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द.पू.म.रे. विजिलेंस कर रहा जीएम बंगले में भारी-भरकम खर्च की जांच

द.पू.म.रे. विजिलेंस कर रहा जीएम बंगले में भारी-भरकम खर्च की जांच
  • भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे जीएम/द.पू.म.रे. को दिया गया प.म.रे. का अतिरिक्त चार्ज

सुरेश त्रिपाठी. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के तीन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किए गए भ्रष्टाचार की शिकायत रेलवे बोर्ड विजिलेंस और सीबीआई को क्रमशः जुलाई एवं सितंबर 2017 में की गई थी. इस शिकायत के मद्देनजर सीबीआई ने तो कोई कदम नहीं उठाया, परंतु रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने पहले भी कई दिन बिलासपुर में डेरा डालकर गहन छानबीन की थी और अभी 24 से 27 जुलाई तक लगातार चार दिन डिप्टी डायरेक्टर/विजिलेंस जगदीश पांडेय के नेतृत्व में बिलासपुर में डेरा डालकर रेलवे बोर्ड की विजिलेंस टीम ने पुनः गहरी जांच-पड़ताल की है. जाहिर है कि उपरोक्त दोनों शिकायतों के मद्देनजर रेलवे बोर्ड विजिलेंस टीम की यह जांच-पड़ताल खासतौर पर महाप्रबंधक के बंगले में विभिन्न आलिशान और विलासितापूर्ण सुविधाओं के लिए नियम विरुद्ध खर्च किए गए लगभग 70 लाख रुपये से ही संबंधित थी.

तथापि, कदाचारी महाप्रबंधक के दबाव में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के कुछ स्थानीय अधिकारियों द्वारा रेलवे बोर्ड विजिलेंस टीम की इस जांच-पड़ताल को ‘रूटीन जांच’ बताकर स्थानीय मीडिया को दिग्भ्रमित किया गया. यही नहीं, स्थानीय मीडिया पर खबर प्रकाशित नहीं किए जाने का दबाव भी बनाया गया. पत्रकारों ने विजिलेंस टीम से जांच के संबंध में सवाल पूछे थे. महकमे में यह चर्चा है कि जिस जीएम के विरुद्ध विजिलेंस और सीबीआई को भ्रष्टाचार की लिखित शिकायतें की गई हैं और जिसकी जांच चल रही है, उसे एक और जोन के जीएम का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है.

दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में भ्रष्टाचार का रेलवे बोर्ड विजिलेंस एवं सीबीआई को भेजी गयी शिकायत का ब्यौरा

फरवरी 2017 से जुलाई 2017 के दरम्यान महाप्रबंधक/द.पू.म.रे. के बंगले की कथित मरम्मत, नवीनीकरण और विलासिता की वस्तुओँ की खरीद के लिए करीब 70 लाख से अधिक रुपये का अवैध तरीके से व्यय किया गया. जबकि जीएम बंगले में इस तरह का कोई कार्य करवाने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि पूर्व महाप्रबंधक सत्येन्द्र कुमार ने भी काफी पैसा खर्च करके उक्त बंगले को आलीशान बनाया था और जनवरी 2017 तक उसमें रहे थे. उल्लेखनीय है कि जीएम और डीआरएम के बंगलों में किसी भी तरह का कार्य करवाने के लिए न खर्च की सीमा तय है, और न ही समय-सीमा निर्धारित की गई है. जीएम/द.पू.म.रे. के बंगले में जो कार्य करवाया गया, उसका कोई टेंडर अथवा कार्य आदेश भी नहीं निकाला गया.

वर्तमान इंजीनियरिंग मैन्युअल (नियम 1904) के अनुसार अधिकारियों के बंगलों में एक लाख से ऊपर खर्च नहीं किया जा सकता और पूरे जोन के अधिकारियों को मिलाकर यह खर्च सीमा कुल 30 लाख रुपये ही निर्धारित है. इसके लिए भी नियमानुसार रेलवे बोर्ड की पूर्व संस्तुति लेना अनिवार्य है. लेकिन यहां जीएम बंगले में काम करवाने के लिए रेलवे बोर्ड को भी ठेंगा दिखा दिया गया. यानि रेलवे बोर्ड की पूर्व अनुमति लिए बिना ही सब कुछ किया गया. उल्लेखनीय है कि इसके लिए इंजीनियरिंग, स्टोर्स, इलेक्ट्रिकल और एकाउंट्स इत्यादि विभागों में से किसी भी विभाग ने भुगतान में कहीं कोई अड़ंगा नहीं लगाया, जबकि एकाउंट्स वाले छोटी से छोटी बात के लिए दसियों बार फाइल वापस करके संबंधित विभागों को कई-कई बार लेफ्ट-राइट करवाते हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार उपरोक्त में से किसी भी विभाग ने किसी भी प्रकार का अड़ंगा इसलिए नहीं लगाया, क्योंकि परचेज ऑर्डर पर लिखा होता था ‘फॉर जीएम रेजिडेंशियल ऑफिस’. जानकारों का कहना है कि परचेज ऑर्डर पर लिखी उक्त एक लाइन देखकर किसी अधिकारी की यह मजाल नहीं हो सकती है कि फिर कोई सवाल करे. यही वजह है कि सभी विभागों या अधिकारियों ने उक्त खरीद से संबंधित सभी बिलों को बिंदास क्लियर कर दिया. उनका कहना है कि यहां जीएम बंगले में ऐसे-ऐसे कार्य कराए गए और ऐसे विलासितापूर्ण सामान खरीदे गए, जिन्हें इस देश के किसी भी सरकारी बंगले में कराने का अधिकार ही नहीं है.

उदहारण स्वरूप, रंग-बिरंगे हैवी ड्यूटी मोटर पम्प के साथ चार फाउंटेन, आलीशान मचान, राजाओं-महाराजाओं जैसा नहाने के महंगे बाथ टब, बाथ टब में लेटने के बाद ऑटोमेटिक वाटर सप्लाई, माड्यूलर किचन और कई अन्य माड्यूलर सामान, आठ एसी, आठ गीजर, 20 पंखे, कई घूमने वाले पंखे, वृहदाकार आधुनिक टीवी, अजीबो-गरीब लाइट्स और रंग-बिरंगी इलेक्ट्रिक झालरों का भंडार, सेंसर वाले कई महंगे वाटरिंग सिस्टम, महंगे फ्लोरिंग टाइल्स, कीमती दरवाजे, महंगे से महंगे परदे, सोफे, अलमारियां इत्यादि के साथ ऐश-ओ-आराम का अन्य ढ़ेरों अनगिनत सामान खरीदा गया, जिसकी अनुमति न कभी मिल सकती थी और न ही कोई राजा-महाराजा भी आज की स्थिति में वैसा रुतबा अपने पैसे से कर सकता है, जैसा जीएम/द.पू.म.रे. ने अपने बंगले में रेलवे के पैसे से करवाया.

उपलब्ध सबूतों के आधार पर जीएम बंगले में यह सभी कार्य चापलूस मंडल अभियंता (आवास) बिलासपुर ए. के. पांडेय की अत्यंत उत्साहित देखरेख में करवाए गए, जिन्होंने खुद अपने और अपने बॉस (वरिष्ठ मंडल अभियंता/समन्वय) के बंगले में कुछ साल पहले अनाप-सनाप तरीके से तमाम आलीशान तामझाम के लिए लाखों रुपये कुछ इसी अंदाज में खर्च किए थे. जानकारों का कहना है कि सभी मंडलों में ‘जोनल वर्क’ के नाम पर बड़ा फंड होता है, जिसके अंतर्गत स्टेशनों, रेल आवासों और कार्यालयों में इस तरह के कार्य का हर साल करोड़ों रुपये का टेंडर निकलता है. लेकिन वास्तविकता यह है कि ऐसे कार्य या तो किए ही नहीं जाते या बाहरी दीवारों का मामूली रंग-रोगन कर लीपा-पोती कर दी जाती है. जहां रेलकर्मियों और इंजीनियरिंग विभाग से इतर अन्य अधिकारियों के आवासों में कोई काम नहीं करवाया जाता और उन्हें एक मामूली से मामूली काम के लिए भी महीनों तक संबंधित इंजीनियरिंग अधिकारियों की चिरौरी-विनती करनी पड़ती है, वहीँ इंजीनियरिंग अधिकारियों के आवास सर्व-सुविधा-संपन्न और विलासिता की प्रत्येक वस्तु से सुसज्जित देखे जा सकते हैं.

जोनल वर्क से संबंधित ठेकेदार का कहना होता है कि जहां मर्जी काम करा लो, या मत कराओ, हमको तो काम की एवज में सिर्फ पैसे से मतलब है. सीधे शब्दों में यदि कहा जाए, तो इंजीनियरिंग विभाग का यह फंड भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा स्रोत है, जो प्रत्येक अधिकारी को मालूम है. उच्च अधिकारी इसी का फायदा लेकर स्टाफ के आवासों में फर्जी तरीके से कार्य दिखाकर, जिधर चाहे उधर या जैसे चाहें वैसे, इस फंड का दुरूपयोग करते हैं. जो अधिकारी ज्यादा होशियार होते हैं, वह तो ठेकेदार से सीधे कैश डीलिंग कर लेते हैं. जानकारों का कहना है कि कुछ अपवादों को छोड़कर इस तरह के कार्य लगभग सभी डीआरएम और जीएम अपने बंगले में घुसने से पहले करवाते ही हैं, क्योंकि इन दोनों पोस्टिंग के बाद उन्हें फिर कभी अपनी मनमानी करने का अवसर पूरी सर्विस में नहीं मिल पाता है.

द.पू.म.रे. मुख्यालय और बिलासपुर मंडल के लगभग सभी अधिकारियों ने अपने बंगलों के कम्पाउंड में लाइट कनेक्शन स्ट्रीटलाइट के खंभे से ले रखा है, जो सिर्फ अवैध ही नहीं, बल्कि भारतीय बिजली कानून की धारा 39 के अंतर्गत दंडनीय अपराध भी है. यही स्थिति लगभग पूरी भारतीय रेल के सभी मंडलों में पदस्थ अधिकारियों की भी है. इसके लिए सभी जोनल प्रधान मुख्य विद्युत् अभियंता को सीधे पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराने का अधिकार दिया गया है. परंतु जब खुद साहूकार (प्रिंसिपल सीईई) ही चोरी के इस अवैध कृत्य में शामिल हो, तो पुलिस को सूचित कौन करेगा?

यही नहीं, द.पू.म.रे. के जीएम सहित अधिकांश अधिकारीगण अपने बंगलों का प्रतिमाह बिजली बिल का भुगतान वास्तविक खपत और मीटर रीडिंग के अनुसार नहीं कर रहे हैं. यहां तक बताते हैं कि वास्तविक घरेलू खपत का चौथाई हिस्सा भी नहीं भर रहे हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार जिस अधिकारी का वास्तविक बिजली बिल ढ़ाई से तीन हजार रुपये मासिक होना चाहिए, वह मात्र ढ़ाई-तीन सौ रुपये बिजली बिल दे रहा है. इससे भारतीय रेल में करोड़ों की बिजली चोरी और अरबों का घपला हो रहा है. बिलासपुर मंडल और मुख्यालय अधिकारियों द्वारा तो स्ट्रीटलाइट से खुलेआम कनेक्शन लिए ही गए हैं. साथ ही जब इसकी शिकायत हुई, तो 17 नवंबर 2017 को दिखावे के लिए प्रिंसिपल सीईई द्वारा डिस्कनेक्ट करने का एक पत्र जारी किया गया, लेकिन मंडल अधिकारियों ने ऐसा एक भी कनेक्शन काटने की जहमत और हिम्मत अब तक नहीं दिखाई है.

इसके आलावा द.पू.म.रे. मुख्यालय ने पिछले कई वर्षों से बाकायदा एक पत्र जारी करके अधिकारियों के वेतन से प्रतिमाह 200-300 रुपये बतौर बिजली बिल काटने का गैर-कानूनी मगर अधिकृत फरमान जारी कर रखा है. शिकायत के बाद अक्टूबर 2017 में इसे बढ़ाकर 500 रुपये किया गया और अब 1200-1500 रु., जबकि सबके घरों में कम से कम तीन से आठ एसी और इतने ही गीजर तथा अन्य भारी बिजली खपत के उपकरण लगे हुए प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं. यही नहीं, जीएम/डीआरएम सहित लगभग सभी अधिकारियों को नियम विरुद्ध जनरेटर से भी कनेक्शन दिए गए हैं.

अपवाद स्वरूप पूर्व सीएससी मुनव्वर जैसे किसी एकाध अधिकारी ने ही शायद अपना बिजली बिल पूरी ईमानदारी से दिया होगा, वरना पिछले 15 वर्षों, जोन की स्थापना से लेकर अब तक, यहां आए और गए किसी भी अधिकारी ने आज तक पूरा और वास्तविक बिजली बिल नहीं दिया है. रेलवे ने ऐसे सभी बिजली चोर अधिकारियों का यह करोड़ों रुपये का बिल या तो खुद भरा है अथवा बट्टे खाते में डाल दिया है. यही नहीं, जब बकाया और रिकवरी का अंतर करोड़ों में दिखने लगा, तो अत्यंत शातिर चोरों के अंदाज में छोटे कर्मचारियों के नाम 15-20 लाख का फर्जी क्रेडिट कंप्यूटर में दिखाकर छोड़ दिया गया है, ताकि बकाया रकम बहुत मामूली दिखे और किसी की पकड़ में न आए.

तीसरी लिखित शिकायत अधिकारियों द्वारा अपने घरों में रेल कर्मचारियों से काम कराने से संबंधित थी, जिससे यह अधिकारीगण रेलवे को अरबों रुपये का अप्रत्यक्ष चूना लगा रहे थे. हालांकि उक्त शिकायत के बाद सीआरबी द्वारा इस मामले में जीएम/डीआरएम से लिखित कंप्लायंस मांगने के बाद कीमती मानव-संसाधन का यह दुरुपयोग कुछ कम हुआ है, परंतु अभी भी सीधे अथवा कार्यालयों में काम के बहाने बुलाकर घरों में इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा है. इसका प्रमाण यह है कि इस संबंध में ‘रेल समाचार’ को विभिन्न मंडलों से रोजाना 8-10 शिकायतें सीधे ट्रैकमैनों से प्राप्त हो रही हैं. कर्मचारियों का कहना है कि लगभग सभी जीएम/डीआरएम द्वारा इस मामले में सीआरबी को फर्जी कंप्लायंस देकर गुमराह किया गया है.

हालांकि सीबीआई ने खुद तो उक्त शिकायतों पर कोई संज्ञान नहीं लिया, मगर उसने द.पू.म.रे. में बड़े पैमाने पर हो रहे भ्रष्टाचार को समझने के बाद उपरोक्त शिकायतों को प्रिंसिपल ईडी/विजिलेंस, रेलवे बोर्ड सुनील माथुर को कार्यवाही करने हेतु अग्रसारित कर दिया था. रेलवे बोर्ड ने सारे सबूतों को देखने और समझने के बाद शिकायतकर्ता से शिकायत की पुष्टि सहित अन्य उपलब्ध सबूतों की जानकारी लेकर कार्यवाही शुरू की है, मगर पुख्ता सबूतों के बावजूद रे.बो. विजिलेंस अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है. तीन माह पहले भी डिप्टी डायरेक्टर/विजिलेंस, कॉंफिडेंशियल जगदीश पांडेय के नेतृत्व में रे.बो. की एक विजिलेंस टीम ने बिलासपुर के इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, एकाउंट्स और स्टोर्स विभाग में गहन छानबीन कर संबंधित दस्तावेजों की छानबीन की थी और अधिकारियों के बयान लिए थे. इसी क्रम में पांडेय के नेतृत्व में पांच सदस्यीय विजिलेंस टीम पुनः 24 से 27 जुलाई तक बिलासपुर में थी. इस बार उनकी जांच के दायरे में एसएंडटी और कार्मिक विभाग भी शामिल था.

विजिलेंस ने विद्युत, एसएंडटी, कार्मिक से पूछे सवाल

प्राप्त जानकारी के अनुसार विजिलेंस टीम ने इस बार विद्युत् विभाग से पूछा कि उसके द्वारा जो सामान महाप्रबंधक के बंगले में दिया गया, उसका प्राधिकार क्या था? जीएम के बंगले का विद्युत् लोड कितना है? स्ट्रीटलाइट कनेक्शन कैसे दिया गया है? बताते हैं कि विद्युत् विभाग इन सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया. विजिलेंस टीम ने विद्युत् विभाग से सभी संबंधित खरीदी आदेश, चालान, लेजर आदि जप्त कर लिया है. पता चला है कि एसएंडटी विभाग से पूछा गया कि 90 इंच वाले बड़े-बड़े 34 टीवी, जो हाल में ही खरीदे गए थे, वह कहां-कहां लगाए गए हैं? इसका कोई उचित जवाब संबंधित अधिकारी नहीं दे पाए और सिर्फ बगलें झांकते रहे.

कार्मिक विभाग से सवाल किया गया कि उसे अधिकारियों के वेतन से 200-300 रुपये प्रतिमाह बिजली बिल काटने का प्राधिकार कहां से मिला और बकाया राशि क्यों नहीं काटी गई? बताते हैं कि कार्मिक अधिकारी न तो प्राधिकार बता पाए और न ही उक्त सवाल का कोई संतोषजनक जवाब दे पाए. सूत्रों का यह भी कहना है कि विजिलेंस टीम ने जीएम बंगले की वीडियोग्राफी भी की और उसे दिखाकर कई सवाल किए, जिसका जवाब अधिकारी नहीं दे सके. स्टोर्स के संबंधित अधिकारियों से पूछा गया कि आखिर एक-दो पार्टियों से ही सभी खरीद करने का क्या औचित्य था और प्रत्येक बिल पर ‘फॉर जीएम रेजिडेंशियल ऑफिस’ लिखने की क्या आवस्यकता थी?

सूत्रों ने बताया कि हर बात पर सभी संबंधित आरोपी अधिकारियों का यही कहना था कि महाप्रबंधक के घरेलू ऑफिस के लिए यह सब किया गया. इस पर विजिलेंस टीम का उनसे सवाल था कि जीएम बंगले का कौन सा एरिया आफिस और कौन सा आवासीय है, इस सवाल पर सबकी बोलती बंद हो गई. बताते हैं कि विजिलेंस टीम ने इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया है कि नाप-जोख कर बताएं कि जीएम बंगले का ऑफिस और आवासीय एरिया कहां और कितना है?

उल्लेखनीय है कि लगभग सभी जोनल जीएम और डीआरएम के लिए टाइप-5 बंगले या आवास निर्धारित हैं. सरकारी आंकड़े के अनुसार इन बंगलों का कुल एरिया 1528 वर्ग फुट होता है. लेकिन बिलासपुर में जीएम के बंगले में सिर्फ ऑफिस एरिया 657 और डीआरएम के बंगले में 888 वर्ग फुट दिखाया गया है. जबकि पूरी भारतीय रेल के अन्य लगभग सभी जीएम/डीआरएम के बंगलों में उनके घरेलू ऑफिस का एरिया 200 से 300 वर्ग फिट का ही होता है. जितना बड़ा घरेलू कार्यालय बिलासपुर के जीएम और डीआरएम का दर्शाया जा रहा है, उतना बड़ा तो मुख्यालय और मंडल स्थित उनका ऑफिसियल कार्यालय भी नहीं है, जहां तमाम कर्मचारी भी होते हैं. जाहिर है कि बंगलों के कार्यालयों को इतना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के पीछे भी भारी भ्रष्टाचार छिपा हुआ है, जहां अधिकृत रूप से एक भी कर्मचारी नियुक्त नहीं होता है.

सूत्रों ने ‘रेल समाचार’ को यह भी बताया कि कुछ मंडल अधिकारियों ने दबी जबान में विजिलेंस टीम से यह जानने की भी कोशिश की कि यह शिकायत कैसे और किसने की है, इस पर टीम के एक सदस्य ने उनसे कहा कि सबसे पहले तो वह अपनी सीमा का उल्लंघन न करें. तत्पश्चात यही कह दिया कि अपने सुपरवाइजरों के सामने कोई बात लीक न करें, क्योंकि उन्हीं से यह स्थिति उत्पन्न हुई है.

सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड से विजिलेंस टीम के आने की भनक स्थानीय मीडिया को लगते ही उनके रिपोर्टरों ने मौके पर पहुंचकर सारी जानकारी हासिल कर ली थी, लेकिन जीएम के कहने पर मुख्यालय में बैठे कुछ अधिकारियों ने संबंधित पत्रकारों के संपादकों या मालिकों पर दबाव बनाकर वास्तविक खबर प्रकाशित होने से रोक दी और औपचारिकतावश उन्हें सिर्फ यही प्रकाशित करने को कहा कि विजिलेंस टीम का यह एक रूटीन दौरा था. हालांकि ‘रेल समाचार’ द्वारा इस संबंध में दरयाफ्त किए जाने पर संबंधित अधिकारियों ने इस बात से इंकार किया है. जबकि विजिलेंस टीम की छानबीन, पूछताछ और जांच कार्रवाई से जाहिर है कि उसका यह दौरा रूटीन किस्म का कतई नहीं था और न ही विजिलेंस का ऐसा कोई रूटीन दौरा होता है, जहां चार-चार दिन अथवा हप्ते भर तक विजिलेंस टीम अपना डेरा डाले रहे, बल्कि विजिलेंस का दौरा हमेशा शिकायतों पर आधारित और पूर्व नियोजित होता है.

चूंकि यह मामला अब तक बहुत आगे बढ़ चुका है और इस शिकायत पर कई बड़े अधिकारी नप सकते हैं. अतः शिकायतकर्ता को इस बात की आशंका है कि मामले को दबाया जा सकता है. उसका कहना है कि इस मामले में यदि किसी तरह की लीपा-पोती करने कि कोशिश की गई, तो इसे और गंभीरता के साथ पीएमओ के स्तर पर उठाया जाएगा, क्योंकि इस मामले में हुए भारी भ्रष्टाचार के सारे कागजात और पुख्ता प्रमाण शीशे की तरह बिल्कुल साफ हैं. शिकायतकर्ता का यह भी कहना है कि उसे बखूबी मालूम है कि इस मामले को दबाने और खत्म करने की पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं. तथापि यदि परिणाम सही और जल्दी सामने नहीं आता है, तो विजिलेंस के खिलाफ भी शिकायत की जाएगी. वैसे भी इस मामले में विजिलेंस की पूर्व जांच के बाद जीएम को मंत्री ने शिफ्टिंग से बचा लिया था, परंतु अब मंत्री खुद इस विवाद के दायरे में आ सकता है.

लेखक रेलवे समाचार के संपादक है. 

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