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रेलवे के निजीकरण की बात गलत, तकनीक को खुले दिन से स्वीकार करें, इसी में भलाई : अश्विनी वैष्णव

रेलवे के निजीकरण की बात गलत, तकनीक को खुले दिन से स्वीकार करें, इसी में भलाई : अश्विनी वैष्णव
  • चेन्नई पेरंबुर के रेल मंडपम में भारतीय रेलवे मजदूर संघ (बीआरएमएस) के 20वें त्रिवार्षिक सम्मेलन में गरजे नेता

चेन्नई से श्रीनिवास 

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शनिवार 9 अप्रैल 2022 को चेन्नई के पेरम्बूर स्थित रेलवे कल्याण मंडपम से देश और रेलकर्मियों को स्पष्ट संदेश देने का प्रयास किया कि रेलवे का निजीकरण नहीं होगा, इसे लेकर भ्रम की स्थिति जानबूझकर पैदा की जा रही है. कहा कि यात्रियों की आकांक्षाओं को पूरा करने  और उनकी सुरक्षा व सुरक्षा को लेकर हमें नयी तकनीक काे अपनना होगा उसे खुले दिन से स्वीकार करना होगा.

रेलवे के निजीकरण की बात गलत, तकनीक को खुले दिन से स्वीकार करें, इसी में भलाई : अश्विनी वैष्णवसुबह उठकर 8 किलोमीटर तक एक-एक क्लीप चेक करे ऐसा कार्यकर्ता किसी भी देश व संगठन में नहीं है. यह सिस्टम हमारी देश की परिस्थिति व जरूरत के हिसाब से हैं. क्या कोई ऐसे सिस्टम को नया स्वरुप देने के लिए प्राइवेट करने की सोच रहा हैं तो बिलकुल नहीं, रेलवे के निजीकरण का कोई विचार नहीं है.

अश्विनी वैष्णव, रेलमंत्री

‘रेल मंडपम’ पेरम्बूर में भारतीय रेलवे मजदूर संघ (बीआरएमएस) के 20वें त्रिवार्षिक अखिल भारतीय अधिवेशन में ऑनलाइन विचार रखते हुए वैष्णव ने कहा कि हमारी तकनीक वंदे भारत एक्सप्रेस में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) के योगदान की तरह स्वदेशी होनी चाहिए और इस क्षेत्र को आगे ले जाना चाहिए.  उन्होंने विपक्षी दलों के निजीकरण के आरोपों को लेकर स्पष्ट किया कि रेलवे एक बड़ा जटिल संगठन है. रेलवे के निजीकरण की कोई नीति नहीं है. कोई योजना नहीं है.

रेलवे के निजीकरण की बात गलत, तकनीक को खुले दिन से स्वीकार करें, इसी में भलाई : अश्विनी वैष्णवरेलमंत्री ने रोजगार के मोर्चे पर कहा कि वर्तमान सरकार ने रेलवे में 3.5 लाख पदों को भरा है और 1.40 लाख पदों पर भर्ती के लिए कदम उठाए गये है जिनकी वह वह स्वयं 10 से 15 दिन में समीक्षा करते हैं. नियम हमारे आपके समाज की सेवा के लिए बने है. मानवीय संवेदना के साथ आगे बढ़ना है यहां कोई अफसर नहीं, कोई मैनेजर, कोई स्टॉफ नहीं, सभी देश के सैनिक हैं सभी को देश के लिए काम करना है.

रेलमंत्री ने तकनीक का उदाहरण देते हुए कहा कि वह समय तब था जब लोको पायलट 50-60 किलोमीटर की रफ्तार में ट्रेनों को अपने अनुसार नियंत्रित कर लेता था. अब कवच रेलवे के लिए बड़ी जरूरी तकनीक है जो ऑटोमेटिक है. अब ट्रेनें 120-160 की रफ्तार से चलेगी तब लोको पायलट अपने हिसाब से सब कुछ तय नहीं कर सकेंगे, ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लोको पायलट को कैब में ही सिग्नल डैस पर दिखे, यही तकनीक है, इसे स्वीकार करना होगा. हमें तकनीकी ऐसी लानी हे जो हमारी जरूरतो के हिसाब से हमारे कामगार व यात्री दोनों के जीवन में परिवर्तन लाये लेकिन किसी का नुकसान न हो.

रेलवे के निजीकरण की बात गलत, तकनीक को खुले दिन से स्वीकार करें, इसी में भलाई : अश्विनी वैष्णवहमें मान्यता प्राप्त करना है, लेकिन हम चाहते है कि हमें मजदूरों की मान्यता मिले, प्रबंधन की मान्यता तो मिल ही जायेगी. दो दिवसीय मंथन में रेलमंत्रालय से कर्मचारियों को लेकर प्रस्ताव देंगे और बहादुर कार्यकर्ता पैदा करेंगे जो संगठन को आगे ले जा सकेंगे.

हिरण्यमय पांड्या, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय मजदूर संघ

इससे पहले अधिवेशन की शुरुआत करते हुए  भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अध्यक्ष हिरण्यमय पांड्या ने कहा कि भारतीय रेलवे ने कई सालों से लगातार बेहतर काम हो रहा है. रेलवे में हमारे कार्यकर्ताओं का अहम योगदान रहा है. यहां डीआरकेसी के अयोजन में हम जमा हो सके हैं. भारतीय मजदूर संघ देश नहीं विश्व के मंच में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है. हमारे पास कार्यकर्ता है विश्व में युवाओं का देश है. मजदूर संघ में रेलवे बीआरएमएस युवाओं का संगठन है.

रेलवे के निजीकरण की बात गलत, तकनीक को खुले दिन से स्वीकार करें, इसी में भलाई : अश्विनी वैष्णव

अधिवेशन के पहले दिन बीआरएमएस के अध्यक्ष अरविंद कुमार, ऑल इंडिया वाइस प्रेसिडेंट एमपी सिंह, डॉ विजय कुमार, अखिल भारती संगठन मंत्री सुरेंद्र, रेल उद्योग प्रभारी शुक्ला जी, राधाकृष्णन जी, दोराईराज, तमिलनाडु भाजपा के मंत्री केशव जी, संघ प्रचारक राजेश्वर आदि ने विचार रखे. दूसरे दिन 10 अप्रैल की नयी कमेटी के गठन की औपचारिकता के साथ सम्मलेन का समापन होगा. इसमें रेलवे मजदूर संघ प्रस्ताव भी पारित करेगा. अधिवेशन में आगरा छावनी से मंडल मत्री बंशी बदन झा की अगुवाई में सूर्यकांत शर्मा BRMS कार्यकारिणी सदस्य UMRKS के जोनल प्रभारी, हरि बल्लभ दीक्षित जोनल उपाध्यक्ष एवं मण्डल कार्यकारी अध्यक्ष आदि शिरकत कर रहे हैं.

 

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