JABALPUR. रेल मंत्रालय की नौकरी देने की नीति वापस लेने से हजारों उन परिवारों के सामने भरण-पोषण का संकट उत्पन्न हो गया है. ये लोग रेलवे के डिवीजन कार्यालय से लेकर जोनल तक चक्कर लगा रहे हैं लेकिन अब नौकरी के आश्वासन के नाम पर मुआवजा देने की बात कही जा रही है. जमीन देने वालों का कहना है कि रेलवे के पांच लाख के मुआवजे से उनका परिवार कब तक चलेगा ? जब जमीन ली गयी थी तब नौकरी देने की बात थी अब रेलवे अपनी ही बात से मुकर रहा है. इसके लिए नयी नीति को जिम्मेदार बताया जा रहा.
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला निवासी शिवेंद्र सेन ने रेलहंट को बताया कि ललितपुर-सिंगरौली नई रेल लाइन के लिए रीवा से मड़वा तक 17 ग्रावों की जमीन अधिग्रहित की गई है. रेलवे को इस शर्त पर ग्रामीणों ने अपनी जमीन दी थी कि बदले के परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलेगी. न्यायालय अनु विभागीय अधिकारी एवं भू अर्जन अधिकारी छतरपुर जिला छतरपुर (म.प्र.) के राजस्व प्रकरण क्र.01/अ-82/2013-14 30/04/2015 भूमि अधिग्रहण किया गया था.
जिला छतरपुर में निकली ललितपुर खजुराहो रेल लाइन में जमीन देने वालों ने 2016-17 में नौकरी के लिए आवेदन किया. रेलवे डिवीजन भोपाल ने समय समय पर पत्र जारी भी किये, लेकिन अभी तक रेलवे की तरफ से नौकरी नहीं दी गई है. मण्डल रेल प्रबंधक कार्मिक भोपाल कार्यालय भी अब इस मामले में मौन साध चुका है. पूछने पर बताया जाता है कि नौकरी अब 11/11/2019 के नियम के हिसाब से दी जायेगी. शिवेंद्र सेन के अनुसार अधिकांश लोग 2019 के पहले के अनुबंध वाले हैं.
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जमीन अधिग्रहण के बाद हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. हम उसी जमीन पर निर्भर थे. जमीन न होने के कारण हम लोगो को काफी पेरशानी का सामना करना पड रहा है. रेलवे ने 2023 में एक लैटर जारी कर दिया है की अब किसी को भी नौकरी नहीं मिलेगी. ऐसे में हम लोग कहा जायगे ओर हमारा परिवार कैसे चलेगा. नयी योजना में रेलवे द्वारा कहा जा रहा है कि जमीन के बदले भूमि स्वामियों को सिर्फ 5-5 लाख रुपए दिए जाएंगे. रेलवे बोर्ड अब कोई नौकरी नहीं देगा. यह फरमान मनमाना है और रेलवे के पूर्व के अनुबंध के विपरीत है.
शिवेंद्र सेन के अनुसार हमने स्थानीय सांसद से लेकर रेलमंत्री तक से गुहार लगायी लेकिन अब उनकी बात कोई सुनने को तैयार नहीं है. इस मामले के जानकार हमें न्यायालय का सहारा लेने को कह रहे हैं जिसके लिए हम कानूनी पक्ष को समझ रहे है. शिवेंद्र के अनुसार इस मामले में जमीन देने वाले छतरपुर जिले के ही 1000 से अधिक किसान नौकरी की आस में बैठे हैं. रेलवे ने हमारे साथ धोखा किया है और जमीन लेकर अब नौकरी देने के बदले मुआवजा देने की बात हो रही है जो गलत है.