नई दिल्ली. संसद भवन में रेलवे संचालित कैंटीन अब बीते दिनों की बात हो जायेगी. रेलवे अब यह कैंटीन नहीं चलाएगा, क्योंकि 15 नवंबर को संसद परिसर की कैंटीन की जिम्मेदारी आईटीडीसी संभाल लेगी. इसके साथ ही लोकतंत्र के इस सबसे बड़े परिसर में आने वालों को भोजन परोसने की 52 साल पुरानी विरासत का भी अंत हो जाएगा. उत्तर रेलवे साल 1968 से संसद की कैंटीन का संचालन कर रही है.
लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी पत्र में उत्तर रेलवे को 15 नवंबर तक अपने संसाधनों को हटाकर कैंटीन की जिम्मेदारी भारतीय पर्यटन विकास निगम के हवाले कर देने का आदेश दिया गया है. आईटीडीसी केंद्र सरकार का ही अंग है जो फाइव स्टार अशोका होटल समूह का संचालन करता है. इस व्यवस्था के खत्म होने के साथ ही उत्तर रेलवे लोकसभा सचिवालय से मिले संसाधनों को आईटीडीसी के हवाले कर देगा. संसद कैंटीन के लिए नया वेंडर तलाशने की प्रक्रिया इसी साल जुलाई में शुरू की गई थी.उस समय लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने इस मुद्दे पर पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल और आईटीडीसी के अधिकारियों के साथ मुलाकात की थी.
अमूमन संसदीय परिसर में केटरिंग पर निर्णय भोजन प्रबंधन पर गठित संयुक्त समिति करती है, लेकिन 17वीं लोकसभा में अभी तक भोजन समिति गठित नहीं की जा सकी है. ऐसे में स्पीकर ने स्वविवेक से कैंटीन में बेहतरीन गुणवत्ता का खाना परोसे जाने और उस पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म करने के बारे में निर्णय लिया है. हर संसदीय सत्र में 5000 से ज्यादा लोगों को कैंटीन में खाना खिलाया जाता है. यहां 48 प्रकार के व्यंजन हैं जिसके लिए 17 करोड़ रुपये की सब्सिडी सालाना दी जाती है जिसमें 12 करोड़ रुपये कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होते हैं.