- डीओपीटी (पीएमओ) और बतौर वित्तमंत्री भी पीयूष गोयल ने दी संस्तुति
- स्टोर्स और एसएंडटी विभाग के अधिकारियों का विरोध, रेलवे बोर्ड नतमस्तक
- डीजी की पोस्टें स्थापित होने के बाद बढ़ा स्टोर्स/एसएंडटी विभाग में भ्रष्टाचार
सुरेश त्रिपाठी
ऐसा लगता है कि पिछले कुछ समय से रेल मंत्रालय उर्फ रेलवे बोर्ड तुगलकी फरमानों का शिकार हो रहा है. बहुत सोच-समझकर नीतियां बनाने और आदेश जारी करने के बजाय बिना सोचे-समझे सिर्फ ‘परीक्षण’ आधार पर नीतियां और आदेश जारी किए जा रहे हैं. फिर चाहे वह जूनियर एवं सीनियर मंडल अधिकारियों के कार्य और क्षेत्राधिकार बदलने के डीआरएम्स को दिए गए अधिकार हों अथवा मंडल आरपीएफ अधिकारियों की एसीआर नहीं लिखने के डीआरएम्स से छीने गए अधिकार का मामला हो, ऐसे कई मामलों में रेलवे बोर्ड द्वारा तुगलकी आदेश जारी किए गए हैं, जिनका कोई औचित्य कई बार जोनल जीएम और डीआरएम को समझ में नहीं आता है.
अब एक ऐसा ही मामला मेंबर स्टाफ की ‘इन कैडर पोस्ट’ का भी संज्ञान में आया है. विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रेल मंत्रालय ने मेंबर स्टाफ की ‘एक्स-कैडर पोस्ट’ को ‘इन कैडर पोस्ट’ बनाए जाने यानि इंडियन रेलवे पर्सनल सर्विस (आईआरपीएस) के अधिकारियों को यह पोस्ट दिए जाने का एक प्रस्ताव बनाकर और उस पर रेलमंत्री पीयूष गोयल की संस्तुति लेने के बाद हाल ही में डीओपीटी (पीएमओ) को भेजा था. सूत्रों के अनुसार डीओपीटी ने इस प्रस्ताव को अपनी मंजूरी देकर कैबिनेट सेक्रेटरी को भेज दिया था. जिस पर बताते हैं कि कैबिनेट सेक्रेटरी ने भी अपनी संस्तुति दे दी है. इसके बाद पीयूष गोयल ने बतौर वित्तमंत्री भी इस प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे चुके हैं.
सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट सेक्रेटरी ने उक्त प्रस्ताव को इस आधार पर अपनी संस्तुति दी है कि इससे रेलवे बोर्ड में सिविल और इंजीनियरिंग सर्विसेज के मेंबर्स की संख्या बराबर हो जाएगी और आईआरपीएस सर्विस के अधिकारियों में व्याप्त असंतोष को खत्म किया जा सकेगा. सूत्रों का कहना है कि 1980 बैच के अन्य केंद्रीय सेवाओं के अधिकारी जहां आज कैबिनेट सेक्रेटरी स्तर पर पहुंच चुके हैं, वहीँ इसी साल भारतीय रेल में लागू हुई आईआरपीएस सर्विस के अधिकारी मात्र एडीशनल सेक्रेटरी स्तर पर ही रिटायर हो रहे हैं. इससे उनमें भारी असंतोष व्याप्त है.
सूत्रों ने बताया कि आईआरपीएस को मेंबर स्टाफ की पोस्ट दिए जाने का विरोध स्टोर्स और सिग्नल एवं दूरसंचार (एसएंडटी) विभाग के अधिकारियों ने यह कहकर किया है कि उनकी संख्या क्रमशः 800 और 1000 है, जब उन्हें अब तक ‘प्रॉपर मेंबर’ की पोस्ट नहीं दी गई है, तब आईआरपीएस को कैसे दी जा सकती है? स्टोर्स और एसएंडटी अधिकारियों के इस कुतर्क पर जानकारों का कहना है कि इन दोनों विभागों के अधिकारियों द्वारा यह मूर्खतापूर्ण कुतर्क दिया जा रहा है. उनका कहना है कि किसी के हक का विरोध करके अपना हक अर्जित नहीं किया जा सकता, बल्कि उनके साथ अपना हक मांगा जा सकता है, यदि वह वाजिब हो तो.
सूत्रों का यह भी कहना है कि आईआरपीएस अधिकारी मेंबर स्टाफ की पोस्ट पाने के लिए अपनी डीजी/पर्सनल और एडीशनल मेंबर स्टाफ की दोनों पोस्टें सरेंडर करने को तैयार हैं. जानकारों का कहना है कि स्टोर्स और एसएंडटी को डीजी की पोस्टें मिल चुकी हैं. यदि उन्हें मेंबर की पोस्ट चाहिए थी, तो उसी समय इसका विरोध जाताया जाना चाहिए था. उनका यह भी कहना है कि कार्मिक विभाग का कार्य विशेष किस्म का है, जिसके लिए आईआरपीएस अधिकारी ही विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं. बाकी अन्य कैडर के अधिकारी मेंबर स्टाफ की पोस्ट के साथ इसलिए पूरा न्याय नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उनका प्रशिक्षण कार्मिक संबंधी विषय के अनुरूप नहीं होता है. इसीलिए कई बार वह अपने कैडर विशेष के लिए पक्षपाती भी होते रहे हैं.
सूत्रों का कहना है कि डीओपीटी और कैबिनेट सेक्रेटरी की अनुशंसा के बाद बतौर वित्तमंत्री भी पीयूष गोयल उक्त प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे चुके हैं. तथापि रेलवे बोर्ड स्टोर्स एवं एसएंडटी अधिकारियों के विरोध के मद्देनजर हर स्तर से उक्त मंजूरशुदा प्रस्ताव को पुनः कचरे के डिब्बे में डालकर मेंबर स्टाफ की पोस्ट को एक्स-कैडर ही बनाए रखने पर पुनर्विचार कर रहा है. जानकारों का कहना है कि इससे अधिकारियों के बीच अंतर्विभागीय टसल और ज्यादा असंतोष पैदा हो सकता है, जिससे रेलवे बोर्ड सहित सभी जोनल रेलों का अंतर्विभागीय कामकाज प्रभावित होगा.
उल्लेखनीय है कि जब मेंबर इलेक्ट्रिकल (वर्तमान में मेंबर ट्रैक्शन) की पोस्ट को ‘इन कैडर पोस्ट’ बनाया गया था, तब स्टोर्स और एसएंडटी विभाग के अधिकारियों ने कोई विरोध नहीं जताया था, जबकि उस समय इलेक्ट्रिकल ऑफिसर्स की भी संख्या उनसे कम थी. जानकारों का कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि तब स्टोर्स और एसएंडटी के अधिकारी मेंबर मैकेनिकल और मेंबर इलेक्ट्रिकल बनने की जुगाड़ में रहते थे और कुछ बने भी थे. उनका कहना है कि जरूरत और परिस्थितियों को देखते हुए मेंबर स्टाफ की पोस्ट आईआरपीएस को दिए जाने का इन दोनों विभागों के अधिकारियों का विरोध करना कतई उचित नहीं है.
इकासके अलावा उनका यह भी कहना है कि जब से डीजी/स्टोर्स और डीजी/एसएंडटी की पोस्ट स्थापित हुई है, तब से इन दोनों विभागों के अधिकारी न सिर्फ निरंकुश हुए हैं, बल्कि भ्रष्टाचार और चरित्रपतन में आकंठ डूब चुके हैं. लगभग यही स्थिति स्टोर्स विभाग की भी है, जहां ‘स्टोरकीपर’ द्वारा डीजी/स्टोर्स की पोस्ट पर बैठाए गए अधिकारी की विश्वसनीयता और ईमानदारी शुरू से ही संदिग्ध रही है. यहां भी कुछ बड़े सप्लायर्स को खूब ओब्लाइज करके मन-मुताबिक कमीशन कमाया गया है.
जानकारों की राय में यदि स्टोर्स एवं एसएंडटी विभाग के भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन को रोकना है, तो डीजी/स्टोर्स तथा डीजी/एसएंडटी की दोनों पोस्टें यूजर्स डिपार्टमेंट मेंबर के मातहत लाई जानी चाहिए, क्योंकि यह दोनों डीजी भले ही सीआरबी को रिपोर्ट करते हों, मगर इन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है. उनका कहना है कि इन दोनों विभागों का कामकाज जिस किस्म का है, उसे देखते हुए इन्हें स्वतंत्र नहीं रखा जा सकता है. अतः इन्हें पुनः क्रमशः मेंबर रोलिंग स्टॉक और मेंबर ट्रैक्शन के मातहत लाया जाना चाहिए. इसक अलावा इनके द्वारा किए जाने वाले सभी टेंडर्स की मंजूरी का अधिकार ‘यूजर्स डिपार्टमेंट’ के मेंबर को दिया जाना चाहिए. जानकारों का यह भी कहना है कि जब से यह दोनों पोस्टें स्थापित हुई हैं, तब से लेकर अब तक के इनके संपूर्ण कामकाज का व्यापक परीक्षण भी किया जाना चाहिए. इसके साथ ही इनके कुतर्की विरोध को दरकिनार करते हुए मेंबर स्टाफ की पोस्ट अविलंब आईआरपीएस को सौंपना ही न्यायपूर्ण होगा.
रेलवे समाचार से