर्ड के सूत्रों ने बीते दिनों बातचीत में स्पष्ट कर दिया कि आने वाले समय में राजधानी और शताब्दी जैसी प्रीमियम ट्रेनों को चलाने का काम निजी कंपनियों को दिया जायेगा. इसके लिए सौ दिनों का टारगेट भी फिक्स है. इस अवधि में प्रीमियम ट्रेनों को चलाने का परमिट निजी कंपनियों को दे दिया जायेगा. ऐसे में जब राजधानी और शताब्दी जैसी प्रीमियम ट्रेनें प्रॉफिट में चल रही हैं उनका ऑपरेटर मिलना आसान होगा. हालांकि इस निर्णय को यात्री सुविधाओं में इजाफे के रूप बढ़ाकर पेश किया जा रहा है. यह पहले ही रेलवे के स्तर से स्पष्ट कर दिया गया कि रेलवे ऑपरेटरों के लिए किराए की ऊपरी सीमा खुद तय करेगी ताकि परमिट पाने वाली निजी कंपनी अधिक किराया नहीं वसूल सके. इससे यह साफ हो गया है कि स्टेशनों की तरह ही राजधानी और शताब्दी ट्रेनों को एक-एक करके टेंडर के माध्यम से निजी कंपनियों को सौंपा जायेगा. हालांकि रेलवे का अधिक जोर पहले मालगाड़ियों और उनके वैगन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाने पर है.
रेलवे में पदों को आउटसोर्स करने की कवायद, ट्रेनों और स्टेशन को निजी हाथों में देने की बेचैनी से यह लगने लगा है कि मोदी सरकार के अगले पांच साल के कार्यकाल में पूरी रेलवे निजी हाथों में चली जाएगी और रेलवे में सिर्फ अफ़सर रह जाएंगे.