- कैटरिंग की जांच के नाम पर हर दिन सैकड़ों अधिकारी उठा रहे सुविधा व भत्ता
- रेलवे दर्जनों लोगों की जान से खेलने के लिए क्या पेंट्री ठेकेदार पर प्राथमिकी दर्ज करेगा
- जांच प्रक्रिया से जुड़े सभी अधिकारी व इंस्पेक्टरों पर क्या तत्काल कार्रवाई की जायेगी
नई दिल्ली. नई दिल्ली से भुवनेश्वर जा रही 22824 डाउन राजधानी एक्सप्रेस में रविवार को तीन दर्जन से अधिक यात्री फूड प्वाइजनिंग के शिकार हो गये. यात्रियों का इलाज गोमो, मुरी, टाटा स्टेशन पर किया गया. यात्रियों का कहना था कि रात में उन्होंने जो चिकेन व पनीर खाया था उसकी गुणवत्ता बहुत खराब थी. उनकी शिकायत को पैंट्रीकार के मैनेजर तथा वेटरों ने अनसुना कर दिया. सुबह होते-होते कई लोगों की तबीयत बिगड़ गयी. हालांकि रेलवे की ओर से गोमो, मुरी और टाटानगर स्टेशन पर यात्रियों को राहत पहुंचाने का प्रयास किया गया लेकिन इन सबके बीच यह बात गौण हो गयी कि आखिर इस चूक की जिम्मेदारी कौन लेगा?
दक्षिण पूर्व रेलवे के आईआरसीटीसी जीएम देवाशीष चंद्रा ने पूरे मामले की जांच कराकर कार्रवाई करने की बात कही है लेकिन दिल्ली के आरके एसोसिएट के पेंट्री टेंडर के खिलाफ वह कार्रवाई की दिशा कितनी प्रभावी तरीके से पूरी कर सकेंगे उसका भान उन्हें भी है. लगे हाथ चक्रधरपुर रेलमंडल के सीनियर डीसीएम ने भी घटना पर दुख जताते हुए जांच कराने की बात कही है लेकिन अब तक रेलवे का कोई अधिकारी उस सिस्टम् की बात नहीं कर रहा जिसमें चूक के कारण तीन दर्जन से अधिक यात्रियों की जान पर बन आयी.
रात में चिकेन और पनीर खाने वालों को ही शिकायत हुई है. इससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि खाने की गुणवत्ता में कहीं न कहीं चूक हुई है. ऐसे में जबकि रेलवे का पूरा फोकस कैटरिंग सेवा पर है, यह चूक कैसे हो गयी है यह बात समझ से परे है. सवार यह उठता है कि आखिर खानपान सेवाओं की जांच किस तरह की जा रह है. हर 100 किमी पर रेलवे का एक से दो अधिकारी कैटरिंग की जांच करने आ रहा. एक ट्रेन की जांच आधा दर्जन से अधिक लोग हर दिन कर रहे है बावजूद यह घटना कैसे घट गयी. सवाल यह उठता है कि क्या रेलवे बोर्ड के आदेश के आलोक मे जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति कर भत्ता उठाया जा रहा है. क्या जांच करने वाले अधिकारी को खानपान सेवा की कोई जानकारी है भी नहीं या यूं ही उन्हें जांच के नाम पर ट्रेनों में मनमानी की छूट दे दी गयी है.
राजधानी एक्सप्रेस में फूड प्वाइजनिंग के शिकार लोग भाग्यशाली रहे कि उन्हें जल्द ही मेडिकल सुविधा मिल गयी और कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ. इस तरह सभी 31 यात्री सकुशल अपने घर पहुंच गये. यात्रियों ने बताया कि रात के भोजन की गुणवत्ता बिल्कुल खराब थी. पनीर तथा चीकेन की क्वालिटी बहुत खराब थी. बोगी में चूहा तथा तिलचट्टा विचरण कर रहे है. सफाई नाम की चीज नहीं है. अब देखना होगा कि क्या रेलवे सैकड़ों लोगों की जान से खेलने वाले पेंट्री ठेकेदार पर प्राथमिकी दर्ज करायेगा? क्या रेलवे उन तमाम अधिकारी व इंस्पेक्टरों पर कड़ी कार्रवाई करेगा जो इस ट्रेन में खानपान की सेवा की जांच के लिए अधिकृत किये गये थे? जवाब तो रेलवे को सोचना है लेकिन अगर इसी तरह लापरवाही को नजरअंदाज किया जाता रहा तो न सिर्फ यात्रियों की जान संकट में डाली जायेगी बल्कि रेलवे की बेहतर सेवाओं को ढिंढोरा पीटने वाले रेलमंत्री की भद पिटनी भी तय है.
कौन-कौन यात्री हुए बीमार
बी-3 कोच में विदिशा दास, चिरस्मिता राउत, जितेंद्र कुमार, गुहीराम ठाकुर, लखु राय, ममता किरण, कुमार श्रीयांश, निरूपमा सेट्टी, देवाशीस बेहरा, अल्का बेहरा, के मंडल, पूर्णिमा साहू, राजकुमारी सिंह, ए प्रकाश, सीमा राज, पी मंडल, रमेश चंद्रा, सीमा, मीना, उमाशंकर साहू, एस गंगाधर, जेएस मोहंती, बी-4 कोच में दीपक कुमार राउत, विक्रम मंडल, बी-5 कोच में दिनेश कुमार सिंह, दीपक कुमार, जूली कुमार सिंह, बी-7 कोच में नवीन कुमार, बी-8 में रवींद्र कुमार, बी-9 में शोभन सुंदरमा तथा बी-11 कोच में अमरेश कुमार पति बीमार हुए.