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साक्षात्कार

रेलवे में ठसक के साथ नौकरी और सम्मान के साथ रिटायरमेंट लेना हो तो जानिये ‘पात्रो मंत्र’ 

रेलवे में ठसक के साथ नौकरी और सम्मान के साथ रिटायरमेंट लेना हो तो जानिये 'पात्रो मंत्र' 
रिटायरमेंट के बाद भी व्यस्त प्रकाश चंद्र पात्रो

यदि आप रेलवे के कर्मचारी है और ठसक के साथ नौकरी पूरा करते हुए सम्मान के साथ सेवा से अवकाश ग्रहण करना चाहते हैं तो यह “पात्रो मंत्र” आपके लिए बहुत प्रभावी साबित हो सकता है. रेलवे में 37 साल की सेवा से मिले अनुभव से निकला यह मंत्र वकई न सिर्फ नौकरी बल्कि जीवन का भी यर्थात सिखाता है. तो आइये रेलवे के क्षेत्र में तेजी से उभरते न्यूज पोर्टल रेलहंट काॅम https://www.railhunt.com/ के सौजन्य से मिलिए एक ऐसे शख्स से जिन्होंने निष्काम कर्मचारी की भांति रेलवे में करीब चार दशक तक सेवा दी और सिर्फ अपने कर्तव्य बोध और प्रतिबद्धता के बूते खुद को अपने दायित्व का पर्याय साबित करके दिखाया.

रेलवे में ठसक के साथ नौकरी और सम्मान के साथ रिटायरमेंट लेना हो तो जानिये 'पात्रो मंत्र' 

प्रकाश चंद्र पात्रा ऑन ड्यूटी

ये सज्जन है आदित्यपुर के सेवानिवृत्त CYM प्रकाश चंद्र पात्रो, जो अपनी ईमानदार और निष्कलंक सेवा की बदौलत चक्रधरपुर रेलमंडल समेत पूरे दक्षिण पूर्व रेलवे में अपने सहयोगियों के बीच विभाग के नवरत्न के रूप में आदर व चर्चा पाते रहे. रेलहंट संवाददाता सुगम कुमार सिंह ने इनके साथ लंबी बातचीत में यह जानने का प्रयास किया कि उन्होंने अपने सामाजिक व पारिवारिक जीवन के साथ खूबसुरत संतुलन रखते हुए रेलवे की सेवा किस तरह से की जिससे वे आदर्श उदाहरण के रूप में सबके सामने हैं

प्रस्तुत है इस लंबे इंटरव्यू का संपादित अंश 

प्रश्न : अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में कुछ बताएं

उत्तर : मेरी शिक्षा ओडिशा के बरहमपुर से हुई. हिस्ट्री ऑनर्स से ग्रेजुएशन कर LAW किया. तीन साल प्रैक्टिस भी की. अगस्त 1 1984 में स्टेशन मास्टर का जॉब लगा और पहली पोस्टिंग मध्यप्रदेश के भिलाई स्टेशन पर हुई. 1990 तक स्टेशन मास्टर के रूप में कोलकाता सर्विस कमीशन के अंतर्गत काम किया.  1990 में भुवनेश्वर सर्विस कमीशन से ट्रैफिक अप्रेंटिस में चयन हुआ.  दो साल की ट्रेनिंग के बाद यार्ड मास्टर के रूप में 1992 में पहली पोस्टिंग चक्रधरपुर रेलमंडल के बंडामुंडा स्टेशन पर हुई. 1992 से 1997 तक यहां रहा. डिप्टी चीफ यार्ड मास्टर में प्रमोशन के साथ ट्रांसफर टाटानगर हाे गया. यहां 18 सितंबर 1997 को इंचार्ज बना. चार माह में ही ट्रांसफर आदित्यपुर कर दिया गया. यहां पूर्व इंचार्ज के अंडर में एक साल की ट्रेनिंग ली. इसके बाद चीफ यार्ड मास्टर की ड्यूटी 2003 तक की. 2003 में प्रमोशन कर परमानेंट चीफ मास्टर बना दिया गया. 2003 से 31 मई 2021 तक आदित्यपुर में चीफ यार्ड मास्टर, स्टेशन मैनेजर, टिस्को सुपरवाइजर यानी तीन दायित्व एक साथ निभाता रहा.

प्रश्न : जीवन में प्राप्त पुरस्कारों के बारे में बताएं ?

उत्तर : एक रेलवे बोर्ड अवार्ड, चार जीएम अवार्ड, दो सीईओ अवार्ड, एक सीएसओ अवार्ड और पांच बार सीआरएम अवार्ड मिला. 2010 में मुझे टिस्को के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. मेरी इच्छा थी कि आदित्यपुर स्टेशन चक्रधरपुर मंडल का एक प्रतिष्ठित स्टेशन के रूप में विकसित हो. 2003 से मेरे रिटायरमेंट तक रेलवे अधिकारी, कर्मचारी व आसपास के लोगों के साथ बेहतर समन्वय रहा. सबका सहयोग मिला.

प्रश्न : आपके किस कार्य से समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा ?

उत्तर : मैंने जहां भी ड्यूटी ज्वाइन की वहां सबसे पहला कार्य जो मैंने किया वह झंडोत्तोलन है. एक चबूतरे का निर्माण और झंडा फहराना ही मेरा पहला काम हुआ करता था. भावनात्मक के साथ सामाजिक व धार्मिक भाव होने के कारण छोटी मंदिरों का निर्माण भी करवाया. आदित्यपुर स्टेशन के बगल में सहयोगियों के साथ मंदिर निर्माण करवाया वह जगह शराबियों और नशेड़िओं का अड्डा हुआ करती थी. यह सकारात्मक बदलाव रहा.

प्रश्न : पारिवारिक परिदृश्य के बारे में कुछ बताएं ?

उत्तर : मैं एक संयुक्त परिवार में रहता हूं. मेरे पांच भाई हैं और पांचों भाई का परिवार एक घर में ही रहता है. पिता का देहांत कोविड काल मे हुआ और माता का आर्शीवाद सभी को मिल रहा है. पत्नी गृहणी है. परिवार के एक बेटा और एक बेटी है. बेटी एक बायोटेक कंपनी में बैंगलोर में काम करती है वही बेटा इंफोसिस कंपनी में है.

प्रश्न : व्यस्त जीवन शैली के बीच परिवार से तालमेल कैसे बैठाया आपने ? 

उत्तर : मेरे परिवार के सभी सदस्य आरएसएस के सिद्धांत पर समर्पित हैं. सभी का मानना है कि हर काम में देशभक्ति की भावना होनी चाहिए.  मेरे व्यस्त दिनचर्या को परिवार ने नजदीक से देखा और पूरा सपोर्ट किया. इस तरह मैं सही तरीके से काम कर सका. मुझे पारिवारिक कामों में पूरी तरह छूट दी गयी थी. उनका कहना था कि कल लोग ना कहें कि एक पात्रो था जो ये काम नहीं कर सका. आस-पड़ोस के लोगों ने भी सहायता की. आरएसएस की विचारधारा ने मेरे पूरे परिवार को प्रभावित किया है.

प्रश्न : आप के कार्यकाल में कोई ऐसी घटना जो आपके लिए यादगार बनी हो ?

उत्तर : 5 ,6 साल पहले की बात है. साल तो याद नहीं पर तिथि अष्टमी की रात थी. एक पैसेंजर ट्रेन आदित्यपुर से खुलकर खरकाई ब्रिज पर चेन पुलिंग के कारण खड़ी हो गयी. पैसेंजर आतंकित हाे गये, चीख-पुकार मच गयी. 25 मिनट बाद इसकी खबर मिली. जिस कोच में चेन पुलिंग हुई है वह पुल के बीच में था और वहां जाना कठिन था. मैं अपने सहकर्मी के साथ पहुंचा तब 35 मिनट का समय हो चुका था. मैंन शर्ट-पैंट उतार दी और हाफ पैंट पहनकर अप ब्रिज से सीढ़ी की मदद से डाउन ब्रिज तक पहुंचा और 5 बोगियों के नीचे से गुजर कर उस बोगी तक पहुंचा जिसमें चेन पुलिंग की गई थी. मैंने प्रेशर अप किया और गाड़ी आगे बढ़ाने को कहा. ड्राइवर ने गाड़ी बढ़ाई और पुल को पार कर दिया. पूरे शरीर में गंदगी लग गई थी. मैंने जान की बाजी लगायी लेकिन यह बहादुरी नहीं, मैं इसे देशभक्ति कहूंगा.

प्रश्न : इस घटना के वक्त आपकी उम्र क्या रही होगी ?

उत्तर : लगभग 57 साल

प्रश्न : किसी ऐसे टास्क जो कठिन था पर आपकी टीम ने सफलतापूर्वक पूरा किया  ?

उत्तर : आदित्यपुर स्टेशन यार्ड में 21 फैंस शेप पॉइंट चेंज करने का आदेश हमें आया. मैंने अपने सीनियर से पूछा कि सर इसे कब करना है , सीनियर ने कहा पात्रो तुम एक फैंस शेप पॉइंट चेंज करो और क्या गड़बड़ी आई मुझे बताओ. मैंने पूछा सर 1 पॉइंट चेंज करना है या 21.  सर ने कहा करना तो 21 ही है और अगले 3 महीनों में यह कार्य पूरा भी करना है. मैंने यह कार्य अपनी टीम के साथ मिलकर डेढ़ महीने में ही कर दिया. कोई ट्रैफिक में रुकावट नहीं आयी. इसके लिए मुझे डीआरएम अवार्ड मिला.

प्रश्न : चीफ यार्ड मास्टर के रूप में आपका विकल्प नहीं मिला, इस पर आपकी प्रतिक्रिया ?

उत्तर : प्रतिक्रिया नहीं मुझे खेद है इस बात का. 25 साल के अनुभव को मैंने अपने जूनियरों में बांटा परंतु लोग यह नहीं सीख पाए कि मैं काम देश के लिए करता हूं, देशवासियों के लिए करता हूं ना कि पेमेंट के लिए. मेरा सिर्फ यही मानना था कि मुझे काम करना है फल की चिंता नहीं करनी है. शायद यही कारण है कि मेरे जूनियर मुझ सा काम नहीं कर पा रहे हैं.

प्रश्न : रेलवे के काम के तरीकों में बदलावों को आप कैसे देखते हैं ?

उत्तर : काफी बदलाव हुआ है जब मैंने जॉइन किया था और आज रेलवे बहुत बदल गया है. आर्मी के बाद मेरे ख्याल से रेलवे ही देश में एक ऐसी संस्था है जो आर्थिक गतिविधियों की मेरुदंड है. आर्मी के बाद देश प्रेम मुझे रेलवे में देखने को मिलता है. यह और भी बेहतर हो सकता है जब सभी लोग राष्ट्रप्रेम की भावना के साथ काम करें.  1984 से 2021 तक जितना डेवलपमेंट हुआ यह कई गुना बढ़ सकता था. फिर भी यह बदलाव सकारात्मक ही है क्योंकि अच्छे लोगों की कमी रेलवे में नहीं है.

प्रश्न : आपकी पूछ होने पर सहकर्मी उपेक्षित महसूस करते होंगे, उनसे कैसे समन्वय बनाया ?

उत्तर : यह एक ऐसी बात है जिसका उत्तर काफी आसान है. मैं जब जान जाता था कि किसी सहकर्मी को मुझसे नाराजगी है तो मैं उससे पारिवारिक संबंध स्थापित करने की कोशिश करता था. सुख-दुख में उनके यहां चला जाया करता और ऐसे मौकों की तलाश में रहता जब मुझे पता चले कि उसे किसी मदद की आवश्यकता है. मैं तुरंत उसकी सहायता कर देता था, इस तरीके से मैंने समन्वय और सहयोग प्राप्त किया.

प्रश्न : आपकी वर्किंग जीवन में ऐसा कोई अफसर जिससे यादगार सहयोग मिला ?

उत्तर : सभी अफसरों से.  जिन अफसरों से शुरुआत में कम सहयोग मिलता था वह भी मेरे काम को देख कर मुझे पूरा सहयोग देने लगते थे .

प्रश्न : राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत होकर काम करने का सकारात्मक उदाहरण अगर आप बताना चाहें ?

उत्तर : जब मैंने 1997 में आदित्यपुर में ज्वाइन किया तो केवल 7 कॉमर्शियल ट्रेनें चला करती थी. जब मैंने और हमारी टीम ने इसे 9 किया तो मुझे अवार्ड दिया गया. आज मेरे रिटायरमेंट के समय 32 कॉमर्शियल ट्रेनें आदित्यपुर से सफलतापूर्वक चल रही है. लाइन वही है , संसाधन वही हैं, यह सकारात्मक उदाहरण ही तो है. काम के प्रति डेडीकेशन से यह परिणाम प्राप्त हुआ.

प्रश्न : एक ऐसे व्यक्ति के लिए रिटायरमेंट कैसा रहा जो लगाता व्यस्त रहा हो ?

उत्तर : अभी मैं आरएसएस के एक विद्यालय सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में कार्यरत हूं और अपने भाइयों का बिजनेस भी देख रहा हूं. अभी भी मैं उतना ही व्यस्त हूं जितना पहले हुआ करता था.

प्रश्न : मनोरंजन के लिए आप क्या करते हैं ?

उत्तर : मनोरंजन के लिए मैं बच्चों के साथ खेलता हूं , संगीत सुनता हूं और धार्मिक कामों में लगा रहता हूं. सुबह 6:00 बजे योग के लिए भी जाता हूं. लोक संगीत में बहुत रुचि है.

प्रश्न : इतने लंबे कार्यकाल में आरोप लगना एक सामान्य सी बात है इस पर आप क्या कहेंगे ?

उत्तर : मुझे इसका कोई खेद नहीं है. दाग को लोग तो याद रखेंगे पर अच्छा काम को उससे ज्यादा याद रखेंगे. भगवान राम, माता सीता, श्री कृष्ण पर भी आरोप लगते रहे यह एक सामान्य सी बात है पर मुझे अपना काम करना था वह मैं करता रहा.

प्रश्न : कोई संदेश अपने सहकर्मियों ,रेल कर्मियों और आम जनों के लिए ?

उत्तर : यह बहुत बड़ी पुण्य की बात है कि हमारा जन्म भारत में हुआ है. पूरे मन से हमें राष्ट्र के लिए कार्य करते रहना चाहिए. धन्यवाद.

प्रेमचंद पात्राे : संक्षिप्त सफर  

  • रेलवे में 37 साल की सेवा में 18 साल आदित्यपुर सीवाईएम के रूप में गुजारा, सबके रहे चहेते, निंदक को बनाया अपना  
  • सेवानिवृत्ति के बाद ओडिशा के बरहमपुर में परिवार के साथ रह रहे प्रकाश चंद्र पात्रो अब भी स्वयं को 18 घंटे व्यस्त रखते हैं 
  • आदित्यपुर में बतौर चीफ यार्ड मास्टर पीसी पात्रो ने स्टेशन मैनेजर और टिस्को सुपरवाइजर के कार्य भी निर्वाह किया 
रेलवे में ठसक के साथ नौकरी और सम्मान के साथ रिटायरमेंट लेना हो तो जानिये 'पात्रो मंत्र' 

प्रकाश चंद्र पात्रो

चक्रधरपुर रेलमंडल या यूं कहें दक्षिण पूर्व रेलवे में प्रकाश चंद्र पात्रो पहचान के मोहताज नहीं रहे हैं. रेलवे की सेवा में 37 साल गुजारने वाले पीसी पात्रो ने 18 वर्षों की लंबी पारी चक्रधरपुर रेलमंडल के आदित्यपुर स्टेशन पर CYM (चीफ यार्ड मास्टर ) के रूप में गुजारी. अपने विशेष कार्य प्रणाली, सहयोगात्मक भाव और हंसमुख स्वभाव से सबको अपना कायम बना लेने वाले पीसी पात्रो चक्रधरपुर रेलमंडल के उन नवरत्नों में एक थे जिनका विकल्प रेल अधिकारियों को उनके सेवाकाल में नहीं मिला.

2003 में CYM का प्रभार संभालने वाले पीसी पात्रो ने 2021 के मई माह में यही से सेवानिवृत्ति ली और अपने मूल स्थान बरहमपुर में जाकर बस गये. पात्रो ने पूजा-पाठ और सामाजिक गतिविधियों को अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बना लिया है. तीन दशक से अधिक समय तक रेलवे की सेवा में रहे प्रकाश चंद पात्रो उसे परिवार मानते हैं. उन्हें सेवाकाल में कई पुरस्कार भी मिले. कई बार कठिनाईयों और विषम परिस्थिति का भी सामना करना पड़ा लेकिन अपनी मेहनत और कुशल व्यक्तित्व की बदौलत उन्होंने उसे पार किया और अपनी नयी पहचान स्थापित की.

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