- एसएसई की सीधी भर्ती के समर्थन में आये पी-वे इंजीनियर्स
- पी-वे इंजीनियर्स को ग्रुप‘बी’ राजपत्रित का दर्जा देने की मांग
- रेलवे को अविचारित नीति पर पुनर्विचार करने की अपील
- इंजीनियर्स भवन में एआरपीडब्ल्यूई ने आयोजित किया सेफ्टी सेमिनार
नई दिल्ली. ‘दुर्घटनारहित रेल परिचालन एवं दुर्घटना मुक्त कार्य-संस्कृति की ओर एक कदम’विषयक सेफ्टी सेमिनार का आयोजन एसोसिएशन ऑफ रेलवे पी-वे इंजीनियर्स (एआरपीडब्ल्यूई) के तत्वाधान रविवार को दिल्ली स्थित इंजीनियर्स भवन में किया गया. इस मौके पर सभी वक्ताओं ने रेलवे बोर्ड द्वारा सीनियर सेक्शन इंजीनियर (एसएसई) की सीधी भर्ती पर लगाई गई रोक पर विरोध जताया और का कि ऐसा प्रतीत होता है कि रेलवे को योग्य और शिक्षित इंजीनियर्स की आवश्यकता नहीं रह गई है. इंजीनियरों का कहना था कि रेलवे बोर्ड की गलत नीतियों से अयोग्य एवं अप्रशिक्षित लोग आगे बढ़े जिससे रेलवे और यात्रियों की सुरक्षा-संरक्षा प्रभावित हो रही है. इसका परिणाम ही आये दिन ट्रेन दुर्घटना और डिरेलमेंट के रूप में सामने आ रहा है. पी-वे इंजीनियरों ने रेलवे को आगाह किया कि यदि रेलवे बोर्ड की यही नीति रही तो आने वाले समय में बड़े पैमाने पर रेल संरक्षा प्रभावित हो सकती है.
इस मौके पर एसोसिएशन के अध्यक्ष पीके शर्मा, महासचिव संतोष दुबे, वित्त सचिव दुष्यंत कुमार और संयोजक आरके उत्पल के अलावा दूसरे स्टेशनों से आये बड़ी संख्या में इंजीनियरों ने अपने विचार रखा. वक्ताओं ने कहा कि रेलकर्मियों सहित यात्रियों की सुरक्षा और संरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है. इंजीनियरों का मानना था कि पटरी पर काम करने वाले ट्रैकमैनों की सुरक्षा और संरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए. इस मामले में सभी ने रेल प्रशासन से सहयोग की अपील की और कहा कि पटरी पर चल रहे सभी रख-रखाव के सभी कार्य ब्लाक लेकर ही किए जाये.
इंजीनियरों ने कहा कि वर्तमान में गाड़ियों की गति 60-100 किमी प्रति घंटे से बढ़कर 110-160 किमी प्रति घंटा हो गई है. ऐसे में हाई स्पीड ट्रेनों के आने से पटरी पर काम करना मुश्किल और जोखिम भरा हो गया है. पी-वे इंजीनियर्स रेलवे की रीढ़ हैं, परंतु रेलवे इस कैटेगरी की लगातार उपेक्षा करता रहा है. उनका कहना था कि तकनीकी रूप से कुशल इस श्रेणी के कर्मचारियों को किसी प्रकार का जोखिम अथवा प्रोत्साहन भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है.
सभी वक्ताओं ने एक स्वर से केंद्र सरकार के सीपीडब्ल्यूडी सहित अन्य केंद्रीय विभागों के समान रेलवे के पी-वे इंजीनियर्स को ग्रुप ‘बी’ राजपत्रित दर्जा दिए जाने की मांग की. उनका कहना था कि रेलवे के पी-वे इंजीनियर्स सप्ताह के चौबीसों घंटे और साल के 365 दिन लगातार अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं, उन्हें कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता है. इससे उन्हें अपने पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों का पालन करने का भी समय नहीं मिल पाता है. इससे उनकी संवेदनाओं को क्षति पहुंचती है, जिससे वह अपने परिवार और समाज से अलग-थलग पड़ जाते हैं.