Connect with us

Hi, what are you looking for?

Rail Hunt

खुला मंच

रेलनगरी खड़गपुर के दादा भाई, कभी बोलती थी तूती, अब तो सब कुछ फिल्मी है

रेलनगरी खड़गपुर के दादा भाई, कभी बोलती थी तूती, अब तो सब कुछ फिल्मी है

तारकेश कुमार ओझा

क्या आप खड़गपुर के रहने वाले हैं ? क्या आपने दादा -भाई को देखा है? नए लड़कों को अचरज होगा , लेकिन 60-70 के दशक में हाफ पैडिल साइकिल सीखने वाली पीढ़ी को भलीभांति पता होगा, तब के दादा भाई लोग कैसे थे. सचमुच कमाल के लोग थे. एक नंबर का दादा फलां, पोर्टरखोली का दादा अमुक. इन दादाओं का इलाका भले छोटा होता था, लेकिन इनका खौफ लोगों में ‘गब्बर सिंह’ से कम ना था. इन दादाओं और इनके आदमियों के बीच छोटा-मोटा गैंगवार भी हुआ करता था.

रेलनगरी खड़गपुर के दादा भाई, कभी बोलती थी तूती, अब तो सब कुछ फिल्मी है

तारकेश कुमार ओझा की कलम से

मिलनी सिनेमा वाला एक नंबर गया तो पिट कर लौटा तो वहीं पोर्टरखोली वाले की एक नंबर में पिटाई होती थी. चक्कू-छुरी और सोड़ा बोतल ही तब के खौफनाक हथियार थे. आज के बच्चे एके 47 देखकर जितना न डरे उतना हम भुजाली का नाम सुन कर कांप जाते थे. तब के दादा भाई लोग काफी सादगी और सफाई पसंद थे. उनकी साइकिल बिल्कुल चमकदार होती थी, जिसके कैरियर पर बैठ कर वे अपने इलाके का राउंड लगाते थे. साइकिल चलाने के लिए बाकायदा आदमी रखे जाते थे और लोगों में उसकी भौंकाल भी टाइट रहती थी कि ….बंदा फलां दादा की साइकिल चलाता है.

उसी दौर में एक फिल्म देखकर हफ्तों होश उड़े रहे. ‘दीवार’ जिसका हीरो विजय कई दादाओं को उनके अड्डे में घुस कर मार-मार कर प्लाट कर देता है. विश्वास ही नहीं होता था कि सचमुच ऐसा भी हो सकता है. ये फिल्म वाले लोगों का कितना चुतिया काटते हैं इसका अहसास समझ बढ़ने पर हुआ. साफ है कि यदि उस काल में भी कोई विजय वास्तव में बदमाशों को पीट पीट कर सुला भी दे तो फिल्म का ‘दि एंड’ भी वहीं हो जाता. फिर विजय न तो परवीन बाबी के साथ गाना गा पाता और न मां को अपना आलीशान घर दिखा पाता. …. जाओ पहले उसका साइन लेकर आओ … वाला डायलॉग बोलता भी तो लूला-लंगड़ा बन कर.

फिल्मों में हमें बेवकूफ बनाने का सिलसिला अब भी जारी है | हाल में एक फिल्म देखी ‘अपहरण’. इस फिल्म का एक खुंखार किरदार है ‘गया सिंह’. खतरनाक इतना कि अपहरण का धंधा चलाता है. अपहरण किए गए लोगों के परिजनों से मांडीवली भी कराता है. किसी वजह से वो फिल्म के हीरो अजय शास्त्री से खार खा जाता है. घुसखोर पुलिस अधिकारी शुक्ला उसे अपनी जाल में फंसा कर अजय के हवाले कर देता है. अपहरण गिरोह चलाने वाला बेहद खतरनाक गया सिंह इतना बड़ा बेवकूफ है कि अजय को मारने अकेला ही एक सुनसान अड्डे पर चला जाता है और डायरेक्टर की मर्जी के अनुसार खुद ही मुर्दाघर पहुंच जाता है.

खैर फिल्म वाले तो हमें आगे भी बेवकूफ बना कर चांदी कूटते रहेंगे, लेकिन खड़गपुर के दादाओं को देख चुके हम जैसे लोग कतई नहीं मानेंगे कि कोई छोटा-मोटा बदमाश भी कभी ऐसी गलती करेगा.

यह लेखक के विचार है इसमें रेलहंट की सहमति आवश्यक नहीं

Spread the love
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

ताजा खबरें

You May Also Like

रेलवे जोन / बोर्ड

रेलवे यूनियन चुनाव में OPS नहीं बन सका मुद्दा, UPS पर सहमति जताने वाले संगठन फिर से सत्ता पर काबिज  KOLKATTA/NEW DELHI. रेलवे ट्रेड...

रेलवे जोन / बोर्ड

हाईटेक रेल-कम-रोड निरीक्षण वाहन और अत्याधुनिक रेलवे ट्रैक हेल्थ मैनेजमेंट सिस्टम को अश्विनी वैष्णव ने देखा  कहा – अगले पांच वर्षों में सभी रेल...

Breaking

ROURKELA. हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग के राउरकेला स्थित कलुंगा रेल फाटक के पास मंगलवार 17 दिसंबर की रात करीब साढ़े नौ बजे एक भीषण रेल...

रेलवे जोन / बोर्ड

NEW DELHI. रेलवे यूनियनों की मान्यता के चुनाव में दोनों फेडरेशन (AIRF/NFIR) फिर से केंद्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने में सफल रहे हैं. ...