AGRA. आगरा को मिली तीसरी वंदे भारत ट्रेन में लाने गये लाेको पायलटों को कोटा में इंजन में इंट्री ही नहीं दी गयी. रेल प्रशासन इस मामले में मौन है जबकि आगरा लॉबी के चालक इस घटना पर आक्रोशित हैं. चालकों ने अपना विरोध भी उचित फोरम पर दर्ज कराया है. हालांकि आगरा कैंट स्टेशन पर हंगामे के बीच आगरा के चालकों को ड्यटी मिली इसके बाद विवाद शांत हुआ.
आगरा मंडल की पीआरओ प्रशास्ति श्रीवास्तव के अनुसार लोको पायलट को लेकर आपस में कुछ गलतफहमी हो गई थी. इसे तत्काल सुलझा लिया गया है और ट्रेन अपने निर्धारित समय 3 बजे ट्रेन आगरा से उदयपुर के लिए रवाना हुई है. हालांकि लोको पायलटों की ड्यूटी को लेकर उत्पन्न इस विवाद को काफी गंभीर बताया जा रहा है. सवाल यह उठता है कि अगर आगरा के लोको पायलटों को वंदे भारत के लिए कोटा से बुकिंग थी तो कोटा के पायलटों ने उन्हें इंजन में क्यों नहीं चढ़ने दिया ? क्या उन्हें भी कोटा से इस ट्रेन की बुकिंग मिली थी?
बताया जाता है कि वंदे भारत को आगरा मंडल के लोको पायलट को कोटा से लाना था. आगरा के लोको पायलट ब्रज मोहन अपने सहयोगी के साथ कोटा पहुंचे तो उन्हें इंजन में चढ़ने ही नहीं दिया गया. आरोप है कि आगरा के चालकों को जबरन दूसरे केबिन में बैठाया गया. जबकि कोटा मंडल के चालक दल अपने साथ कई लोगों को लेकर आया था. इन लोगों ने आगरा के चालकों से दुर्व्यवहार भी किया. जबकि लोको पायलट ने वंदे भारत ले जाने के लिए जारी प्राधिकार पत्र भी दिखाया.
हालांकि आगरा पहुंचने पर हंगामा हुआ और तब आगरा मंडल के लोको पायलटों को ड्यूटी मिली. इसके बाद विवाद शांत हुआ. अब सवाल यह उठता है कि यह विवाद क्यों उत्पन्न हुआ? जब रेल प्रशासन ने वंदे भारत के लिए लोको पायलट की ड्यूटी तय कर दी थी तब कोटाे के चालक किस अधिकार से इस ट्रेन में ड्यूटी करते हुए आये? उन्हें बुकिंग किस तरह दी गयी?
आखिर रेल प्रशासन के बीच यह मदभेद किन परिस्थतियों में हुआ ? भविष्य के विवाद को रोकने के लिए मंडल रेल प्रशासन कोटा और आगरा को इन सवालों के जबाव जरूर खोजना चाहिए.