- सीनियर डीपीओ के ‘मन की मर्जी’ में उलझने लगा रेलवे, कैट ने मांगी सीनियरटी और प्रोमोशन लिस्ट
- डीआरएम से जीएम तक गुहार लगाने वाला रेलकर्मी मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो पहुंचा अस्पताल
- प्रमोशन लिस्ट जारी होने से पहले ही गुर्ड्स गार्ड के लिए स्वीकार किया आवेदन, 20 को दिया प्रमोशन
चक्रधरपुर. रेलमंडल में अफसरों के मन की मर्जी चल रही है. जो चाहा निर्णय दे दिया और अगर कभी कुछ गलत हो भी गयी तो आफत तो रेलवे सिस्टम पर आनी है उनका क्या? दो से तीन साल में तबादला और मामले को झेलेंगे दूसरे अफसर. रेलमंडल के एक पूर्व रेल अधिकारियों की इसी मानसिकता का शिकार एक रेलकर्मी मानसिक प्रताड़ना झेलता हुआ इन दिनों टाटानगर रेलवे अस्पताल में पड़ा है. यह रेलकर्मी हैं राजेश कुमार झा, जिन्हें एक सीनियर डीपीओ के एक आदेश के बाद गुर्ड्स गार्ड से सीधे डिमोट कर प्वाइंटमैंन ‘बी’ में पहुंचा दिया गया है. पर्दे के पीछे से इसमें अहम भूमिका निभाने वाले उक्त रेल अधिकारी वर्तमान में चक्रधरपुर रेलमंडल में नहीं है लेकिन उनके बिछाये इस जाल में अब दूसरे अधिकारियों की गर्दन फंसती नजर आ रही है.
यह मामला कैट में पहुंच गया और कोर्ट ने चक्रधरपुर के रेल अधिकारियों से प्रदोन्नति सूची के साथ ही सीनियरिटी की लिस्ट तलब की है. हालांकि अब तक रेलवे की ओर से यह लिस्ट कोर्ट को नहीं सौंपी गयी है. रेलहंट को उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार चक्रधरपुर के सीनियर डीपीओ ने राजेश कुमार झा को गुडर्स गार्ड से प्वाइंटमैन बी में सीधे डिमोट करने के लिए जो आधार बनाया है उसके अनुसार प्रारंभिक रूप से उन्होंने प्वाइंटमैन बी से ए में पदोन्नति के बाद तीन साल की निर्धारित सेवा को पूरा नहीं की है. यह गार्ड में आवेदन के लिए आवश्यक शर्त भी थी. रेलवे ने गुड्स गार्ड में राजेश कुमार झा की पदोन्नति को ‘एडमिनिस्ट्रेटिव एरर’ करार दिया है. हालांकि रेलवे के उपलब्ध रिकार्ड के अनुसार इस मानक को पदोन्नति पाने वाले 20 अन्य लोग भी पूरा नहीं करते हैं. फिर सवाल यह उठता है रेल प्रशासन ने उनकी पदोन्नति को किस आधार पर बरकरार रखा है?
रिकार्ड के अनुसार प्वाइंटमैन बी से ए में 235 लोगों के प्रमोशन की लिस्ट 22.12.2015 को जारी की थी. इसके बाद रेलमंडल में गुर्ड्स गार्ड के 301 रिक्त पदों को विभागीय स्तर पर भरने के लिए 30.9.2015 को नोटिफिकेश जारी किया. इसके अनुसार आवेदन करने की अंतिम तिथि 6.11.2015 थी. रेलवे रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि गुर्ड्स गार्ड की बहाली के लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि 6.11.2015 थी जबकि प्वाइंटमैन बी से ए में प्रमोशन की लिस्ट उसके बाद 22.12.2015 को जारी की गयी. इससे साफ है गुर्ड्स गार्ड में चयनित सभी 20 लोगों ने प्रमोशन लिस्ट जारी होने से पहले ही आवेदन कर दिया था और रेल प्रशासन ने उसे स्वीकार भी कर लिया, जबकि यह मानक के विपरीत था. किसी ने तीन साल की आवश्यक सेवा अवधि की शर्त को पूरा नहीं किया है.
रेलवे रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि गुर्ड्स गार्ड की बहाली के लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि 6.11.2015 थी जबकि प्वाइंटमैन बी से ए में प्रमोशन की लिस्ट उसके बाद 22.12.2015 को जारी की गयी. इससे साफ है गुर्ड्स गार्ड में चयनित सभी 20 लोगों ने प्रमोशन लिस्ट जारी होने से पहले ही आवेदन कर दिया था और रेल प्रशासन ने उसे स्वीकार भी कर लिया, जबकि यह मानक के विपरीत था.
इस तथ्य से साफ है कि गुर्ड्स गार्ड में चयनित सभी 20 लोगों ने विभागीय कोटे से हुई बहाली में निर्धारित तीन साल की अर्हता को पूरा नहीं किया है. फिर इन सभी के चयन को किस तरह योग्य ठहराते हुए पदोन्नति कमेटी ने सूची को हरी झंडी दी और डीआरएम ने किस विशेषाधिकार से इस सूची को अनुमोदित कर दिया. अगर सब कुछ रेलवे अधिकारियों की जानकारी में हुआ तो एक मात्र आवेदक को निशाने पर लिये जाने का कोई और कारण तो नहीं है? कहीं यह कारण अधिकारियों की इच्छा पूर्ति से जुड़ा मामला तो नहीं? अथवा यह भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है? यह जांच करना रेलवे प्रशासन का काम है लेकिन इस मामले में पीड़ित एक साल से जीएम से डीआरएम तक गुहार लगा चुका है लेकिन उसके आवेदन पर सुनवाई नहीं हो सकी है.
प्वाइंटमैन ए से गुडर्स गार्ड मेें पदोन्नति पाने वालों की सूची, किसी का तीन साल पूरा नहीं
- जालंधर मुखी
- राकेश कुमार तिवारी
- राजन नायर
- टी जगन्नाथ राव
- पैडी अंजनैलू
- पीके हलधर
- यूके दास
- केपीएस शेखर
- श्रीमती रीता कार
- बी अंबीकेश्वर राव
- विरंची प्रमाणिक
- नरेंद्र महतो
- राजेश कुमार झा
- एस जगदीश राव
- गोपाल रवानी
- चंदन कुमार
- सैयद अकबर
- वाई साई
- सूर्य सिंह हेंब्रम
- एन शिव प्रसाद
अगर प्रोमोशन गलत था तो लिस्ट बनाने वाली कमेटी व स्वीकृति देने वाले अधिकारी बेदाग कैसे हो गये
रेलवे अधिकारियों व यूनियन नेताओं के अनुसार किसी भी श्रेणी में पदोन्नति व प्रमोशन के बीच एक लंबी प्रक्रिया का पालन किया जाता है. इस प्रक्रिया को पूरा कराने के लिए अधिकारियों की कमेटी होती है जो सभी मानकों की जांच के बाद पदोन्नति अथवा प्रमोशन लिस्ट को स्वीकृति देती है. इसके बाद इस लिस्ट को डीआरएम की स्वीकृति मिलती है इसके बाद ही ग्रेड पे के अनुसार प्रमोशन की सूची जारी की जाती है. अब सवाल यह उठता है कि अगर एक लंबी प्रक्रिया के अनुपालन में कहीं चूक हुई तो इसके लिए अकेले उस रेलकर्मी को दोषी ठहराया जाना कहां तक उचित है? सीवीसी की गाइडलाइन के अनुसार ऐसे किसी भी गलती अथवा चूक जो भ्रष्टाचार की ओर ईशारा साबित करती है उसके लिए प्रक्रिया को पूरी करने वाली टीम अथवा अधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय की जानी है. उनके खिलाफ भी विभागीय कार्रवाई होनी है जबकि इस मामले में ऐसा कहीं नहीं किया गया.
235 की लिस्ट में किसी एक का रिकार्ड क्यों खंगाला गया, पूर्वग्रह या भ्रष्टाचार!
पीड़ित रेलकर्मी राजेश कुमार झा ने जीएम को लिखे अपने पत्र में सवाल उठाया है कि रिस्ट्रक्चरिंग में प्वाइंटमैन बी से ए में कुल 235 लोगों को प्रोन्नति दी गयी थी. इसमें गुर्ड्स गार्ड के लिए 20 लोगों का चयन किया गया. सभी के चयन प्रक्रिया में एक ही मानक अपनाया गया था. सेम केस और सेम कैटेगरी में 20 अन्य लोग भी थे जो निर्धारित कैटेरिया को पूरा नहीं कर रहे थे, लेकिन इस नियम का निशाना सिर्फ उन्हें बनाया गया. इसके लिए उनके साथ न्याय किया जाये.