हाँ ! एक वादा था
कुछ वासंतिक रंगों से …
देखूंगी
ताउम्र उन्हें
अपने आँखों में …
हाँ !
उन मचलते
रंगों से
छिड़क से जैसे जाते हैं …
चटख लाल सेमलों
दहकते पलाशों
और
लाल गुलमोहरों
के दरख्तों पर …
वादा था!
ढूंढूंगी
जहाँ रहूँ …
ऐ वसंत!
आते रहना तुम
छिड़क जाना
अपना वह रंग
पतझड़ के बाद
इन बेरंग से होते
दरख्तों में …
एक वादा
तुमने भी तो
किया था न
पतझड़ से …
-अपर्णा विश्वनाथ