- रेलवे की भर्तियां बंद होने पर नौजवानों को उदास नहीं होने बल्कि पॉजिटिव बने रहने की सलाह
- रेलमंत्री पर निशाना- इतना विकास कर दिया कि पैसा ही खत्म हो गया, सैलरी देने की हालत भी नहीं
डॉ अनिल कुमार
अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति और बेबाक टिप्पणी से रेलवे को बार-बार निशाने पर लेने वाले NDTV के पत्रकार रवीश कुमार ने कहा है कि नई भर्तियों पर रोक, विभागों में आउटसोर्सिंग को बढ़ावा देकर रेलवे बेरोजगार पैदा कर रही है. यह वही रेलवे है जो पहले रोजगार पैदा करती थी. रवीश कुमार की इस टिप्पणी के मायने चाहे जो भी हो लेकिन रेलवे की वर्तमान कार्यप्रणाली और रेलमंत्री पीयूष गोयल की कदमताल तो यही बता रही है कि एक के बाद एक इकाईयों को निजी हाथों में सौंपने की बेचैनी ने जो परिस्थितियों उत्पन्न की है वह न तो देश हित में है, न युवाओं के हित में, न ही रेलवे के हित में. आलम यह है कि सामान्य रेलकर्मी भी फेसबुक और ट्वीटर पर योजनाओं के घोड़े दौड़ाने वाले रेलमंत्री पीयूष गोयल को अब गंभीरता से नहीं लेता. सोशल मीडिया में सक्रिय रेलमंत्री लगातार आलोचनाओं के शिकार हो रहे है. हम भी यहां रवीश कुमार की टिप्पणी को ज्यों की त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं.
रेलवे ने पिछली भर्ती के लोगों को ही पूरी तरह ज्वाइन नहीं कराया है और अब नई भर्तियों पर रोक लगा दी गई है. यही नहीं आउटसोर्सिंग के कारण नौकरियां खत्म की गईं, अब उस आउटसोर्सिंग का स्टाफ़ भी कम किया जाएगा. पहले रेलवे रोजगार पैदा करती थी, अब बेरोजगार पैदा कर रही है. लगे हाथ रवीश जी ने सरकार को भी निशाने पर ले लिया. कहा कि यह मोदी सरकार की लोकप्रियता और साहस ही है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के समय करोड़ों युवाओं को भर्ती के नाम पर दौड़ा दिया और आज तक पास किए हुए सभी छात्रों की ज्वाइनिंग नहीं पूरी हुई. अब बिहार चुनाव आ रहा है. चुनाव के सामने कोई सरकार रेलवे की भर्ती बंद करने का ऐलान नहीं कर सकती लेकिन युवाओं में अपनी लोकप्रियता का कुछ तो भरोसा होगा कि वह बोल कर उनके बीच आ रही है कि रेलवे में नौकरी नहीं देंगे.
कांग्रेस ने रेलवे के निजीकरण का विरोध कर और भर्तियां बंद होने का विरोध कर अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी है. किसी ने उसके इस विरोध को भाव नहीं दिया है. ये सभी नौजवान बिहार चुनाव में बीजेपी को ही वोट देंगे. इस वक्त युवाओं को झटका लगा होगा इसलिए बीजेपी के नेताओं को इनके लिए आवाज़ उठानी चाहिए. कम से कम इन्हें बहलाने फुसलाने के लिए ही सही. काउंसलिंग करें. राष्ट्र की प्रगति के सामने नौकरी कोई चीज़ नहीं है. रवीश का मानना है कि रेलवे के करोड़ों परीक्षार्थी सच्चाई देखें. रेलवे भर्ती की हालत में नहीं है. गोयल जी ने इतना विकास कर दिया कि पैसा ही खत्म हो गया. रेलवे सैलरी देने की हालत में नहीं होगी. कर्मचारियों के भत्ते काटे जा रहे हैं. अभी तक पेंशन में कटौती नहीं है पर भविष्य कौन जानता है? वैसे प्रार्थना कीजिए कि पेंशन की राशि को एडजस्ट करने की ज़रूरत न पड़े. पेंशनभोगी ही आगे आकर पेंशन कटवाएं और रेलवे की मदद करें.
कई लोगों ने कहा कि इस तरह से आरक्षण भी समाप्त हो गया, यह सही है. अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ी जातियां और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को भी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. जब आपने निजीकरण और आउटसोर्सिंग को स्वीकार ही कर लिया तो फिर आपत्ति किस बात की? वरना आरक्षण के तहत जितनी बड़ी आबादी आती है, किसी सरकार की निजीकरण या भर्ती बंद करने की हिम्मत न होती. रेलवे की परीक्षा के लिए देश भर के करोड़ों नौजवान कड़ी मेहनत करते हैं. हमने बिहार चुनाव के दौरान देखा था कि आरा शहर में किस तरह ग्रुप बनाकर लड़के परीक्षा की तैयारी करते हैं. अद्भुत दृश्य था. यूपी में भी गोरखपुर से लेकर गाज़ीपुर के बेल्ट का नौजवान रेलवे की भर्ती परीक्षाओं में लगा रहता है. राजस्थान से भी पिछली बार देखा था कि किस तरह मीणा समाज हजारों अभ्यर्थियों की मदद कर रहा था. अद्भुत दृश्य था. आज करोड़ों लड़के लड़कियां उदास हो गए होंगे. समझता हूं.
अब यह सरकार का फ़ैसला है. जिस तरह से आप कोयला खदानों के निजीकरण को लेकर चुप थे उसी तरह कोई और रेलवे के निजीकरण को लेकर चुप रहेगा. हमारी राजनीति चाहे सत्ता पक्ष की हो या विपक्ष की, निजीकरण को लेकर साफ नहीं बोलती है. बोलती भी होगी तो कोई इन विषयों पर ध्यान नहीं देता. दुख बस इतना है बिहार से लेकर देश के नौजवानों के लिए एक मौका कम हो गया. लेकिन जब पिछली भर्ती पूरी नहीं हुई तो चुनाव के कारण कुछ निकल भी जाए तो क्या फ़र्क़ पड़ता है? अब आप लोग ही रोज़गार को लेकर नए तरीक़े से सोचिए. मुझे मैसेज करने से क्या होगा. ऐसे फैसले हो जाने के बाद बदलते नहीं हैं. सरकार नौकरी नहीं देगी. इस सत्य को जानते हुए आपको ही बदलना होगा. यही कह सकता हूं कि नए अवसरों की तरफ़ देखिए. वैसे वहां भी कुछ नहीं है, लेकिन फिर भी. मैं राजनीति में नहीं हूं, इसलिए आगे का रास्ता उनसे पूछें जिन्हें वोट देते हैं. युवा नेताओं से यही कहूंगा कि नौकरी के मसले को उठाकर भविष्य न बनाएं, इससे दूर रहें. रोजगार राजनीतिक मुद्दा नहीं रहा.
बिहार से एक नौजवान ने पत्र लिखा है. उसकी मायूसी समझ आती है. काश रेलवे भर्ती बंद नहीं करती. हम बिहारियों की English कितनी मजबूत है ये आप भी जानते हैं एसएससी में जा नहीं सकते हैं. आर्मी के लिए age निकल चुकी है. बिहार पुलिस का क्या ही कहना. इसका कट ऑफ 80 से ज्यादा चल जाता है. ITI 2 साल का कोर्स 4 साल से ज्यादा हो गया अभी तक कंप्लीट नहीं हुआ, एग्जाम हमेशा रद्द हो जाता है. प्राइवेट नौकरियां चली गई हैं, कहां जाऊं मैं अब!
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं जो https://khabar.ndtv.com/ से सभार लिये गये हैं.